केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने आज नई दिल्ली में भारतीय विद्युत क्षेत्र परिदृश्य 2047 विषय पर आयोजित सत्र को संबोधित किया
केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने आज नई दिल्ली में भारतीय विद्युत क्षेत्र परिदृश्य 2047 विषय पर आयोजित विचार-विमर्श सत्र को संबोधित किया। केंद्रीय विद्युत और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल ने भारतीय विद्युत क्षेत्र परिदृश्य 2047 पर दो दिवसीय विचार-विमर्श सत्र में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख करते हुए देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकार की रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की।
केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने भविष्य की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए कहा, “हमारा अनुमान है कि 2047 तक देश की बिजली की मांग 708 गीगावाट तक पहुंच जाएगी। इसे पूरा करने के लिए हमें अपनी क्षमता को चार गुना यानी 2,100 गीगावाट तक बढ़ाने की आवश्यकता है।” “यह केवल क्षमता बढ़ाने के बारे में नहीं है; बल्कि हमारे संपूर्ण ऊर्जा परिदृश्य को फिर से परिभाषित करने के बारे में है।”
केंद्रीय मंत्री ने भविष्य में बिजली के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए कहा, “हमने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जो हमारी वर्तमान क्षमता को प्रभावी रूप से दोगुना कर देगा।” हरित ऊर्जा की ओर यह कदम 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन कम करने और 2070 तक शून्य उत्सर्जन लाभ प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
मनोहर लाल ने इस सत्र में लॉन्च की गई राष्ट्रीय विद्युत योजना का हवाला देते हुए, इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सीईए की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “यह योजना राज्य सरकारों और निवेशकों को महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करेगी, जिससे क्षेत्र के विकास के लिए एक सहयोगी दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा।”
विभिन्न हितधारकों के परामर्श से विकसित राष्ट्रीय विद्युत योजना (ट्रांसमिशन) सरकार के ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक व्यापक रणनीति की रूपरेखा तैयार करती है। यह 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता के लिए आवश्यक ट्रांसमिशन बुनियादी ढांचे का विस्तृत विवरण प्रदान करती है, जो 2032 तक 600 गीगावाट से अधिक हो जाएगा। इस योजना में 10 गीगावाट के अपतटीय पवन फार्म, 47 गीगावाट की बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली और 30 गीगावाट के पंप स्टोरेज प्लांट के समन्वय जैसे अभिनव तत्व शामिल हैं। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया विनिर्माण केंद्रों की बिजली जरूरतों का भी विवरण है, और इसमें सीमा पार इंटरकनेक्शन शामिल हैं। यह अगले दशक में 190,000 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनों और 1,270 जीपीए परिवर्तन क्षमता के नियोजन के साथ, योजना ट्रांसमिशन क्षेत्र में 9 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश अवसर प्रस्तुत करती है।
केंद्रीय मंत्री ने ग्रिड में परिवर्तनीय अक्षय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने की चुनौतियों पर विचार करते हुए उन्नत भंडारण प्रक्रियाओं की आवश्यकता पर बल दिया। केंद्रीय मंत्री ने बताया, “हम अपने नागरिकों को 24/7 बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पंप भंडारण सुविधाओं और बैटरी स्टोरेज में नवीन प्रौद्योगिकियों की खोज कर रहे हैं।”
तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण से बिजली की मांग पर परिवर्तनकारी प्रभाव को देखते हुए, सरकार ग्रिड अवसंरचना विस्तार और उन्नयन पर ध्यान केंद्रित कर रही है। केंद्रीय मंत्री ने यह आधुनिकीकरण करने के लिए एक कुशल कार्यबल बनाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “हमें 21वीं सदी की ऊर्जा प्रणाली की मांगों को पूरा करने में सक्षम कार्यबल विकसित करना है।”
विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री, श्रीपद येसो नाइक ने इस मौके पर उभरती प्राथमिकताओं के साथ बिजली क्षेत्र को अनुरूप बनाने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने महत्वाकांक्षी स्थिरता लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक विविध और स्वच्छ ऊर्जा मिश्रण की ओर तेजी से बदलाव का आह्वान किया। श्रीपद येसो नाइक ने कहा, “नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों, ऊर्जा भंडारण और ग्रिड आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी।” उन्होंने क्षेत्र बिजली क्षेत्र को आकार देने में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की महत्वपूर्ण भूमिका तथा राष्ट्रीय विद्युत योजनाओं को तैयार करने एवं तकनीकी मानकों को निर्धारित करने में इसकी व्यापक जिम्मेदारियों का उल्लेख किया। राज्य मंत्री ने उभरते ऊर्जा परिदृश्य के प्रबंधन के लिए नए कौशल, विनियामक ढांचे और बाजार संरचनाओं को विकसित करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि “बिजली केवल एक वस्तु नहीं है, बल्कि विकास, प्रगति और एक स्थायी भविष्य के लिए उत्प्रेरक है।”
