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भारत ने महासागर अन्वेषण में 6 देशों के विदेशी आईएसए प्रशिक्षुओं को सम्मानित किया

सतत महासागर विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने नाइजीरिया, केन्या, श्रीलंका, तंजानिया, घाना और जमैका सहित छह देशों के अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षुओं को सम्मानित किया, जिन्होंने महासागर अन्वेषण में एक विशेष ट्रेडिंग प्रोग्राम को पूरा किया था।

इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में उन्नत समुद्रतल अन्वेषण प्रशिक्षण के पूरा होने का उत्सव मनाया गया और पर्यावरण संरक्षण, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं संसाधन-साझाकरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया।

नई दिल्ली के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में एक महत्वपूर्ण संबोधन में, केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षुओं के एक समूह को सम्मानित किया, जिन्होंने पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स (पीएमएन) और पॉलीमेटेलिक सल्फाइड्स (पीएमएस) अन्वेषण पर केंद्रित एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा किया था। आईएसए द्वारा संचालित इस प्रशिक्षण में घाना, केन्या, नाइजीरिया, जमैका, श्रीलंका और तंजानिया सहित कई देशों के प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसने टिकाऊ समुद्री अन्वेषण और क्षमता निर्माण के केंद्र के रूप में भारत की भूमिका को रेखांकित किया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत सरकार की ओर से प्रशिक्षुओं का स्वागत करते हुए उन्हें सख्त कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए बधाई दी। उन्होंने जिम्मेदारी पूर्ण समुद्री तल अन्वेषण में भारत के नेतृत्व पर जोर दिया, इस प्रशिक्षण को पर्यावरणीय स्थिरता के लिए समर्पित कुशल पेशेवरों का एक नेटवर्क बनाने के अवसर के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रतिभागियों को अपने देश में समुद्री संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, “आप केवल प्रशिक्षु नहीं हैं; आप एक स्थायी भविष्य के राजदूत हैं।”

अपने संबोधन के दौरान, डॉ. जितेंद्र सिंह ने समुद्र तल में खनन के प्रति भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित किया, जिसे चार मार्गदर्शक सिद्धांतों: आम भलाई के लिए समुद्र तल खनिजों का सतत उपयोग, समुद्री पर्यावरण संरक्षण का सख्त पालन, समुद्र तल खनिज विनियमों का विकास और समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) के साथ संरेखण द्वारा परिभाषित किया गया है। उन्होंने दोहराया कि भारत “मानवता के हित के लिए जिम्मेदारी पूर्ण अन्वेषण करते हुए समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से समर्पित है।”

1982 से यूएनसीएलओएस के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत ने आईएसए में अपनी मजबूत आवाज बनाए रखी है, जिसे 1994 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में खनिज-संबंधी गतिविधियों की देखरेख के लिए स्थापित किया गया था। भारत के पास पीएमएन और पीएमएस खनन को कवर करने वाले 31 आईएसए अन्वेषण अनुबंधों में से दो हैं और वह प्रारंभिक अन्वेषण से लेकर निष्कर्षण के बाद के चरणों तक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के लिए सख्त प्रोटोकॉल का पालन करने को प्रतिबद्ध है। ये कार्य भारत को समुद्री संसाधनों के पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार विकास में एक वैश्विक लीडर के रूप में स्थापित करते हैं।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की “ब्लू इकोनॉमी” नीति के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है, जो आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और बेहतर आजीविका के लिए समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग को प्राथमिकता देता है। ब्लू इकोनॉमी पहल का उद्देश्य समुद्री संपदा का जिम्मेदारी के साथ दोहन करना है; समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य से समझौता किए बिना स्थानीय समुदायों तक लाभ पहुंचाना सुनिश्चित करना।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के इस रुख को दोहराया कि सच्ची आर्थिक प्रगति विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन से आती है।

प्रशिक्षण मॉड्यूल में उन्नत अन्वेषण तकनीक, रिमोट-संचालित वाहन, गहरे समुद्र में मानचित्रण, खनिज नमूना विश्लेषण और पर्यावरण प्रभाव आकलन विधियों सहित सतत समुद्री तल अन्वेषण के विविध पहलुओं को शामिल किया गया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रशिक्षुओं को अपने भारतीय साथियों के साथ नेटवर्क विकसित करने और तकनीकी नवाचार एवं पर्यावरणीय जिम्मेदारी दोनों के लिए भारत की प्रतिबद्धता के साथ घर लौटने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि आईएसए कार्यक्रमों में एक संरक्षक के रूप में भारत की मौजूदा भूमिका समुद्री संसाधनों को स्थायी रूप से प्रबंधित करने में सक्षम कुशल कार्यबल विकसित करने में अन्य देशों का समर्थन करने के लिए उसके समर्पण को दर्शाती है।

प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “आप भारत के व्यापक वैज्ञानिक समुदाय का हिस्सा बन गए हैं। ज्ञान साझा करने में यह साझेदारी समुद्री विज्ञान में सहयोगात्मक, टिकाऊ भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।”

उपस्थित लोगों में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, वैज्ञानिक और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल थे, जिनमें से सभी ने कार्यक्रम के प्रभाव के लिए डॉ. जितेंद्र सिंह के आशावाद को साझा किया। केंद्रीय मंत्री ने प्रशिक्षुओं को अपने अनुभवों पर प्रतिक्रिया देने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि उनकी अंतर्दृष्टि अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भारत की भूमिका को और निखार सकती है और बढ़ा सकती है। उन्होंने इन भागीदारियों के महत्व पर भी जोर दिया और प्रशिक्षुओं को “महासागर संरक्षण का वैश्विक दूत” बताया, जिनमें समुद्र तल खनन के लिए अपने देशों के दृष्टिकोण को आकार देने की क्षमता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस कार्यक्रम का समापन करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक टिकाऊ समुद्री पर्यावरण सुनिश्चित करने के लिए आईएसए और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ अपनी साझेदारी को गहरा करने के भारत के इरादे की पुष्टि की। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत के प्रयास अन्य देशों को जिम्मेदारी पूर्ण समुद्री अन्वेषण के लिए समान रूपरेखा अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे, जिससे समुद्री विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण में अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए मंच तैयार होगा।

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