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President Droupadi Murmu participated in the 22nd Parsi Mah and Ol Chiki centenary celebrations held in Jamshedpur.
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जमशेदपुर में आयोजित 22वें पारसी महा और ओल चिकी शताब्दी समारोह में भाग लिया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज झारखंड के जमशेदपुर में आयोजित 22वें पारसी महा और ओल चिकी के शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में भाग लिया और उसे संबोधित किया। इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संथाल समुदाय की अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति है। हालांकि, एक शताब्दी पूर्व संथाली भाषा के लिए लिपि के अभाव में रोमन, देवनागरी, ओडिया और बंगाली जैसी विभिन्न लिपियों का प्रयोग किया जाता था। इन लिपियों में कई संथाली शब्दों का सही उच्चारण नहीं हो पाता था। वर्ष 1925 में पंडित रघुनाथ मुर्मु ने ओल चिकी लिपि का सृजन किया। तब से यह लिपि संथाल पहचान का एक सशक्त प्रतीक बन गई है।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें 25 दिसंबर 2025 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर ओल चिकी लिपि में लिखित संथाली भाषा में भारत के संविधान को जारी करने का मौका मिला। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अब संथाली भाषी लोग अपनी मातृभाषा और ओल चिकी लिपि में लिखे संविधान को पढ़ और समझ सकेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि किसी अन्य भाषा में शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ ओल चिकी लिपि में मातृभाषा संथाली सीखना भी संथाल समुदाय के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह देखकर प्रसन्नता व्यक्त की कि लेखक और भाषा प्रेमी संथाली भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने लोगों से पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली संथाली समुदाय और अन्य जनजातीय समुदायों से सीखी जा सकती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि संथाली साहित्य को संथाली समुदाय की मौखिक परंपराओं और गीतों से शक्ति मिलती है। उन्होंने कहा कि कई लेखक अपनी रचनाओं के माध्यम से संथाली साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदायों के लोगों को जागृत करना एक महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने लेखकों से अपने लेखन के माध्यम से ऐसा करने का आग्रह किया।

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि भाषा और साहित्य समुदायों को आपस में जोड़ते हैं। विभिन्न भाषाओं के बीच साहित्यिक आदान-प्रदान उन भाषाओं और समुदायों को समृद्ध करता है। अनुवाद इस आदान-प्रदान को संभव बनाते हैं। इसलिए, संथाली भाषा के छात्रों को अन्य भाषाओं से परिचित कराने की आवश्यकता है। संथाली साहित्य को अन्य भाषाओं के छात्रों तक पहुंचाने के लिए भी इसी तरह के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ इस कार्य को प्रभावी ढंग से करेगा।

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