गांधीनगरः भारत इस वर्ष आज़ादी के अमृत महोत्सव का जश्न मना रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए गुजरात इस साल 26 जनवरी के दिन दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में झाँकी के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में राज्य के आदिवासियों के योगदान को उजागर करेगा। इस साल की गुजरात की झाँकी का विषय है ‘गुजरात के आदिवासी क्रांतिवीर’। उत्तर गुजरात के साबरकांठा ज़िले के पाल और दढवाव गाँव में अंग्रेज़ों ने जलियाँवाला बाग से भी भीषण हत्याकांड किया था, जिसमें लगभग 1200 आदिवासी शहीद हुए थे। अब तक अज्ञात गुजरात की इस ऐतिहासिक घटना को इस साल 100 वर्ष पूरे हो रहे है। गुजरात सरकार अपनी झाँकी के माध्यम से गुजरात के आदिवासियों की इस शौर्यगाथा को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करेगी।
क्या है जलियाँवाला बाग से भी भीषण पाल-दढववाव की यह ऐतिहासिक घटना?
100 साल पहले यानि 7 मार्च, 1922 को यह वीभत्स घटना घटी थी। गुजरात के साबरकांठा ज़िले में भील आदिवासियों की आबादी वाले गाँव पाल, दढवाव और चितरिया के त्रिवेणी संगम पर हेर नदी के किनारे भील आदिवासी लोग राजस्व व्यवस्था एवं सामंतों व रियासतों के कानून का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे। वे सभी श्री मोताल तेजावत के नेतृत्व में एकत्रित हुए थे।
आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित कोलियारी गाँव के एक बनिया परिवार में जन्मे श्री मोतीलाल तेजावत एक साहसिक और स्वाभिमानी व्यक्ति थे। आदिवासियों के साथ हो रहे घोर अत्याचार और शोषण से वे काफी व्यथित थे। आदिवासियों के प्रति संवेदना से उनका मन भर गया था। सत्य, वफादारी, समर्पण और विश्वास जैसे उनके सद्गुणो ने आदिवासियों के मन को छू लिया था। आदिवासी किसानों में एकता बनी रहे और उनके बीच में हो रहे सामाजिक असमानता समाप्त हो इसके लिए श्री मोतीलाल तेजावत ने कई प्रयास किये थे। श्री तेजावत के प्रयासों की वजह से ब्रिटिश राज और देसी रियासतों को भील आदिवासियों की एकता से डर लगने लगा और उनकी प्रवृत्तियाँ उनको विघातक लगने लगी थी।
13 अप्रैल, 1919 के दिन पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग में लगभग 600 निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई थी। 1920 में कलकत्ता में पूज्य गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत कर दी थी। पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत हो चुकी थी। इन सबके बीच गुजरात के साबरकांठा ज़िले के भील आदिवासियों में भी अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ विरोध के सुर उठ रहे थे।
होली का त्यौहार पास आ रहा था। वह आमलकी अगियारस का दिन था। ‘कोलरिया के गांधी’ के रूप में पहचाने जाने वाले श्री मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में आज़ादी के दीवाने आदिवासी लोग एकत्र हुए थे और एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया था। वह सभा चल रही थी, उसी वक्त मेवाड भील कोर्प्स (एम.बी.सी.) नामक ब्रिटिश पैरामिलिट्री फोर्स के जवान अपने शस्त्रों के साथ जरामरा की पहाडियों पर आ गये। एम.बी.सी. के अंग्रेज़ अफसर मेजर एच.जी. सटर्न ने हज़ारों की संख्या में एकत्रित हुए आदिवासियों पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। इस नृशंस गोलीबारी में लगभग 1200 निर्दोष आदिवासी शहीद हुए। चारों ओर लाशों का ढेर लग गया। पूरा मैदान जैसे लाशों से पट गया था। पास में स्थित ढेखडिया कुंआ और दूधिया कुंआ 1200 निर्दोष आदिवासियों के मृतदेहों से भर गये थे। श्री मोतीलाल तेजावत को भी दो गोलियाँ लगी थी। उनके साथी उनको ऊंट पर बैठाकर नदी के रास्ते से डुंगर की ओर ले गये। आज भी इस क्षेत्र के आदिवासी लोग अपनी शादियों के गीतों में इस घटना के गीत गौरव से गाते हैं।
जलियाँवाला बाग की घटना के तीन साल बाद गुजरात के साबरकांठा ज़िले में घटी इस भीषण घटना को इतिहास ने भुला दिया था। लेकिन, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने इतिहास की इस घटना को दुनिया के समक्ष उजागर किया। आज इस क्षेत्र में शहीद स्मृति वन और शहीद स्मारक स्थापित किये गये हैं, जो इस नरसंहार को परिलक्षित करते हैं।
‘गुजरात के आदिवासी क्रांतिवीर’: गुजरात की इस झाँकी की क्या विशेषता है?
गणतंत्र दिवस की परेड में नई दिल्ली के राजपथ पर प्रस्तुत होने वाली गुजरात की यह झाँकी 45 फुट लंबी, 14 फुट चौड़ी और 16 फुट ऊँची है। इस झाँकी में पाल-दढवाव के आदिवासी क्रांतिवीरों पर अंग्रेज़ों द्वारा जो गोलीबारी की गई उस घटना को दिखाया गया है।
आदिवासियों के ‘कोलियारी के गांधी’ श्री मोतीलाल तेजावत की 7 फुट ऊँची प्रतिमा इस झाँकी की शोभा बढ़ा रही है। घूड़सवार अंग्रेज अफसर एच.जी. सटर्न की प्रतिमा भी शिल्पकला का बहेतरीन नमूना है। इसके अतिरिक्त झाँकी में 6 और प्रतिमाएँ भी हैं। झाँकी पर 6 कलाकार भी होंगे जो कि अपने जीवंत अभिनय से इस घटना के मर्म को प्रस्तुत करेंगे।
झाँकी के चारों ओर पाँच म्युरल्स (भित्ति चित्र) हैं। शिल्पकला और चित्रकला का अद्भुत समन्वय दर्शाते हुए ये म्युरल आदिवासी क्रांतिवीरों की सभा के दृश्य को प्रभावी रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं। झाँकी के दोनो और दो कुंए हैं, ढेखलिया कुंआ और दूधिया कुंआ, जो की शहीदों की लाशों से भर गये थे, ये उसे प्रदर्शित करते हैं।
झाँकी के अगले हिस्से में हाथ में मशाल लेकर क्रांति की मिसाल देते हुए चार आदिवासी क्रांतिवीरों की प्रतिमाएँ हैं। चार फूट ऊँची ये प्रतिमाएँ स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के शौर्य, साहस और समर्पण का गुणगान करती हैं।
साबरकांठा ज़िले के इस क्षेत्र में आदिवासी लोग अपनी मनोकामना पूर्ण हो इस उद्देश्य से भगवान को मिट्टी के बने घोड़े भक्ति भाव पूर्वक अर्पण करते हैं। मिट्टी के बने यह विशिष्ट घोड़े साबरकांठा ज़िले की पहचान है। झाँकी के दोनों और ऐसे दो-दो घोड़े प्रदर्शित किये गये हैं।
झाँकी के साथ साबरकांठा ज़िले के आदिवासी कलाकार नई दिल्ली में अपने पारंपरिक गेर नृत्य को भी प्रस्तुत करेंगे। पारंपरिक वेशभूषा में सजे 10 आदिवासी कलाकार पोशीना तालुका से आयेंगे। अपने पूर्वजों के बलिदान की इस अद्भुत गाथा की प्रस्तुति में वे भी अपना योगदान देंगे। साबरकांठा ज़िले के ही वाद्यकारों एवं गायकों द्वारा पारंपरिक वाद्ययंत्रों से तैयार किया गया संगीत धुन भी प्रस्तुत किया जाएगा। आदिवासी कलाकार इस संगीत के साथ गेर नृत्य की प्रस्तुति देंगे।
पाल-दढवाव के आदिवासियों की शौर्यगाथा का वर्णन करते गीत आज भी इस क्षेत्र के आदिवासी लोग शादी जैसे शुभ अवसर पर स्थानीय भाषा में गाते हैं और अपने वीर पूर्वजों का स्मरण करते हैं। श्री मोतीलाल तेजावत को ‘कोलियारी का गांधी’ के तौर पर संबोधित करके गाया जाने वाला आदिवासियों का गीत भी इस झाँकी में प्रस्तुत किया जायेगा।
गुजरात सरकार के सूचना विभाग द्वारा प्रति वर्ष प्रस्तुत की जाने वाली इस झाँकी के निर्माण में, गुजरात सूचना विभाग की सचिव श्रीमती अवंतिका सिंह, सूचना विभाग के निदेशक श्री डी.पी. देसाई और विषय के विशेषज्ञ एवं इतिहासकार-लेखक श्री विष्णुभाई पंड्या के मार्गदर्शन में श्री पंकज मोदी और सूचना विभाग के उप निदेशक श्री हिरेन भट्ट ने अपना योगदान दिया है। स्मार्ट ग्राफ आर्ट प्राईवेट लिमिटेड के श्री सिद्धेश्वर कानुगा इस झाँकी का निर्माण कर रहे हैं।
आज गणतंत्र दिवस के इस शुभ अवसर पर 100 वर्षों के बाद गुजरात के आदिवासियों के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना पूरे विश्व के सामने उजागर हो रही है। आज़ादी के लिए शहीद हुए गुजरात के आदिवासियों को यह एक सच्ची श्रद्धांजलि है।