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Defence Minister Rajnath Singh addressed the ICG Commanders Conference in New Delhi
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में आईसीजी कमांडरों के सम्मेलन को संबोधित किया

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली स्थित आईसीजी मुख्यालय में 42वें भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) कमांडरों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। उन्होंने बल की व्यावसायिकता और मानवीय सेवा की सराहना की और भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे समुद्र तट और द्वीपीय क्षेत्रों की सुरक्षा में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित की। 28 से 30 सितंबर, 2025 तक आयोजित होने वाला यह तीन दिवसीय सम्मेलन, उभरती समुद्री सुरक्षा चुनौतियों और हिंद महासागर क्षेत्र के बढ़ते सामरिक महत्व की पृष्ठभूमि में, सामरिक, प्रचालनगत और प्रशासनिक प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श करने के लिए सेना के वरिष्ठ नेतृत्व को एकत्रित करता है।

रक्षा मंत्री ने आईसीजी को राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बताया, जिसने अपनी शुरुआत में एक मामूली बेड़े से खुद को 152 जहाजों और 78 विमानों के साथ एक दुर्जेय बल में बदल लिया है। रक्षा मंत्री ने कहा कि आईसीजी ने लगातार नागरिकों का विश्वास अर्जित किया है और साथ ही अपनी व्यावसायिकता और मानवीय सेवा के लिए वैश्विक मान्यता भी अर्जित की है।

आंतरिक और बाह्य सुरक्षा में भूमिका

राजनाथ सिंह ने बाह्य और आंतरिक सुरक्षा के समन्वय पर कार्य करने के आईसीजी के अद्वितीय अधिदेश पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि जहां सशस्त्र बल बाहरी खतरों से बचाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अन्य एजेंसियां आंतरिक सुरक्षा का दायित्व संभालती हैं, वहीं आईसीजी दोनों क्षेत्रों में निर्बाध रूप से कार्य करता है। उन्होंने कहा, ” विशिष्‍ट इकोनोमिक जोन (ईईज़ेड) में गश्त करके, आईसीजी न केवल बाहरी खतरों को रोकता है, बल्कि अवैध मछली पकड़ने, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी, मानव तस्करी, समुद्री प्रदूषण और अनियमित समुद्री गतिविधियों से भी निपटता है।”

रक्षा मंत्री ने नौसेना, राज्य प्रशासन और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ बहु-एजेंसी समन्वय में आईसीजी की भूमिका की सराहना की और इसे इसकी सबसे बड़ी ताकत बताया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “आईसीजी जिस निर्बाध तरीके से नागरिक प्रशासन और अन्य बलों के साथ वास्तविक समय में काम करता है, वह संपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे को सुदृढ़ करता है। अब आप केवल एक सुरक्षा प्रदाता नहीं हैं, बल्कि एक सच्चे बल गुणक हैं।”

स्वदेशीकरण और आत्म-निर्भरता

राजनाथ सिंह ने आईसीजी के आधुनिकीकरण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए कहा कि इसके पूंजीगत बजट का लगभग 90 प्रतिशत स्वदेशी परिसंपत्तियों के लिए आवंटित किया गया है। उन्होंने भारत में जहाजों और विमानों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव में हुई प्रगति की सराहना की और इसे आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। उन्होंने रेखांकित किया, “इससे आईसीजी की प्रचालनगत क्षमता बढ़ी है और साथ ही भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र और अर्थव्यवस्था को भी बल मिला है, जिससे सुरक्षा और आत्मनिर्भरता साथ-साथ आगे बढ़ रही है।”

समुद्री सीमाओं की जटिलता

रक्षा मंत्री ने स्थलीय और समुद्री सीमाओं की तुलना करते हुए कहा कि जहां स्थलीय सीमाएं स्थायी, स्पष्ट रूप से चिह्नित और अपेक्षाकृत पूर्वानुमानित होती हैं, वहीं समुद्री सीमाएं परिवर्तनशील होती हैं और ज्वार-भाटे, लहरों और मौसम के कारण लगातार बदलती रहती हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “एक तस्करी करने वाला जहाज मछली पकड़ने वाली नाव जैसा दिख सकता है, एक आतंकवादी समूह समुद्र की खुली जगह का लाभ उठा सकता है, और खतरे अदृश्य रूप से उभर सकते हैं। समुद्री सुरक्षा स्थलीय सीमाओं की तुलना में कहीं अधिक जटिल और अप्रत्याशित है और इसके लिए निरंतर सतर्कता की आवश्यकता होती है।”

