प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्‍यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय ने बुनियादी साक्षरता और संख्‍या ज्ञान पर रिपोर्ट जारी की

मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) रिपोर्ट का दूसरा संस्करण शिक्षा में भाषा की भूमिका पर जोर देता है और उचित आकलन और शिक्षा के माध्यम का उपयोग करके सीखने के परिणामों में सुधार करने पर केंद्रित है। यह उन मौलिक अवधारणाओं पर बल देता है, जो बच्चों को कुशल छात्र बनने के लिये जरूरी है। वह बहुभाषी वातावरण में आने वाली अलग-अलग चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। इस संदर्भ में, बच्चों से परिचित भाषाओं में शिक्षा और शिक्षण के माध्यम को एकीकृत करने की आवश्यकता को समझना महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट का एक खंड स्पष्ट रूप से सार्वजनिक-निजी संगठनों के सहयोग से राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वर्तमान में लागू कई पहलों पर केंद्रित है, जो निपुण (एनआईपीयूएन) में उल्लिखित मूलभूत शिक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने में उनके प्रयासों को प्रस्तुत करता है।

यह रिपोर्ट राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 2026-27 तक सार्वभौमिक मूलभूत शिक्षा प्राप्त करने में अपने समकक्षों के सापेक्ष उनके प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिए एक बेंचमार्क बनी हुई है। रिपोर्ट के निष्कर्ष में पोषण की भूमिका, डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुंच और भाषा-केंद्रित शिक्षण दृष्टिकोण को शामिल किया गया है। आगे भाषाई प्रणाली (स्वर विज्ञान, शब्दावली/शब्दकोष और वाक्यविन्यास सहित), वर्तनी प्रणाली (प्रतीक और मानचित्रण सिद्धांत शामिल हैं), और लेखन तंत्र से संबंधित विभिन्न आकलन करने और सीखने के परिणामों का प्रभावी ढंग से आकलन करने के लिए एनएएस की अवधि और एफएलएस के नमूना आकार में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश की जाती है। और अंत में, एफएलएन परिणामों के लिए अलग-अलग स्तर पर डेटा निगरानी की आवश्यकता को भी भारत में शैक्षणिक ढांचे और शिक्षा पर स्पष्ट रूप से परिभाषित परिणाम-आधारित संकेतकों के साथ प्रणाली में एकीकृत करने की आवश्यकता है।

इस रिपोर्ट को इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवनेस के अध्यक्ष अमित कपूर, इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवनेस की शोधकर्ता नतालिया चकमा और इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवनेस के शोध प्रबंधक शीन जुत्शी ने लिखा है।

रिपोर्ट को जारी करने के लिए पैनलिस्टों में यूएस-एड के उप भारतीय मिशन निदेशक करेन क्लिमोव्स्की; ईएसी-पीएम के संयुक्त सचिव पवन सैन; मेंटर टुगेदर की संस्थापक और सीईओ अरुंधुति गुप्ता और मोटवानी जडेजा फाउंडेशन की संस्थापक आशा जडेजा शामिल थीं। पैनल की अध्यक्षता रूम टू रीड की सीईओ गीता मुरली ने की।

गीता मुरली ने अपने मुख्य भाषण में कहा, “मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता एक राष्ट्र के स्वास्थ्य और आर्थिक विकास से जुड़ी होती है। भारतीय संदर्भ की अन्य बारीकियों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय भाषाओं की लिपि अक्षरों पर आधारित है। इसलिए, जैसा कि आप पाठ्यक्रम विकसित कर रहे हैं, ध्वन्यात्मक समझ, ध्वनिविज्ञान, प्रवाह, शब्दावली, आदि को उन पाठों में विभाजित किया जाना चाहिए जो बच्चों पर बिना कोई दबाव डाले उन्हें सिखाया जा सके।”

ईएसी-पीएम के संयुक्त सचिव, पवन सेन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एनईपी शिक्षण का भविष्य है और यह स्कूली शिक्षा में आने वाली सभी चुनौतियों का ध्यान रखता है। उन्होंने स्कूलों, शिक्षकों और बच्चों के लिए राज्यों द्वारा अपनाई गई अभिनव व्यवहारों पर भी प्रकाश डाला।

यूएस-एड के उप भारतीय मिशन निदेशक करेन क्लिमोवस्की ने कहा, “हमें सतत प्रभाव पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि हम इन कार्यक्रमों को लंबी अवधि में अधिक सार्थक और निरंतर कैसे बना सकते हैं।”

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवनेस के मानद अध्यक्ष और प्रवक्ता डॉ. अमित कपूर ने कहा, “साक्षरता और संख्यात्मकता पर ध्यान केंद्रित करना हर बच्चे के लिए प्रारंभिक शिक्षा के लिए ठोस आधार के रूप में कार्य करता है, क्योंकि यह उन्हें समाज में खुद को बनाए रखने के लिए तैयार करता है।”

डॉ. बिबेक देबरॉय, अध्यक्ष, ईएसी-पीएम ने अपने समापन भाषण में कहा, “मूलभूत शिक्षण शैक्षिक चक्र का केवल एक हिस्सा है। मैं यह अध्ययन करने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ कम्पेटिटिवनेस को धन्यवाद देता हूं। मुझे उम्मीद है कि वे साल दर साल ऐसा करना जारी रखेंगे, ताकि हमें न केवल इसकी झलक मिल सके, बल्कि यह भी पता चल सके कि राज्य एक निश्चित समय पर कहां खड़े हैं। इसके जरिये हम समय के साथ सुधार का भी अनुमान लगा सकते हैं।

आएफसी के बारे में

इंस्टीट्यूट ऑफ कम्पेटिटिवनेस, भारत हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटजी एंड कम्पेटिटिवनेस के वैश्विक नेटवर्क में भारत की उपस्थिति है। इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवनेस, भारत भारत में केंद्रित एक अंतरराष्ट्रीय पहल है, जो प्रतिस्पर्धा और रणनीति पर अनुसंधान और ज्ञान के निकाय के विस्तार और उद्देश्यपूर्ण प्रसार के लिए समर्पित है। यह संस्थान हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटजी एंड कम्पेटिटिवनेस के प्रोफेसर माइकल पोर्टर के नेतृत्व में पिछले 25 वर्षों से अग्रणी कार्य कर रहा है। इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवनेस, भारत स्वदेशी अनुसंधान का संचालन और समर्थन करता है; अकादमिक और कार्यकारी पाठ्यक्रम प्रदान करता है; कॉर्पोरेट और सरकारों को सलाहकार सेवाएं प्रदान करता है और कार्यक्रमों का आयोजन करता है। संस्थान प्रतिस्पर्धा और कंपनी रणनीति के लिए इसके निहितार्थ का अध्ययन करता है; राष्ट्रों, क्षेत्रों और शहरों की प्रतिस्पर्धात्मकता और इस प्रकार व्यवसायों और शासन में उन लोगों के लिए दिशानिर्देश तैयार करता है तथा सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान करता है।