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President Draupadi Murmu inaugurated the Mahasamadhi Centenary Celebrations of Sree Narayana Guru
भारत

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने श्री नारायण गुरु की महासमाधि शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज शिवगिरी मठ, वर्कला, केरल में श्री नारायण गुरु की महासमाधि शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि श्री नारायण गुरु भारत के महान आध्यात्मिक मार्गदर्शक और समाज सुधारकों में से एक थे। उन्होंने कहा कि वे एक संत और दार्शनिक थे जिन्होंने हमारे देश के सामाजिक और आध्यात्मिक परिदृश्य को प्रभावित किया। उन्होंने पीढ़ियों को समानता, एकता और मानवता के प्रति प्रेम के आदर्शों में विश्वास करने के लिए प्रेरित किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि 19वीं शताब्दी में हुए अखिल भारतीय पुनर्जागरण के अग्रणी हस्तियों में से एक श्री नारायण गुरु ने अपना जीवन लोगों को अज्ञानता और अंधविश्वास के अंधकार से मुक्ति दिलाने के लिए समर्पित कर दिया। वे समस्त अस्तित्व की एकता में विश्वास करते थे। राष्ट्रपति मुर्मु ने बताया कि श्री नारायण गुरु प्रत्येक जीव में ईश्वर की दिव्य उपस्थिति देखते थे और उन्होंने “एक जाति, एक धर्म, पूरी मानव जाति के लिए एक ईश्वर” का शक्तिशाली संदेश दिया। राष्ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनकी शिक्षाएं धर्म, जाति और पंथ की सीमाओं से परे थीं। उनका मानना ​​था कि वास्तविक मुक्ति ज्ञान और करुणा से आती है, अंधविश्वास से नहीं। श्री नारायण गुरु ने हमेशा आत्म-शुद्धि, सरलता और सार्वभौमिक प्रेम पर ज़ोर दिया।

राष्ट्रपति ने कहा कि उनके द्वारा स्थापित मंदिर, विद्यालय और सामाजिक संस्थाएं उत्पीड़ित समुदायों के बीच साक्षरता, आत्मनिर्भरता और नैतिक मूल्य बढ़ाने के केंद्र बने। मलयालम, संस्कृत और तमिल में उनके छंदों में सरलता के साथ गहन दार्शनिक समझ का मिश्रण था। उनकी रचनाएं मानव जीवन और आध्यात्मिकता की उनकी गहन समझ को दर्शाती हैं ।

राष्ट्रपति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आज की दुनिया में, श्री नारायण गुरु का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने कहा कि एकता, समानता और परस्पर सम्मान का उनका आह्वान मानवता के सामने आने वाले संघर्षों का एक शाश्वत समाधान प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति ने कहा कि श्री नारायण गुरु का एकता का संदेश हमें याद दिलाता है कि सभी मनुष्यों में एक ही दिव्य सार है।

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