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Ministry of Earth Sciences celebrates 18th Foundation Day Releases important publications for public utility and benefit
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पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने आज अपना 18वां स्थापना दिवस मनाया: जनोपयोगी और लाभकारी महत्वपूर्ण प्रकाशन इस अवसर पर जारी किए गए

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने आज (27 जुलाई, 2024) पृथ्वी भवन मुख्यालय में अपना 18वां स्थापना दिवस मनाया, जो पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में करीब दो दशकों के महत्वपूर्ण योगदान का प्रतीक है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, जिसकी स्थापना 27 जुलाई, 2006 को हुई थी, वैज्ञानिक अनुसंधान और सेवाओं के मामले में सबसे आगे रहा है। पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के सभी क्षेत्रों में इस मंत्रालय की उपलब्धियां फैली हुई हैं: वायु या वायुमंडल, जल या जलमंडल, भूमि या स्थलमंडल, ठोस जमीन या क्रायोस्फीयर, जीवन या जीवमंडल और उनकी पारस्परिक क्रियाएं, जो वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी प्रगति के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के 18वें स्थापना दिवस समारोह की शुरुआत एक उद्घाटन समारोह के साथ हुई, जिसमें वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, वैज्ञानिकों, कर्मचारियों और प्रमुख हितधारकों सहित विशिष्ट अतिथियों ने हिस्सा लिया। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद मुख्य अतिथि थे। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ एम रविचंद्रन ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया और उनके सहयोगियों को बधाई दी। उन्होंने कहा, “हम पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की स्थापना के 19वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, हमें अब तक की अनेक उपलब्धियों पर गर्व है और हमें आगे आने वाली चुनौतियों, खासकर खाद्य, जल, ऊर्जा, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन, से निपटने के लिए भी कमर कस लेनी चाहिए, जो हमेशा प्रासंगिक हैं। हम विज्ञान में जो भी काम कर रहे हैं, हमें उनको अपने लोगों के लिए सेवाओं में बदलने के लिए अच्छे विज्ञान के आदर्श वाक्य का पालन करना चाहिए, ताकि समाज का लाभ हो सके।”

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अपने 18वें स्थापना दिवस को स्मरण करते हुए निम्नलिखित प्रकाशनों को शुरू किया:

  1. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) – जो कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय है, ने “भारत में चक्रवात चेतावनी” पर मानक संचालन प्रक्रिया और ‘उच्च प्रभाव वाले वेदर इवेंट्स की निगरानी और पूर्वानुमान के लिए सक्षमता फ्रेमवर्क’ जारी किया। ये दस्तावेज़ हितधारकों को अधिक कुशल और समयबद्ध आपदा न्यूनीकरण प्रयासों में सहायता करेंगे।
  2. राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा – एमओईएस का एक स्वायत्त संस्थान है, ने 14वें भारतीय आर्कटिक अभियान (2023-24) पर एक समेकित रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत का पहला शीतकालीन आर्कटिक अभियान (18 दिसंबर, 2023 को शुरू किया गया) शामिल है। यह रिपोर्ट एनसीपीओआर द्वारा आयोजित भारतीय आर्कटिक अभियान के तहत संचालित वैज्ञानिक परियोजनाओं और क्षेत्र गतिविधियों पर गहन जानकारी प्रदान करती है। यह एनसीपीओआर की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
  3. कोच्चि स्थित समुद्री जीव संसाधन एवं पारिस्थितिकी केंद्र (सीएमएलआरई) – जो कि एमओईएस का एक संलग्न कार्यालय है, ने ‘भारतीय ईईजेड (अनन्य आर्थिक क्षेत्र) से एनोम्यूरन केकड़ों (पैगुरोइडिया, चिरोस्टाइलोइडिया और गैलाथियोइडिया) का वर्गीकरण और प्रणाली विज्ञान’ नामक एक सूची जारी की। यह प्रयास गहरे समुद्र के वर्गीकरण पर क्षमता निर्माण में योगदान देता है और मंत्रालय के समुद्री जैव विविधता दस्तावेजीकरण और संरक्षण प्रयासों के साथ संरेखित है।
  4. एमओईएस न्यूज़लैटर का पहला अंक भी जारी किया गया, जिसे एमओईएस से समाचार, घटनाओं और नवीनतम जानकारी को उजागर करने वाला एक त्रैमासिक प्रकाशन माना जाता है।

यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्टिंग (ईसीएमडब्ल्यूएफ) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस्टिबालिज गैसकॉन द्वारा एक लोकप्रिय विज्ञान वार्ता आयोजित की गई, जिसका शीर्षक था ‘ईसीएमडब्ल्यूएफ में गंतव्य पृथ्वी पहल: किलोमीटर-स्केल फोरकास्टिंग और जलवायु मॉडल में क्रांतिकारी बदलाव: मूल्यांकन और निदान गतिविधियों से अंतर्दृष्टि’। इस कार्यक्रम की सह-अध्यक्षता अपर सचिव और वित्त सलाहकार विश्वजीत सहाय और संयुक्त सचिव डी सेंथिल पांडियन ने की।

डॉ. रविचंद्रन ने कहा, “पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग करने के लिए विज्ञान को आगे बढ़ाना जारी रखेगा।” इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया और ये पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के यूट्यूब चैनल पर आम लोगों के लिए उपलब्ध है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को मौसम, जलवायु, महासागर और तटीय स्थिति, जल विज्ञान, भूकंप विज्ञान और प्राकृतिक आपदाओं के लिए सेवाएं प्रदान करने; स्थायी तरीके से समुद्री सजीव और निर्जीव संसाधनों की खोज और उनका दोहन करने; पृथ्वी के ध्रुवों (आर्कटिक, अंटार्कटिक) और हिमालय का अन्वेषण करने तथा समुद्री संसाधनों और सामाजिक अनुप्रयोगों के अन्वेषण के लिए समुद्री प्रौद्योगिकी विकसित करने का दायित्व सौंपा गया है।

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