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विश्व जनसंख्या दिवस: बढ़ती आबादी के मुकाबले सुविधाओं का स्तर

विश्व के सबसे बड़े युवा आबादी वाले देश के रूप में भारत है, देश में क्षेत्रफल की तुलना में आबादी हद से ज्यादा बढ़ चुकी है, जिससे विकास का चक्र धीमा होकर समाज के हर वर्ग और हर नागरिक तक सुविधाएं पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। विभिन्न परिस्थितियों के कारण हर किसी को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता या आवश्यक विकास संभव नहीं हो पाता, जिससे देश में संसाधनों का अत्यधिक दोहन, गलिच्छ बस्तियां, अशुद्ध वातावरण, प्रदूषण, अशुद्ध हवा-पानी, निम्न जीवनमान जैसी समस्याओं का निर्माण होता है और आगे ये समस्याएं आर्थिक असमानता, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, महंगाई, नशाखोरी, अपराधवृत्ति, मिलावटखोरी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को तेजी से बढाती है, लोग अपने स्वार्थ के हिसाब से जीने लगते हैं और नैतिकता, नीति-नियम, सामूहिक जिम्मेदारी, देश के प्रति कर्तव्य भावना बस नाम के लिए रह जाती है। अन्नदाता किसानों की आत्महत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही है। हर वर्ग के सर्वांगीण विकास के लिए सरकारी योजनाएं, आयोग, कानून, नीतियां, मंत्रालय, विभाग, संगठन होकर भी लोग समस्याओं से जूझते है क्योंकि उन्हें उचित सुविधाएं आवश्यकता अनुसार नहीं मिल रही है। विश्व के कई विकसित देशों की जनसंख्या के मुकाबले हमारे देश के एक-एक राज्य की जनसंख्या है।

नवीनतम संयुक्त राष्ट्र डेटा वर्ल्डोमीटर विस्तार के आधार पर, 1 जुलाई, 2024 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,441,696,095 थी। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 17.76 प्रतिशत है। जनसंख्या के आधार पर भारत नंबर 1 पर है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2023 तक देश पर 205 लाख करोड़ रुपया कर्ज हो गया, पिछले दस साल में 150 लाख करोड़ कर्ज बढ़ गया, जबकि 2004 में कर्ज 17 लाख करोड़ रुपये था। विश्व आर्थिक मंच रिपोर्ट 2021 अनुसार, भारत की शिक्षा की गुणवत्ता दुनिया में 90 वें स्थान पर है, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2023 में भारत 180 देशों में से 93वें स्थान पर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी लगभग 6.5 करोड़ है जो शहरी भारत का 17 प्रतिशत और भारत की कुल आबादी का 5.4 प्रतिशत है। 2011 में, महाराष्ट्र में झुग्गियों में रहने वाली आबादी 1.18 करोड़ थी, इसके बाद आंध्रप्रदेश में लगभग 1.02 करोड़ थी।

देश में संपत्ति व आय प्राप्ति में बहुत असमानता है, जो लगातार बढ़ रही है। भारत में संपत्ति असमानता से पता चलता है कि शीर्ष 10 फीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77 प्रतिशत हिस्सा है, सबसे अमीर 1 फीसदी के पास देश की 53 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि सबसे गरीब में से आधे लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का केवल 4.1 प्रतिशत हिस्सा है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, शीर्ष 10 फीसदी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत है तथा शीर्ष 1 फीसदी के पास राष्ट्रीय आय का 22 प्रतिशत है। सबसे निम्न 50 फीसदी की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत हो गई है। देश के कुल वस्तु एवं सेवा कर अर्थात जीएसटी का लगभग 64 प्रतिशत पैसा नीचे की 50 फीसदी आबादी से आया, जबकि केवल 4 प्रतिशत शीर्ष 10 फीसदी से आया। एफएओ, आईएफएडी, यूनिसेफ, डब्ल्यूएफपी और डब्ल्यूएचओ की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की 42.1 प्रतिशत आबादी को स्वास्थ्यवर्धक पोषक भोजन तक पहुंच नहीं है, जबकि भारतीय आबादी के लिए यह आंकड़ा 74.1 प्रतिशत है। 16.6 प्रतिशत भारतीय कुपोषित हैं, जबकि दुनिया की आबादी का 9.2 प्रतिशत है। विश्व भूख सूचकांक में भारत 125 देशों में से 111 वें स्थान पर है, जो भूख की तीव्रता के गंभीर स्तर को दर्शाता है।

ब्लूमबर्ग के हवाले से नैटिक्सिस एसए की रिपोर्ट अनुसार, भारत को 2030 तक 11.5 करोड़ नौकरियां पैदा करने की जरूरत है, अर्थात हर साल 1.65 करोड़ नौकरियां। साल 2030 तक, पृथ्वी पर कामकाजी हर पांच लोगों में से एक भारतीय होगा। हाल ही में, मानव विकास संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने ‘भारत रोजगार रिपोर्ट 2024’ नामक एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया है कि भारत बढ़ती युवा बेरोजगारी दर से जूझ रहा है। भारत के बेरोजगार कार्यबल में लगभग 83% युवा हैं, और कुल बेरोजगारी में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर 2022 में 65.7% हो गई है। देश में बेरोजगारी का आलम से तो सभी वाकिफ है ही। चपरासी के पद के लिए भी बड़ी मात्रा में उच्च शिक्षित, पीएचडी पदवी धारक भी आवेदन करते है। सरकारी उपाययोजना, नीतियों के बावजूद, सामाजिक असमानता बनी हुई है। डब्ल्यूएचओ प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 डॉक्टर और 3 नर्स के अनुपात की सिफारिश करता है, जबकि देश में प्रति 1000 लोगों पर 0.73 डॉक्टर और 1.74 नर्सें है।

