
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के स्थापना दिवस, 26 सितंबर 2025 के शुभ अवसर पर, सीएसआईआर-उन्नत सामग्री और प्रक्रिया अनुसंधान संस्थान (एएमपीआरआई), भोपाल द्वारा डिजाइन और विकसित सोडार (साउंड डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सिस्टम सुविधा का उद्घाटन भारत मौसम विज्ञान विभाग, (आईएमडी), दिल्ली में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन, भारत मौसम विज्ञान विभाग के मौसम विज्ञान महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र और सीएसआईआर-एएमपीआरआई, भोपाल के निदेशक प्रो. डॉ. थल्लादा भास्कर द्वारा किया गया। इस अवसर पर ऊर्जा एवं पर्यावरण समाधान प्रभाग के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. मोहम्मद अकरम खान, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं व्यवसाय विकास समूह के प्रमुख डॉ. संदीप सिंघई, सीएसआईआर-एएमपीआरआई, भोपाल की वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं सोडार गतिविधि की प्रमुख अन्वेषक डॉ. कीर्ति सोनी तथा सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर, दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष मोहन गोरे भी उपस्थित थे।
सीएसआईआर के महानिदेशक और डीएसआईआर के सचिव डॉ. एन. कलैसेल्वी इस कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से सम्मिलित हुए। इस अवसर पर श्री कलैसेल्वी ने समाज की सेवा के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण को मजबूत करने के संदर्भ में इस पहल को बहुत महत्वपूर्ण बताया।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव, डॉ. एम. रविचंद्रन ने सीएसआईआर-एएमपीआरआई और आईएमडी के बीच इस समझौता ज्ञापन को बहुत आशाजनक माना। आईएमडी के डीजीएम, डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि एएमपीआरआई की सोडार इकाई मूल्यवर्धन करेगी और मौसम के बेहतर पूर्वानुमान के लिए अतिरिक्त डेटा प्रदान करेगी।
सीएसआईआर-एएमपीआरआई और आईएमडी के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए और सीएसआईआर-एएमपीआरआई, भोपाल के निदेशक प्रो. डॉ. थल्लादा भास्कर और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मौसम विज्ञान महानिदेशक, डॉ. मृत्युंजय महापात्र के बीच दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया गया।
इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य मौसम, जलवायु परिवर्तनश, पूर्वानुमान और आपदा जोखिम न्यूनीकरण से संबंधित वैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियों पर बल देते हुए जलवायु तथा पर्यावरण अध्ययन में सीएसआईआर-एएमपीआरआई और आईएमडी के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान कार्य को बढ़ाना है। सीएसआईआर-एएमपीआरआई और आईएमडी के बीच इस सहयोग से मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और पर्यावरण अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति होने की संभावना है, जिससे अनुसंधान समुदाय और राष्ट्र दोनों को समग्र रूप से लाभ होगा।