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At the World Health Organization Global Traditional Medicine Summit, experts outlined the future of Ashwagandha.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन में विशेषज्ञों ने अश्वगंधा के भविष्य की रूपरेखा तैयार की

आयुर्वेद की सबसे महत्वपूर्ण रसायन जड़ी बूटियों में से एक अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा) ने दूसरे विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन, 2025 में आयोजित एक उच्च स्तरीय अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण का केंद्र बना, जिसने साक्ष्य-आधारित वैश्विक संवाद के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा को आगे बढ़ाने में भारत के नेतृत्व की पुष्टि की।

आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से नई दिल्ली के भारत मंडपम में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (डब्ल्यूएचओ-जीटीएमसी) द्वारा “अश्वगंधा: पारंपरिक ज्ञान से वैश्विक प्रभाव तक – अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञों का दृष्टिकोण” शीर्षक से एक सत्र का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम ने प्रमुख वैश्विक विशेषज्ञों, नियामकों, शोधकर्ताओं एवं नीति निर्माताओं को अश्वगंधा के आसपास विकसित हो रहे वैज्ञानिक, नियामकीय और सुरक्षा परिदृश्य पर विचार-विमर्श के लिए एकत्रित किया।

अश्वगंधा अपनी अनुकूलनीय, स्नायु सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा गुणों के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर मान्यता प्राप्त कर रहा है। इस पर हुई चर्चा ने पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों एवं समकालीन वैज्ञानिक सत्यापन के बीच के पुल को मजबूती प्रदान की। विशेषज्ञों ने इसके समर्थन के लिए कठोर पूर्व-नैदानिक ​​एवं नैदानिक ​​अनुसंधान, सुरक्षा मूल्यांकन, औषधि सतर्कता एवं मानकीकरण के महत्व पर बल दिया।

इस सत्र का संचालन विश्व अश्वगंधा परिषद के सचिव डॉ. जे.बी. गुप्ता ने किया जिसमें अग्रणी अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने मुख्य प्रस्तुतियां दी। अमेरिकन हर्बल फार्माकोपिया के डॉ. रॉय अप्टन ने पहचान, गुणवत्ता परीक्षण एवं चिकित्सीय अनुप्रयोगों के लिए वैश्विक मानकों पर प्रकाश डाला। सुश्री मारी ल्यरा, खाद्य एवं पशु आहार विभाग की प्रमुख, मेडफाइल्स लिमिटेड, फिनलैंड ने यूरोप के नियामक परिवेश और अश्वगंधा की बढ़ती स्वीकार्यता पर अपने विचारों को साझा किया। डॉ. इखलास खान, निदेशक, राष्ट्रीय प्राकृतिक उत्पाद अनुसंधान केंद्र, मिसिसिपी विश्वविद्यालय ने नियामक निर्णय लेने हेतु कार्यप्रणाली की सटीकता एवं ठोस साक्ष्यों की आवश्यकता पर बल दिया। डब्ल्यूएचओ-जीटीएमसी की डॉ. गीता कृष्णन ने अश्वगंधा को वैश्विक स्तर पर अपनाने में वादे एवं सतर्कता के बीच संतुलन पर प्रकाश डाला।

एक संवादात्मक पैनल चर्चा में विशेषज्ञों के बीच मानकों में सामंजस्य स्थापित करने, प्रभावकारिता की पुनरावृत्ति सुनिश्चित करने एवं साक्ष्य-आधारित अश्वगंधा सूत्रीकरण को आगे बढ़ाने के लिए सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने पर खुलकर विचार-विमर्श हुआ। सत्र का समापन पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करते हुए अश्वगंधा को पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल संरचना में स्थापित करने के लिए निरंतर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर आम सहमति के साथ हुआ।

विचार-विमर्श में विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन के व्यापक उद्देश्यों के अनुरूप, सुरक्षित, वैज्ञानिक एवं चिरस्थायी उपायों से पारंपरिक चिकित्सा को समकालीन स्वास्थ्य प्रणालियों में एकीकृत करने की बढ़ती वैश्विक प्रतिबद्धता परिलक्षित हुई।

विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन पारंपरिक, पूरक एवं एकीकृत चिकित्सा पर संवाद, सहयोग और नीतिगत संरेखण के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में कार्य करता है, जिसमें साक्ष्य, सुरक्षा एवं गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

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