नमामि गंगे मिशन 2.0 के तहत उत्तर प्रदेश और बिहार में 920 करोड़ रुपये की लागत वाली चार बड़ी परियोजनाओं का परिचालन शुरू
पवित्र नदी गंगा के कायाकल्प और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में नमामि गंगे मिशन 2.0 के तहत चार प्रमुख परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा और चालू कर दिया है। बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा नदी की मुख्यधारा में स्थित ये पहल प्रदूषण को रोकने तथा गंगा और उसकी सहायक नदियों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के चल रहे प्रयासों में महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं।
920 करोड़ रुपये की लागत से बनी ये परियोजनाएँ सीवेज शोधन क्षमता में 145 एमएलडी तक की वृद्धि करेगी, बेहतर सीवर नेटवर्क प्रदान करेंगी और कई नालों को रोकेंगी। राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा निर्धारित कड़े निर्वहन मानकों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन की गई ये पहल गंगा और उसकी सहायक नदियों के जल की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार सुनिश्चित करती हैं।
मुंगेर (बिहार) में परियोजना से सीवर नेटवर्क में सुधार होगा और 366 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से सीवरेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) की स्थापना होगी। इस व्यापक परियोजना में 175 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क का विकास और 30 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी का निर्माण शामिल है। इस परियोजना को डीबीओटी (डिजाइन, निर्माण, परिचालन और हस्तांतरण) मॉडल का उपयोग करके कार्यान्वित किया गया है। इससे लगभग 3,00,000 निवासियों को लाभ होगा, क्योंकि उनके घरों को सीवर नेटवर्क से जोड़ा जाएगा, शहर की स्वच्छता व्यवस्था में काफी सुधार होगा और गंगा नदी में गैर-शोधित सीवेज के निर्वहन को रोका जा सकेगा।
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में स्थापित दूसरी महत्वपूर्ण परियोजना गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए अवरोधन, मार्ग बदलना और शोधन कार्यों के लिए है। 129 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से निर्मित यह परियोजना अब चालू है और नौ नालों को रोककर और छह मौजूदा नाला अवरोधन संरचनाओं का पुनर्वास करके मिर्जापुर में गंगा में प्रदूषण को कम करने पर केंद्रित है। दो नए एसटीपी- पक्का पोखरा और बिसुंदरपुर, जिसमें प्रत्येक की क्षमता 8.5 एमएलडी है – की स्थापना तथा मौजूदा एसटीपी के पुनर्वास के साथ, सीवेज शोधन क्षमता अब बढ़कर 31 एमएलडी हो गई है। यह परियोजना गैर-शोधित सीवेज को गंगा में जाने से रोकती है, जिससे पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है और जलीय जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है।
गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में परियोजना गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए अवरोधन, मार्ग बदलना और शोधन कार्यों के लिए स्थापित की गई है, जिसकी स्वीकृत लागत 153 करोड़ रुपये है। यह परियोजना अब चालू हो गयी है और इसमें 1.3 किमी आई एंड डी नेटवर्क और 21 एमएलडी एसटीपी का विकास शामिल है। यह परियोजना सीवेज को प्रभावी ढंग से शोधित करके शहर को लाभान्वित करती है, जिससे गंगा में गैर-शोधित सीवेज का निर्वहन रुक जाता है।
मिर्जापुर और गाजीपुर के अलावा, बरेली (उत्तर प्रदेश) में 271 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से अवरोधन, मार्ग बदलना और सीवेज शोधन कार्यों के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना स्थापित की गई है, जो अब चालू हो गयी है। इस परियोजना का उद्देश्य नदी में प्रदूषण को कम करना है। इसमें 15 नालों को रोकना और उनका मार्ग बदलना तथा 63 एमएलडी की संयुक्त क्षमता वाले तीन एसटीपी का निर्माण शामिल है। इस परियोजना से शहर को लाभ होगा, क्योंकि शहर के सीवेज का शोधन एसटीपी में किया जाएगा और इससे रामगंगा नदी में गैर-शोधित सीवेज के निर्वहन से बचा जा सकेगा, जिसके परिणामस्वरूप गंगा नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार होगा।
हाइब्रिड एन्युटी पीपीपी (एचएएम) मॉडल पर आधारित इन परियोजनाओं को एडवांस्ड सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर तकनीक के आधार पर डिजाइन किया गया है। एसटीपी का निर्माण राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा निर्धारित सख्त मानकों और दिशा-निर्देशों के अनुसार सावधानीपूर्वक किया गया है। ये परियोजनाएं अपशिष्ट जल का उपचार करके और नदियों को स्वच्छ बनाकर नमामि गंगे मिशन को बढ़ावा देने के साथ-साथ संबंधित शहरों की बड़ी आबादी को भी लाभान्वित करेंगी। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के माध्यम से, भारत सरकार गंगा के समग्र कायाकल्प के लिए अपनी प्रतिबद्धता में अडिग है। ये परियोजनाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ, स्वस्थ और अधिक जीवंत नदी इकोसिस्टम बनाने के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं।