भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने 18 अगस्त, 2024 को नई दिल्ली में खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण को लेकर बढ़ती चिंता से निपटने के लिए एक नवोन्मेषी परियोजना आरंभ की। माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को एक उभरते खतरे, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, के रूप में स्वीकार करते हुए – “उभरते खाद्य संदूषक के रूप में माइक्रो-और नैनो-प्लास्टिक: मान्य पद्धतियों की स्थापना और विभिन्न खाद्य मैट्रिक्स में व्याप्ति की समझ” – परियोजना इस वर्ष मार्च में विभिन्न खाद्य उत्पादों में माइक्रो और नैनो-प्लास्टिक का पता लगाने के लिए विश्लेषणात्मक तरीकों को विकसित और मान्य करने के साथ-साथ भारत में उनकी व्याप्ति और जोखिम के स्तर का आकलन करने के लिए आरंभ की गई थी।
परियोजना के प्राथमिक उद्देश्यों में माइक्रो/नैनो-प्लास्टिक विश्लेषण के लिए मानक प्रोटोकॉल विकसित करना, इंट्रा- और इंटर-लैबोरेटरी तुलना करना तथा उपभोक्ताओं के बीच माइक्रोप्लास्टिक जोखिम के स्तर पर महत्वपूर्ण डेटा तैयार करना शामिल है। यह अध्ययन देश भर के अग्रणी अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से कार्यान्वित किया जा रहा है, जिनमें सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (लखनऊ), आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (कोच्चि) और बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (पिलानी) शामिल हैं।
हाल ही में खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने एक रिपोर्ट में चीनी और नमक जैसे आम खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति रेखांकित की है। रिपोर्ट में माइक्रोप्लास्टिक की वैश्विक व्याप्ति को रेखांकित किया गया है, लेकिन इसमें खासकर भारतीय संदर्भ में, मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए इसके निहितार्थों को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक मजबूत डेटा की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है।
देश के खाद्य सुरक्षा नियामक के रूप में, एफएसएसएआई यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि भारतीय उपभोक्ताओं को सुरक्षित और स्वस्थ भोजन की सुविधा प्राप्त हो। जहां वैश्विक अध्ययनों ने विभिन्न खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति को उजागर किया है, भारत के लिए विशिष्ट विश्वसनीय डेटा उत्पन्न करना अनिवार्य है। यह परियोजना भारतीय खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की सीमा को समझने में मदद करेगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रभावी विनियमन और सुरक्षा मानकों के निर्माण का मार्गदर्शन करेगी।
इस परियोजना के निष्कर्ष न केवल नियामकीय कार्रवाइयों की सूचना प्रदान करेंगे, बल्कि माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की वैश्विक समझ में भी योगदान देंगे, जिससे भारतीय अनुसंधान इस पर्यावरणीय चुनौती से निपटने के वैश्विक प्रयास का एक अभिन्न अंग बन जाएगा।
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