राजनाथ सिंह ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों के साथ मिलकर भारी चुनौतियां प्रस्तुत करती है, जिसके लिए उन्नत प्रौद्योगिकी, अच्छी तरह से प्रशिक्षित कार्मिकों और चौबीसों घंटे निगरानी की आवश्यकता होती है।

मानवीय भूमिका और आपदा प्रतिक्रिया

रक्षा मंत्री ने आईसीजी के मानवीय चरित्र की सराहना की और आपदा प्रबंधन एवं बचाव कार्यों में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “चाहे चक्रवातों, तेल रिसाव, औद्योगिक दुर्घटनाओं या संकटग्रस्त विदेशी जहाजों की स्थिति में सहायता करना हो, आईसीजी ने हमेशा जान-माल की रक्षा के लिए तत्परता से कार्य किया है। विश्‍व भारत का मूल्यांकन इस आधार पर करता है कि हम ऐसे संकटों में कैसे कार्य करते हैं। आईसीजी हमें लगातार सम्मान दिलाता रहा है।”

महिला सशक्तिकरण

राजनाथ सिंह ने महिला सशक्तिकरण में आईसीजी की प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि आज महिला अधिकारी न केवल सहायक भूमिकाओं में, बल्कि अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं के रूप में भी कार्यरत हैं। उन्हें अब पायलट, पर्यवेक्षक, होवरक्राफ्ट ऑपरेटर, हवाई यातायात नियंत्रक, लॉजिस्टिक्‍स अधिकारी और विधि अधिकारी के रूप में प्रशिक्षित और तैनात किया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि, “यह परिवर्तन समावेशी भागीदारी के हमारे विजन को दर्शाता है, जहां महिलाएं नेतृत्व और प्रचालनगत क्षमताओं में समान रूप से योगदान देती हैं।”

उभरती प्रौद्योगिकी-संचालित चुनौतियां

रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि समुद्री खतरे तेज़ी से प्रोद़योगिकी-संचालित और बहुआयामी होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “तस्करी या समुद्री डकैती के जो तरीके पहले आसानी से समझ में आते थे, वे अब जीपीएस स्पूफिंग, रिमोट-नियंत्रित नावों, एन्क्रिप्टेड संचार, ड्रोन, सैटेलाइट फ़ोन और यहां तक कि डार्क वेब पर चलने वाले नेटवर्क का इस्तेमाल करके परिष्कृत गतिविधियों में बदल गए हैं।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि आतंकवादी संगठन अपनी गतिविधियों की योजना बनाने के लिए डिजिटल मैपिंग और रीयल-टाइम इंटेलिजेंस जैसे आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं।

राजनाथ सिंह ने कहा, “पारंपरिक तरीके अब पर्याप्त नहीं हैं, हमें अपने समुद्री सुरक्षा ढांचे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग-आधारित निगरानी, ​​ड्रोन, साइबर रक्षा प्रणाली और स्वचालित प्रतिक्रिया तंत्र को एकीकृत करके अपराधियों और विरोधियों से आगे रहना होगा।”

साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की तैयारी

रक्षा मंत्री ने सावधान किया कि साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध अब काल्पनिक ख़तरे नहीं, बल्कि वर्तमान वास्तविकताएं हैं। उन्होंने कहा, “कोई देश मिसाइलों से नहीं, बल्कि हैकिंग, साइबर हमलों और इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग के ज़रिए हमारी प्रणालियों को पंगु बनाने की कोशिश कर सकता है। आईसीजी को ऐसे ख़तरों से बचाव के लिए अपने प्रशिक्षण और उपकरणों को निरंतर उन्नत और अनुकूलित करना होगा। प्रतिक्रिया समय को कम करके सेकंडों में लाने और हर समय तत्परता सुनिश्चित करने के लिए स्वचालित निगरानी नेटवर्क और एआई-सक्षम प्रणालियां आवश्यक हैं।”

क्षेत्रीय भू-राजनीतिक जागरूकता

राजनाथ सिंह ने रेखांकित किया कि पड़ोसी देशों में अस्थिरता अक्सर समुद्री क्षेत्र में भी फैल जाती है। उन्होंने म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल और अन्य क्षेत्रीय देशों में लगातार हो रहे घटनाक्रमों को संदर्भित किया जो शरणार्थियों की घुसपैठ, अवैध प्रवास और अनियमित समुद्री गतिविधियों के माध्यम से, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी में तटीय सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। उन्होंने आईसीजी से न केवल नियमित निगरानी बनाए रखने, बल्कि भू-राजनीतिक जागरूकता और बाहरी गतिविधियों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए तत्परता बनाए रखने का भी आग्रह किया।