उद्घाटन सत्र में विद्युत मंत्रालय के सचिव पंकज अग्रवाल ने एक आधुनिक, ऊर्जा-कुशल बिजली क्षेत्र के लिए भारत के दृष्टिकोण का उल्लेख किया और एक स्थायी भविष्य के लिए एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड के दृष्टिकोण में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने ऊर्जा सुरक्षा की विविध प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि इसमें तीन महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं: वहनीयता, विश्वसनीयता के साथ पर्याप्तता और स्थिरता। उन्होंने हाल ही में जी20 नई दिल्ली नेताओं की घोषणा का भी उल्लेख किया, जिसमें इस क्षेत्र के लिए निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा, “जी20 सदस्यों ने अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार की दर को दोगुना करने का संकल्प लिया है।” सीओपी 29 के मद्देनजर, सचिव ने कहा, “हमें भंडारण क्षमता में छह गुना वृद्धि की आवश्यकता का अनुमान है।” उन्होंने मांग को बेहतर और सुरक्षित रूप से पूरा करने के लिए एक व्यापक नियोजन ढांचे की आवश्यकता पर जोर देते हुए बिजली खरीद समझौतों में लचीलापन लाने और उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत कम करने का आह्वान किया।
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग की सचिव देबाश्री मुखर्जी ने इस अवसर पर भारत के आर्थिक विकास को गति देने में पानी और बिजली के बीच महत्वपूर्ण संबंध पर प्रकाश डाला। उन्होंने 2047 के लिए जलविद्युत विकास में सतत ऊर्जा समाधानों, सीईए और केंद्रीय जल आयोग के बीच मजबूत सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव प्रशांत कुमार सिंह ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की महत्वाकांक्षी प्रगति पर प्रकाश डाला। इसमें विकसित भारत को शक्ति प्रदान करने के लिए सौर, पवन और नवीन हरित पहलों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
विद्युत मंत्रालय के पूर्व सचिव आर.वी. शाही ने भारत के विद्युत क्षेत्र के विकास में वित्तीय नियोजन और नीति-निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका और 2047 तक विकसित भारत के लिए की जाने वाली आवश्यक पहलों का जिक्र किया।
सीईए के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद ने बिजली क्षेत्र के विकास के लिए एक व्यापक योजना प्रस्तुत की, जिसमें आजादी के समय मात्र 1 गीगावाट की अधिकतम मांग से लेकर अब 2047 तक 2053 गीगावाट क्षमता तक चार गुना वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। इस महत्वाकांक्षी योजना में अक्षय ऊर्जा की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव शामिल है, जिसमें 2047 तक 1,200 गीगावाट सौर ऊर्जा और 400 गीगावाट से अधिक पवन ऊर्जा का लक्ष्य है। हाइड्रो पंप भंडारण संयंत्रों पर मुख्य ध्यान दिया जा रहा है, जिनकी क्षमता मौजूदा 4.7 गीगावाट से बढ़कर 116 गीगावाट होने की उम्मीद है। यह योजना थर्मल और परमाणु संयंत्रों के लचीले संचालन, कौशल विकास, अनुसंधान और विकास, ऊर्जा बदलाव के लिए वित्तपोषण, पारेषण और वितरण में अभिनव समाधान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान देती है। उन्होंने 2047 तक विश्व स्तरीय भारतीय बिजली क्षेत्र के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के बीच एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया।
फिक्की के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय धातु एवं फेरो मिश्र धातु के प्रबंध निदेशक शुभ्राकांत पांडा ने कहा, “भारत का बिजली क्षेत्र अब 450+ गीगावाट अधिशेष की क्षमता युक्त है और 2070 तक स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के लिए विशाल अवसर प्रस्तुत करता है। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं। स्थानीय विनिर्माण, अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ाने से नवाचार और उद्योग विकास के लिए नए रास्ते खुलेंगे। इससे व्यापार करने में आसानी में सुधार, आईएसटीएस छूट का विस्तार, और ट्रांसमिशन और बिजली निकासी प्रणाली को मजबूत करने से क्षेत्र की वृद्धि को और बढ़ावा मिलेगा। इस तरह के प्रयासों से निवेशकों और व्यवसायों के लिए कई अवसर पैदा होंगे।”
इस कार्यक्रम का आयोजन फिक्की और सीबीआईपी सहित कई हितधारकों के सहयोग से किया जा रहा है, जो अन्य संगठनों के अलावा कार्यक्रम भागीदार के रूप में हैं।
सीईए ने 2047 तक बिजली क्षेत्र के विकास के लिए अपने दृष्टिकोण को पेश किया है, जिसमें सतत विकास, तकनीकी नवाचार और अर्थव्यवस्था के समक्ष तेजी से बढ़ती चुनौतियों का सामना करने पर जोर दिया गया है।