भारत ने दुनिया भर में तटीय समुदायों की सुरक्षा के लिए वैश्विक सहयोग और बहु-खतरे की तैयारी को अग्रसर किया है: डॉ. जितेंद्र सिंह
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आईएनसीओआईएस (भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र) में 2004 के हिंद महासागर सुनामी की 20वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह में कहा कि भारत आज “आपदा चेतावनी” देने में एक वैश्विक नेता के रूप में उभरा है तथा वह विश्व भर के अन्य देशों को भी इसकी जानकारी साझा कर रहा है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्मरण किया कि आईएनसीओआईएस की संकल्पना वर्ष 2004 की दुखद सुनामी के बाद की गई थी और वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्राप्त असीम समर्थन और प्राथमिकता के साथ इसने तीव्र गति से प्रगति की और इसे अपनी तरह का विश्व का सबसे अत्याधुनिक संस्थान माना जाने लगा है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी की अग्रणी समुद्री पहलों की सराहना की, जिनमें ‘डीप सी मिशन’ भी शामिल है, जिसकी घोषणा उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में की थी।
उन्होंने समुद्री अनुसंधान और आपदा तैयारी में भारत की तीव्र प्रगति पर भी प्रकाश डाला।
मंत्री ने विश्व स्तरीय आपदा चेतावनी प्रणालियां उपलब्ध कराने में देश के वैश्विक नेता के रूप में उभरने पर जोर दिया तथा सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने में वैज्ञानिक प्रगति की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
दुनिया भर में 230,000 से ज़्यादा लोगों की जान लेने वाली भयावह सुनामी पर विचार करते हुए, जिसमें भारत में 10,749 लोग मारे गए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस घटना से मिले अमूल्य सबक और उसके बाद अपनाई गई परिवर्तनकारी नीतियों पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “इस त्रासदी ने आईएनसीओआईएस जैसी संस्थाओं की स्थापना के लिए उत्प्रेरक का काम किया, जो अब जीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।”
भारत की सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना की गई है, को राष्ट्र की आपदा तैयारी की आधारशिला के रूप में प्रदर्शित किया गया।
मंत्री ने यूनेस्को और सुनामी रेडी इनिशिएटिव के साथ चल रहे सहयोग का भी उल्लेख किया, जिसका उद्देश्य संवेदनशील क्षेत्रों में सामुदायिक लचीलापन बढ़ाना है। उन्होंने इस कार्यक्रम के तहत 24 भारतीय समुदायों को मान्यता दिए जाने को समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण का प्रमाण बताया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के “विकसित भारत” बनने की यात्रा में समुद्री अन्वेषण के बढ़ते महत्व को रेखांकित किया। 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा और प्रचुर समुद्री संसाधनों के साथ, उन्होंने उनके सतत अन्वेषण और संरक्षण का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “हमारा डीप-सी मिशन और बायोई3 [पर्यावरण, रोजगार और अर्थव्यवस्था के लिए जैव प्रौद्योगिकी] जैसी पहल एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र सृजित कर रही है जो न केवल जैव विविधता को बढ़ाएगा बल्कि राष्ट्रीय समृद्धि में भी योगदान देगा।”
भविष्य के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. सिंह ने अंतरिक्ष और समुद्री मिशनों में सहयोगी सफलताओं के बारे में आशा व्यक्त की, और एक ऐसे भारत की कल्पना की जो दोनों क्षेत्रों में विश्व स्तर पर अग्रणी हो। उन्होंने घोषणा की, “हम संभवतः 2026 तक एक भारतीय को गहरे समुद्र में और एक अन्य को अंतरिक्ष में भेजने करने की योजना बना रहे हैं, जो एक ऐतिहासिक मील का पत्थर होगा।”
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने अपने संबोधन में नीति और विज्ञान के बीच समन्वय की सराहना की तथा अंतरिक्ष और समुद्र विज्ञान जैसे क्षेत्रों में तेजी से हो रही प्रगति का श्रेय केंद्र सरकार के सक्रिय सहयोग को दिया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आईएनसीओआईएस के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में भारत की सक्रिय भूमिका पर भी प्रकाश डाला, जो यूनेस्को श्रेणी 2 प्रशिक्षण केंद्र की मेजबानी करता है। यह केंद्र महासागर आधारित आपदा प्रबंधन पर क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करता है। उन्होंने महासागर दशक सुनामी कार्यक्रम में आईएनसीओआईएस की सक्रिय भागीदारी का उल्लेख किया, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 100 प्रतिशत सुनामी-तैयार समुदायों को बनाना है। उन्होंने कहा, “इन जैसी पहलों के माध्यम से, हम न केवल वैश्विक साझेदारी को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि दुनिया भर में सतत तटीय समुदायों के लिए मार्ग भी प्रशस्त कर रहे हैं।”
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने इसके साथ ही सुनामी चेतावनियों को अन्य महासागर-संबंधी खतरों, जैसे कि तूफानी लहरें और ऊंची लहरों के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि एक व्यापक बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणाली बनाई जा सके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की प्रगति भारत की सुनामी चेतावनी क्षमताओं को बनाए रखेगी और साथ ही महासागरीय जोखिमों की बढ़ती जटिलता का समाधान करेगी। उन्होंने कहा, “यह दूरदर्शी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि हम संभावित आपदाओं के खिलाफ जीवन और आजीविका की रक्षा करना जारी रखें।”
समापन में, डॉ. सिंह ने भारत के वर्ष 2047 दृष्टिकोण में आईएनसीओआईएस की अभिन्न भूमिका को दोहराया। उन्होंने कहा, “अप्रयुक्त संसाधनों की खोज और आपदा तत्परता सुनिश्चित करके, आईएनसीओआईएस एक आत्मनिर्भर और दीर्घकालीन भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है।”
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रवि चंद्रन, प्रख्यात वैज्ञानिक तथा नीति निर्माता भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। कार्यक्रम ने दो दशकों की उपलब्धियों का उत्सव मनाने तथा समग्र और सतत विकास के लिए भविष्य का मार्ग तैयार करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया।