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Animal Husbandry Commissioner Dr. Abhijit Mitra inaugurated the Animal Infectious Disease Priority Workshop in New Delhi
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पशुपालन आयुक्त डॉ. अभिजीत मित्रा ने नई दिल्ली में पशु संक्रामक रोग प्राथमिकता कार्यशाला का उद्घाटन किया

भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से आयोजित पशु संक्रामक रोग प्राथमिकता पर तीन दिवसीय कार्यशाला आज नई दिल्ली में शुरू हुई।

इस कार्यशाला का उद्घाटन पशुपालन और डेयरी विभाग के पशुपालन आयुक्त (एएचसी) डॉ. अभिजीत मित्रा ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में इस बात को रेखांकित किया कि रोग को प्राथमिकता देने की प्रक्रिया में आर्थिक हानि एक महत्वपूर्ण मानदंड है। डॉ. मित्रा ने आगे जोर दिया कि संक्रामक रोगों के आर्थिक प्रभाव, विशेष रूप से पशुधन, मुर्गीपालन और वन्यजीवों को प्रभावित करने वाले रोगों को, रोकथाम व नियंत्रण प्रयासों के लिए किन रोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, यह निर्धारित करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। डॉ. मित्रा ने रेखांकित किया कि इन रोगों से संबंधित वित्तीय बोझ- जिसमें उत्पादकता में कमी से लेकर उपचार और नियंत्रण उपायों पर होने वाली लागत शामिल है- न केवल कृषि क्षेत्र के लिए बल्कि, समग्र रूप से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए भी दूरगामी परिणाम उत्पन्न करता है।

पशुपालन आयुक्त ने आर्थिक हानि के अलावा रोग प्राथमिकता प्रक्रिया में जैव विविधता के नुकसान को एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में शामिल करने की पैरवी की। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि जैव विविधता की हानि, जो आम तौर पर वन्यजीवों व अन्य प्रजातियों में संक्रामक रोगों के फैलने के कारण होती है, के इकोसिस्टम और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता प्रक्रिया अधिक समग्र हो जाती है। साथ ही, पशु स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव कल्याण के बीच आपसी निर्भरता को मान्यता प्रदान की जाती है।

एफएओ इंडिया के महामारी विज्ञान, एएमआर और जूनोसिस (एक रोग जो कशेरूक पशुओं से दूसरे में फैलता है) विशेषज्ञ डॉ. राज कुमार सिंह ने पशु संक्रामक रोग प्राथमिकताकरण की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समितियों की भूमिका पर विस्तृत जानकारी दी।

इस कार्यशाला में डीएएचडी, आईसीएआर, राज्य पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों, राज्य पशुपालन विभागों, यूएसएआईडी, जेपीआईजीओ और एफएओ इंडिया की ईसीटीएडी टीम के विशेषज्ञों के रूप में विविध समूह एक मंच पर साथ आया।

इस एआईडीपी कार्यशाला का प्राथमिक लक्ष्य प्रमुख पशु संक्रामक रोगों का व्यापक मानचित्रण, पहचान और प्राथमिकता निर्धारण करना है। यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण पशु संक्रामक रोगों के मानचित्रण के साथ शुरू हुई, जिसमें उनके आर्थिक व रोग संबंधी प्रभावों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञ परामर्श और द्वितीयक अनुसंधान का उपयोग किया गया। इसके बाद एक गहन पहचान प्रक्रिया अपनाई गई, जिसमें विशेषज्ञों ने व्यापकता, आर्थिक प्रभाव और पशु व मनुष्यों, दोनों के लिए स्वास्थ्य से संबंधित जैसे कारकों के आधार पर रोगों का मूल्यांकन किया।

अगले दो दिनों के दौरान विशेष रूप से चिंताजनक रोगों, जिनमें पशुधन, मुर्गीपालन और वन्यजीव जैसे स्थलीय जानवरों को प्रभावित करने वाले रोगों, साथ ही मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले जूनोटिक रोग शामिल हैं, को उनके महत्व के अनुरूप क्रमबद्ध किया जाएगा और प्राथमिकता दी जाएगी।

यह कार्यशाला न केवल निगरानी प्रयासों को सुदृढ़ करेगी बल्कि, अधिक प्रभावी रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के डिजाइन और उनके कार्यान्वयन के बारे में भी जानकारी देगी। अर्थव्यवस्था और जैव विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा उत्पन्न करने वाले रोगों को प्राथमिकता देकर राष्ट्रीय थिंकटैंक रणनीति तैयार कर सकता है और संसाधनों को समान रूप से केंद्रित कर सकता है, जिससे भारत में अधिक टिकाऊ और लचीली पशु स्वास्थ्य प्रणाली विकसित हो सके।

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