समुद्री सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा

समुद्री सुरक्षा को भारत की आर्थिक समृद्धि से सीधे जोड़ते हुए, रक्षा मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बंदरगाह, नौवहन मार्ग और ऊर्जा अवसंरचना देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएं हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “समुद्री व्यापार में किसी भी तरह का व्यवधान, चाहे वह वास्तविक हो या साइबर, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था, दोनों पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है। हमें राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा को एक ही मानना ​​होगा।”

2047 के लिए भविष्योन्मुखी रुपरेखा

राजनाथ सिंह ने आईसीजी से एक भविष्योन्मुखी रोडमैप तैयार करने का आग्रह किया जो नई चुनौतियों का पूर्वानुमान लगा सके, अत्याधुनिक तकनीकों को एकीकृत कर सके और रणनीतियों को निरंतर अनुकूलित कर सके। उन्होंने कमांडरों को याद दिलाया कि अब युद्ध महीनों में नहीं, बल्कि घंटों और सेकंडों में मापा जाता है, क्योंकि उपग्रह, ड्रोन और सेंसर संघर्ष की प्रकृति को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तैयारी, अनुकूलनशीलता और त्वरित प्रतिक्रिया आईसीजी के विजन की आधारशिला होनी चाहिए।

रक्षा मंत्री ने इस बात पर बल दिया कि 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में भारत की यात्रा समृद्धि और सुरक्षा के दो स्तंभों पर टिकी है। उन्होंने भारतीय तटरक्षक बल के आदर्श वाक्य, ‘वयं रक्षामः’ (हम रक्षा करते हैं) का उल्लेख करते हुए इसे सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि एक प्रतिज्ञा बताया। उन्होंने कहा, “यह प्रतिज्ञा, जो प्रत्येक भारतीय तटरक्षक कर्मी में निहित है, यह सुनिश्चित करेगी कि हम आने वाली पीढ़ियों को एक मज़बूत, सुरक्षित और आत्मनिर्भर भारत सौंपें।”

आईसीजी कमांडर्स सम्मेलन 2025

यह सम्मेलन अंतर-सेना समन्वय को बढ़ाने, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि भविष्य की क्षमताएं भारत की राष्ट्रीय समुद्री प्राथमिकताओं के अनुरूप हों। नौसेना प्रमुख और इंजीनियर-इन-चीफ सहित प्रतिष्ठित प्रतिभागी, परिचालन प्रदर्शन, लॉजिस्टिक्स, मानव संसाधन विकास, प्रशिक्षण और प्रशासन पर चर्चा करेंगे, जिसमें भारत की समुद्री उपस्थिति को मज़बूत करने पर रणनीतिक ज़ोर दिया जाएगा।

आईसीजी महानिदेशक परमेश शिवमणि ने सम्मेलन का उद्घाटन किया और हाल की उपलब्धियों, प्रचालनगत चुनौतियों और सेना के लिए रणनीतिक विजन का अवलोकन प्रस्तुत किया। स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया, जिसमें आईसीजी की स्वदेशी प्लेटफार्मों और प्रौद्योगिकियों पर बढ़ती निर्भरता सरकार के आत्मनिर्भर भारत के विजन को दर्शाती है।

भारतीय तटरक्षक बल

अपनी स्थापना के बाद से, आईसीजी ने भारतीय जल क्षेत्र में अवैध गतिविधियों में शामिल 1,638 विदेशी जहाजों और 13,775 विदेशी मछुआरों को पकड़ा है। इसने 37,833 करोड़ रुपये मूल्य के 6,430 किलोग्राम नशीले पदार्थ भी जब्त किए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री अपराध से निपटने में इसकी बढ़ती प्रभावशीलता को दर्शाता है। खोज और बचाव (एसएआर) अभियानों के प्रति आईसीजी का समर्पण उल्लेखनीय रहा है, इस वर्ष जुलाई तक 76 मिशन चलाए गए, जिनमें 74 लोगों की जान बचाई गई और आपदा प्रतिक्रिया अभियानों में कुल मिलाकर 14,500 से अधिक लोगों की जान बचाई गई। आईसीजी ने एमवी वान हाई 503 में आग लगने और केरल तट पर एमवी एमएससी ईएलएसए -3 के डूबने जैसी गंभीर घटनाओं के दौरान प्रचालनगत तत्परता और पर्यावरणगत संरक्षण क्षमताओं का भी प्रदर्शन किया है।

इस अवसर पर रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह, सचिव (रक्षा उत्पादन) संजीव कुमार तथा रक्षा मंत्रालय और आईसीजी के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

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