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Commerce Department organizes brainstorming camp on FTA strategy and SOP for trade negotiations
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वाणिज्य विभाग ने FTA रणनीति और व्यापार वार्ता के लिए एसओपी पर चिंतन शिविर का आयोजन किया

वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने व्यापार और निवेश कानून केंद्र (सीटीआईएल), भारतीय विदेश व्यापार संस्थान, नई दिल्ली के सहयोग से राजस्थान के नीमराना में 16-17 मई 2024 तक मुक्त व्यापार समझौता रणनीति और व्यापार वार्ता के लिए एसओपी पर चिंतन शिविर का आयोजन किया।

दो दिवसीय चिंतन शिविर में भारत द्वारा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की वार्ताओं, इसकी स्थिति और रणनीति से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। उपस्थित लोगों ने एफटीए वार्ताओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी), व्यापार वार्ता के लिए क्षमता निर्माण और संसाधन प्रबंधन के साथ-साथ आधुनिक एफटीए के अंतर्गत श्रम, पर्यावरण, लिंग जैसे कुछ समकालीन मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया।

वाणिज्य सचिव, सुनील बर्थवाल ने चिंतन शिविर का नेतृत्व किया जिसमें उन्होंने एफटीए वार्ता में भारत की भविष्य में भागीदारी के लिए एक रणनीतिक पाठ्यक्रम तैयार करने की बात की। इस कार्यक्रम में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और एजेंसियों से भारत की एफटीए वार्ता में शामिल वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी देखी गई। इस कार्यक्रम के प्रतिष्ठित वक्ताओं में भारत सरकार के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, एफटीए वार्ताओं में सम्मानित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ, आदरणीय शिक्षाविद और अनुभवी कानूनी पेशेवर शामिल थे। उनकी प्रस्तुतियों में अमूल्य अंतर्दृष्टि मौजूद थी, जिसने गहन विशेषज्ञता और महत्वपूर्ण ज्ञान द्वारा उनकी प्रस्तुतियों को समृद्ध किया।

चिंतन शिविर में छह गतिशील सत्र और एक गोलमेज सम्मेलन शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक में महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया: (1) एफटीए का आर्थिक मूल्यांकन और मॉडलिंग; (2) श्रम, पर्यावरण, लिंग, स्वदेशी लोग आदि जैसे एफटीए में नए विषयों को संबोधित करना; (3) एफटीए में सेवाएं और डिजिटल व्यापार; (4) हितधारक परामर्श सहित एफटीए वार्ताओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं; (5) क्षमता निर्माण और एफटीए संसाधन प्रबंधन; और (6) सीबीएएम, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों, महत्‍वपूर्ण खनिजों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि जैसे उभरते क्षेत्रों पर ध्‍यान देने के लिये भारत के एफटीए का लाभ उठाना।

‘एफटीए रणनीति पर पूर्व सचिवों और राजदूतों के साथ गोलमेज सम्मेलन’ में राजीव खेर (अध्यक्ष), पूर्व वाणिज्य सचिव, भारत सरकार; उजल सिंह भाटिया, पूर्व अपीलीय निकाय सदस्य और अध्यक्ष, डब्ल्यूटीओ; डॉ. अनूप वधावन, पूर्व वाणिज्य सचिव, भारत सरकार; डॉ. जयंत दास गुप्ता, विश्व व्यापार संगठन के पूर्व राजदूत/जनसंपर्क; सुधांशु पांडे, पूर्व सचिव, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग, भारत सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के चुनाव आयुक्त ने चर्चा की कि भारतीय एफटीए को भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र को संतुलित करके किस प्रकार से संचालित किया जाना चाहिए और इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि कैसे बहुपक्षीय प्रयासों से उपजी क्षेत्रीय आकांक्षाओं के साथ क्षेत्रवाद (क्षेत्रीय व्यापार समझौतों) को बहुपक्षवाद (वैश्विक व्यापार समझौतों) का पूरक होना चाहिए। गोलमेज में यह भी पहचान की गई कि एफटीए को मूल्य श्रृंखला विकास को बढ़ावा देना चाहिए और बाजार पहुंच के लिए महत्वपूर्ण गैर-व्यापार मुद्दों (जैसे, व्यापार और सतत विकास- टीएसडी) को एकीकृत करने का महत्व, जैसा कि ईएफटीए के साथ बातचीत में देखा गया है। अंत में, गोलमेज सम्मेलन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रभावी हितधारक परामर्श से यथार्थवादी और प्राप्य लक्ष्य सुनिश्चित होते हैं और व्यापार और औद्योगिक नीतियों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण व्यापार वार्ता और परिणामों को अनुकूलित कर सकता है।

