नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के 7वें सत्र में जंगल की आग पर वैश्विक प्रबंधन को सुदृढ़ करने का भारत का प्रस्ताव स्वीकृत
केन्या के नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के 7वें सत्र में जंगल की आग के वैश्विक प्रबंधन को सुदृढ़ करना विषय को अपनाया गया। भारत द्वारा पेश किए गए इस प्रस्ताव को सदस्य देशों का व्यापक समर्थन मिला, जिससे वैश्विक स्तर पर जंगल की आग के बढ़ते खतरे से निपटने की तत्काल आवश्यकता की वैश्विक स्वीकार्यता की पुष्टि हुई।
भारत ने इस बात पर जोर दिया कि जंगल की आग वैश्विक स्तर पर सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक के रूप में सामने आया है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना और जंगल की आग के प्रबंधन के लिए समन्वित कार्रवाई करना है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि दुनिया भर के क्षेत्रों में जंगल में आग लगने की संख्या, पैमाने और तीव्रता में लगातार वृद्धि देखी जा रही है, जो पहले कभी मौसमी घटनाओं तक ही सीमित थी। जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान, लंबे समय तक सूखे और मानवीय गतिविधियों के कारण अब जंगल की आग की घटनाएं अधिक बार और लंबे समय तक चलने लगी हैं।
हर साल लाखों हेक्टेयर भूमि आग से प्रभावित होती है। इससे जंगल, जैव विविधता, जल संसाधनों, मिट्टी के स्वास्थ्य, वायु गुणवत्ता और आजीविका को भारी नुकसान होता है। जंगल की आग से भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, कार्बन सिंक कमजोर होते हैं और वनों पर निर्भर रहने वाले समाज और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर इसका गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
भारत ने यूएनईपी की वैश्विक रिपोर्ट ‘स्प्रेडिंग लाइक वाइल्डफायर’ की ओर ध्यान दिलाया, जिसमें चेतावनी दी गई है कि यदि वर्तमान रुझान जारी रहे तो 2030 तक जंगल की आग में 14%, 2050 तक 30% और 2100 तक 50% की वृद्धि हो सकती है। भारत ने जोर देकर कहा कि ये अनुमान यह स्पष्ट करते हैं कि जंगल की आग एक दीर्घकालिक, जलवायु-संचालित वैश्विक जोखिम की ओर इशारा करती है, जिसके लिए तत्काल समन्वित अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता होती है। भारत ने प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से हटकर सक्रिय रोकथाम की ओर बढ़ने पर जोर दिया, जिसके लिए बेहतर योजना, प्रारंभिक चेतावनी और समय पर जोखिम कम करने के उपाय आवश्यक हैं।
भारत ने कहा कि वैश्विक दृष्टिकोण अब एकीकृत अग्नि प्रबंधन की ओर बढ़ रहा है, जो प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, जोखिम मानचित्रण (संभावित जोखिमों का सटीक विश्लेषण), उपग्रह आधारित निगरानी और स्थानीय समाज और अग्रिम पंक्ति के कर्मियों के सामूहिक प्रयासों पर आधारित है। भारत ने जंगल की आग से निपटने की क्षमता को मजबूत करने, एकीकृत अग्नि प्रबंधन रणनीतियों को विकसित करने और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली करने में देशों की मदद करने में यूएनईपी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
एफएओ और यूएनईपी की ओर से 2023 में स्थापित ग्लोबल फायर मैनेजमेंट हब को अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करने के लिए एक प्रमुख तंत्र के रूप में स्वीकार किया गया था।
भारत की ओर से पेश प्रस्ताव के प्रमुख प्रावधान
इस प्रस्ताव का उद्देश्य ग्लोबल फायर मैनेजमेंट हब के तहत चल रही वैश्विक गतिविधियों को मजबूत करना है। इसके लिए इन बातों का आह्वान किया गया :
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ बनाना : प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, जोखिम मूल्यांकन उपकरणों और उपग्रह-आधारित और जमीनी पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी के विकास के साथ-साथ समुदाय आधारित चेतावनी तंत्रों को बढ़ावा देना।
- क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना: रोकथाम, आपदा के बाद की रिकवरी और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली में सहायक तंत्र।
- ज्ञान का आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण : भागीदारों के लिए बेहतर कार्यप्रणालियों को लेकर मंचों की स्थापना, साथ ही प्रशिक्षण और क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों का आयोजन करना शामिल है।
- राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्य योजनाओं के लिए समर्थन : सदस्य देशों को एकीकृत अग्नि प्रबंधन और वन्य अग्नि प्रतिरोध रणनीतियों के विकास और कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करना।
- अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण सुविधाओं की आसान उपलब्धता : सदस्य देशों को बहुपक्षीय तंत्रों और परिणाम-आधारित योजनाओं के माध्यम से वित्त पोषण प्राप्त करने हेतु परियोजना प्रस्तावों की तैयारी में सहायता प्रदान करना।
- भारत ने बढ़ते जंगल की आग के खतरों के मद्देनजर वैश्विक तैयारियों, रोकथाम और रणनीति को मजबूत करने के लिए यूएनईपी, सदस्य देशों और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ मिलकर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता जताई।