सरकारी विभागों में बड़ी मात्रा में बरसों से पद खाली पड़े है, अधिकतर विभागों में कर्मचारियों की कमी होने से बहुत बार सरकारी सुव्यवस्था और विकास बोझ तले दबे हुए प्रतीत होते है, जिसका खामियाजा सामान्य जनता को भुगतना पड़ता है। उदाहरण के लिए ट्रैफिक पुलिस की कमी के कारण अनेक शहर में ट्रैफिक सिग्नल पर यातायात की समस्या अर्थात हर ट्रैफिक सिग्नल पर ट्रैफिक पोलिस नजर ही नहीं आती इसलिए अधिकतर वाहन सिग्नल तोड़ कर निकलते है, दुर्घटना होने पर समय पर सहायता नहीं मिलती, ट्रैफिक जाम में एंबुलेंस तक को निकलने जगह नहीं मिलती है। कहीं सड़क खोदकर छोड़ देते है, कहीं सड़क पर कचरे का ढेर लगा रहता है, कहीं खुली गटर, तो कहीं पिने का पानी बहता रहता, तो कहीं दिन में सड़कों पर स्ट्रीट लाइट शुरू रहती है। प्रदूषण के कारण शुद्ध ऑक्सीजन, शुद्ध पानी, शुद्ध आहार अब मिलना मुश्किल हो गया है। मिलावटखोरी का ये आलम है कि शहर में रोज हजारों दुकानों, व्यवसायिकों, होटलों पर जाँच होनी चाहिए, परंतु बड़े त्योहारों या साल में कभी-कभार ही सरकारी विभागों द्वारा जाँच होने की खबरें पढ़ने को मिलती है। कर्मचारियों की कमी से शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, न्याय हर क्षेत्र में समस्या नजर आती है, जिससे काम लंबित होते है, सालो-साल पेंडिंग फाइल का काम चलता है, कार्य की गुणवत्ता निम्न होती जाती है और सामान्य मनुष्य का जीवन संघर्षमय बनता जाता है। ऐसी स्थितियों में सत्ताधारी, अधिकारी वर्ग, कर्मचारी अपने स्वार्थ के लिए पद का दुरूपयोग करने की संभावना बढ़ जाती है।

सौ बात की एक बात है कि जनसंख्या के मुकाबले सुविधाएं कम है और तब मांग की तुलना में पूर्ति कम होने पर गुणवत्ता गिरती है। शहर, महानगर 10 साल में दोगुनी आबादी से बढ़ रहे है, अगर ग्रामीण क्षेत्रों को ही विकसित करके वहां के लोगों के लिए बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा और अच्छे रोजगार के मौके दिए जाये तो उनका शहरों की ओर पलायन कम होगा। बढ़ती आबादी सरकारी प्रणाली, तकनीक और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बनाती है। जनसंख्या नियंत्रण और कुशल प्रशासन होने पर ही सबको बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की सुविधा मिल सकती है, सभी बच्चों को उच्चतम परवरिश मिलेगी, तभी सबका जीवनमान सुधरेगा। सरकार ने कार्यकलापों को तय समय में निपटाना चाहिए, सबको शिक्षा अनुसार रोजगार मिलना चाहिए। प्रत्येक विभाग, क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए पदभरती हर साल होनी चाहिए। हर घर शिक्षा अनुसार एक सरकारी नौकरी की योजना पर जोर देना चाहिए, भले ही फिर सभी मुफ्त की सरकारी योजनाएं बंद करनी पडे, क्योंकि हर परिवार आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार के लिए बेहतर जीवनयापन कर सकता है। अगर चपरासी से लेकर कलेक्टर तक प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, जनप्रतिनिधि, पार्षद, विधायक, सांसद और सरकार में काम करनेवाले हर एक ने सरकारी स्कूल, कॉलेज, रेलवे, सरकारी बस, सरकारी अस्पताल की सेवाओं का उपभोग अपने और परिवार के लिए करें तो, इससे इन विभागों, क्षेत्रों में तेजी से विकास होगा, गुणवत्ता बढ़ेगी। जैसे बड़े नेताओं के दौरे के वक्त रातोरात सड़कें चकाचक कर दी जाती है। इसी सोच से देश का शीघ्र ही कायाकल्प किया जा सकता है। सरकारी यंत्रणा मजबूत, गुणवत्तापूर्ण, पारदर्शक और विकसित होनी चाहिए। प्रत्येक नागरिक को उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से होनी चाहिए। जनता की जिम्मेदारी है कि सरकार को पूरा सहयोग करें और नीति नियमों का पालन करें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मोबाइल & व्हाट्सएप न. 082374 17041

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