‘भारत की एफटीए रणनीति और आर्थिक आकलन और मॉडलिंग’ पर सत्र 1 में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि एफटीए वार्ताओं के मार्गदर्शन के लिए कम्प्यूटेबल जनरल इक्विलिब्रियम (सीजीई) जैसे मॉडल सहित विस्तृत आर्थिक अध्ययन की आवश्यकता हैं; और कैसे आर्थिक मॉडल बातचीत के आख्यानों के निर्माण में मदद करते हैं, लेकिन उनका उपयोग उनकी मान्यताओं और सीमाओं की समझ के साथ किया जाना चाहिए। प्रतिभागियों ने इस बात पर भी चर्चा की कि कैसे निवेश और व्यापार पर एक साथ बातचीत करने से तालमेल स्थापित किया जा सकता है और व्यापार नीति और औद्योगिक नीति पर एक साथ सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

‘एफटीए में नए विषयों को शामिल करने’ पर सत्र 2 में प्रतिभागियों को नए क्षेत्रों के निहितार्थों का पता लगाने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ जैसे कि व्यापार समझौतों में टीएसडी (पर्यावरण, श्रम, लिंग, स्वदेशी लोग सहित), घरेलू कानूनों को लागू करने और अंतर्राष्ट्रीय संधियों की पुष्टि करने में शामिल मुद्दे; इन क्षेत्रों के लिए विकसित देशों द्वारा अपनाए गए विभिन्न दृष्टिकोण (अमेरिकी और यूरोपीय संघ के मॉडल); और नीति स्थल, कानून प्रवर्तन, नागरिक समाज की भागीदारी को परिभाषित करने में शामिल चुनौतियां आदि। अन्य बातों के अलावा, प्रतिभागियों द्वारा सुझाए गए कुछ समाधानों में हितधारकों के साथ रचनात्मक जुड़ाव, उपायों की पहचान और संभावित तरीके का समर्थन करना और उन प्रतिबद्धताओं के कार्यान्वयन के लिए पायलट परियोजनाओं की खोज करना शामिल है।

‘एफटीए में सेवा और डिजिटल व्यापार’ पर सत्र 3 में सेवा व्यापार, विशेष रूप से सीमा पार आपूर्ति (मोड 1), डेटा संप्रभुता, उपभोक्ता संरक्षण और साइबर सुरक्षा की चुनौतियों और पारदर्शिता तथा बातचीत के परिणामों पर प्रभाव डालने वाली सेवाओं की प्रतिबद्धताओं में सकारात्मक और नकारात्मक लिस्टिंग दृष्टिकोण के बीच चयन के महत्व पर प्रकाश डाला गया। सत्र में ईयू जीडीपीआर के अंतर्गत भारत के डेटा उपलब्धता मुद्दों और ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार के विकसित परिदृश्य से उत्पन्न महत्वपूर्ण चुनौतियों का भी पता लगाया गया। वक्ताओं ने इस बात पर भी बल दिया कि भारत-यूरोपीय संघ टीटीसी और यूएस-इंडिया आईसीईटी जैसी पहलों के माध्यम से महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने से भारत के व्यापार संभावनाओं को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है।

‘हितधारक परामर्श सहित एफटीए वार्ताओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं’ पर सत्र 4 में, वक्ताओं और प्रतिभागियों ने एसओपी के विकास और आलेखन और व्यापार समझौतों के उद्देश्यों को बढ़ाने और भविष्य की वार्ताओं के लिए दस्तावेजी या संस्थागत स्मृति का निर्माण करने में इसके लाभों पर चर्चा की। प्रतिभागियों ने स्पष्टता सुनिश्चित करने और तत्काल सहमति के लिए वार्ता के दौरान वास्तविक समय में समझौता मसौदा तैयार करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता वाले ऑन-द-स्पॉट ड्राफ्टिंग की चुनौती पर चर्चा की और यह भी कि वार्ताकार किस तरह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आरंभ की गई प्रतिबद्धताओं को पूर्व-अनुमोदित किया गया है। चर्चाओं में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि समावेशी और सहायक परिणामों के लिए प्रासंगिक हितधारक परामर्श आवश्यक हैं, हितधारक किस प्रकार से महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं और हितधारकों को सूचित और व्यस्त रखने के लिए निरंतर आउटरीच की आवश्यकता है। प्रतिभागियों ने मजबूत संसाधन प्रबंधन रणनीतियों और इसके कार्यान्वयन का भी पता लगाया, ताकि अत्यधिक तनाव को रोका जा सके और सक्रिय समस्या-समाधान सुनिश्चित किया जा सके जिससे उपयोगी और रचनात्मक गुण प्रदान किए जा सकें।

‘क्षमता निर्माण और एफटीए संसाधन प्रबंधन’ पर सत्र 5 में पहचान की गई कि एफटीए एक मजबूत आर्थिक संबंध स्थापित करके और नियामक सहयोग के लिए रूपरेखा तैयार करके राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। इसने यह भी स्वीकार किया कि आधुनिक एफटीए पारंपरिक व्यापार से परे जटिल मुद्दों को संबोधित करते हैं, जिसमें डिजिटल व्यापार, डेटा संरक्षण और पर्यावरण मानक शामिल हैं। वक्ताओं ने अंतःविषय समर्थन के महत्व पर प्रकाश डाला, यह देखते हुए कि सफल वार्ता के लिए कानून, अर्थशास्त्र, डेटा एनालिटिक्स और उद्योग विशिष्ट ज्ञान में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की राय और अंतर्दृष्टि एकत्रित करने से बातचीत की प्रक्रिया आगे बढ़ती है। प्रतिभागियों ने दूतावासों से जमीनी स्तर पर अंतर्दृष्टि का लाभ उठाने की दिशा में विदेशों में भारत के दूतावासों/मिशनों के संसाधनों का उपयोग करने के तरीकों का पता लगाया, जो भागीदार देशों के नियामक शासनों को समझने में मदद करेगा।

‘उभरते क्षेत्रों को संबोधित करने के लिए भारत के एफटीए का लाभ उठाने’ पर सत्र 6 में आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों, महत्वपूर्ण खनिजों, क्षमता निर्माण, डीग्लोबलाइजेशन और भू-राजनीतिक प्रभाव पर चर्चा केंद्रित रही। सत्र की चर्चाओं में पहचान की गई कि एफटीए का उपयोग आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन बढ़ाने, व्यापार संबंधों में स्थिरता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए उपकरण के रूप में किया जा सकता है। विचार-विमर्श के दौरान यह भी सामने आया कि भारत को आपूर्ति श्रृंखला में अचानक उत्पन्न व्यवधानों से बचाने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों या महत्वपूर्ण खनिजों पर आधारित समझौतों पर एक विशेष विषय पर बातचीत करनी चाहिए। सत्र में यह भी कहा गया कि आंशिक डीग्लोबलाइजेशन की दिशा में वैश्विक प्रवृत्ति और संरक्षणवाद के लिए एक आवरण के रूप में औद्योगिक नीति का उपयोग और भू-राजनीति अब व्यापार नीतियों को आकार देने में भू-अर्थशास्त्र के समान ही प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। सत्र में सुझाव दिया गया कि भारत को लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण के लिए एफटीए का उपयोग करना चाहिए, क्षमता निर्माण और अंतःविषय विशेषज्ञता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए तथा आंशिक डीग्लोबलाइजेशन और भू-राजनीतिक प्रभावों की वर्तमान प्रवृत्ति के अनुकूल होना चाहिए।

चिंतन शिविर का समापन एक समापन कार्यक्रम की रिपोर्ट और सुनील बर्थवाल तथा वाणिज्य विभाग के अतिरिक्‍त सचिव राजेश अग्रवाल के विशेष संबोधन के साथ हुआ। इस कार्यक्रम में भारत की एफटीए रणनीतियों को तैयार करने और भारत की एफटीए तैयारियों को बढ़ावा देने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं को अपनाने हेतु विभिन्न सुझावों पर मंथन किया गया।

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