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Union Health Minister JP Nadda inaugurated the 19th International Conference of Drug Regulatory Authorities
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने औषधि नियामक प्राधिकरणों के 19वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने आज औषधि विनियामक प्राधिकरणों (आईसीडीआरए) के 19वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। यह आयोजन भारत में पहली बार 14 से 18 अक्टूबर तक आयोजित किया जा रहा है। यह आयोजन केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से किया जा रहा है। इस सम्मेलन में 194 से अधिक विश्व स्वास्थ्य संगठन सदस्य देशों के विनियामक प्राधिकरण, नीति निर्माता और स्वास्थ्य अधिकारी मौजूद रहे।

इस अवसर पर अपने संबोधन में जे.पी. नड्डा ने वैश्विक स्वास्थ्य मानकों को बढ़ाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए साझा प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अप्रत्याशित कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत न केवल स्वास्थ्य आत्मनिर्भरता और नवाचार में एक वैश्विक नेता के रूप में उभरा, बल्कि इसने दुनिया की फार्मेसी के रूप में अपनी भूमिका की भी पुष्टि की। उन्होंने कहा, “भारत ने अपने स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे का तेजी से विस्तार किया और घरेलू और वैश्विक दोनों मांगों को पूरा करने के लिए वैक्सीन उत्पादन को बढ़ाया। एक अरब से अधिक लोगों को कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम का सफल दस्तावेज हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की मजबूती, हमारे स्वास्थ्य कर्मियों के समर्पण और हमारी नीतियों की सुदृढ़ता का प्रमाण है।”

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने दुनिया भर के देशों के लिए आवश्यक दवाओं, टीकों और चिकित्सा आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा, “‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत के आधार पर हमने महामारी के दौरान 150 से अधिक देशों को जीवन रक्षक दवाएं और टीके उपलब्ध कराते हुए अपना समर्थन दिया। अंतरराष्ट्रीय एकता की यह भावना वैश्विक स्वास्थ्य के प्रति भारत का दृष्टिकोण है। हमारा मानना ​​है कि हमारी प्रगति दुनिया की प्रगति से अविभाज्य है और इस तरह, हम वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और स्थिरता में योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

जे.पी. नड्डा ने कहा, “आईसीडीआरए मंच ज्ञान साझा करने, साझेदारी को बढ़ावा देने और नियामक ढांचे को विकसित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है, जो दुनिया भर में चिकित्सा उत्पादों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।”

सीडीएससीओ की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए जे.पी. नड्डा ने कहा, “इसने देश में सुरक्षित और प्रभावकारी दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के निर्माण की मंजूरी देने तथा दुनिया के 200 से अधिक देशों को निर्यात करने के लिए मजबूत प्रणालियां विकसित की हैं।सस्ते मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दवा की उपलब्धता इसकी मुख्य विशेषता है।”  उन्होंने यह भी बताया कि आज 8  दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं चालू हैं, जबकि 2 और प्रयोगशालाएं पाइपलाइन में हैं। आयात की जा रही दवाओं और कच्चे माल की त्वरित जांच और रिलीज़ के लिए विभिन्न बंदरगाहों पर 8 मिनी परीक्षण प्रयोगशालाएं चालू हैं। इसके अलावा, 38 राज्य औषधि नियामक परीक्षण प्रयोगशालाएं चालू हैं। कुल मिलाकर, विनियामक निगरानी तंत्र के तहत हर साल एक लाख से अधिक नमूनों का परीक्षण किया जा रहा है।”

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वर्तमान में सीडीएससीओ में 95 प्रतिशत से अधिक विनियामक प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण किया गया है, जिससे पारदर्शिता आई है और हितधारकों के बीच विश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा वितरण में चिकित्सा उपकरणों के महत्व को देखते हुए, भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग को भी विनियमित किया जा रहा है। अच्छे विनिर्माण दिशानिर्देशों को अधिक व्यापक और डब्ल्यूएचओ-जीएमपी दिशानिर्देशों के अनुरूप बनाने के लिए औषधि नियमों में संशोधन किया गया है।

दवा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाने के लिए दवा उत्पादों के शीर्ष 300 ब्रांडों पर बार कोड या त्वरित प्रतिक्रिया कोड (क्यूआर कोड) प्रदान करना अनिवार्य कर दिया गया है। इसी तरह, सभी एपीआई पैक पर क्यूआर कोड अनिवार्य है, चाहे वे आयात किए जा रहे हों या भारत में निर्मित हों।

केंद्रीय मंत्री ने वैश्विक स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने के लिए भारत की पूर्ण प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए अपने संबोधन का समापन किया। उन्होंने कहा, “हम 3 एस यानी “स्किल, स्पीड और स्केल” में विश्वास करते हैं और इन तीन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करके, हम बिना किसी समझौते के वैश्विक गुणवत्ता मानकों का पालन करते हुए फार्मा उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम हैं। हम रोगाणुरोधी प्रतिरोध से लेकर जीवन रक्षक उपचारों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं। हम इस संवाद में केवल भागीदार नहीं हैं; हम एक स्वस्थ, सुरक्षित और अधिक सशक्त दुनिया के निर्माण में भागीदार हैं।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने अपने भाषण में इस महत्वपूर्ण वैश्विक नियामक मंच की मेजबानी के लिए भारत की सराहना की और औषधि विनियमन में वैश्विक सहयोग के महत्व, विशेष रूप से रोगाणुरोधी प्रतिरोध, महामारी के बाद की दुनिया और स्वास्थ्य सेवा में एआई के सुरक्षित उपयोग जैसी चुनौतियों के मद्देनजर पर प्रकाश डाला।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिणपूर्व एशिया क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. साइमा वाजेद ने कहा कि “भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है जबकि भारतीय दवा उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की 50 प्रतिशत से अधिक वैक्सीन की मांग को पूरा करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज हासिल करने के लिए एक मजबूत नियामक प्रणाली महत्वपूर्ण है। उन्होंने राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरणों के बीच मजबूत नियामक अभिसरण और सूचना साझाकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय दवा उद्योग हाल ही में भारत का चौथा सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र बन गया है, जो वैश्विक दवा आपूर्ति श्रृंखला में हमारे एकीकरण के स्तर का उदाहरण है। भारत दुनिया में दवाइयों का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। अमेरिका के बाहर यूएस एफडीए द्वारा अनुमोदित संयंत्रों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत दुनिया की 50 प्रतिशत वैक्सीन की आपूर्ति करता है, जिनमें से अधिकांश डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (पीएएचओ) जैसी संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और जीएवीआई जैसे संगठनों को जाती हैं।

दक्षिण अफ्रीका में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर-सरकारी वार्ता निकाय की सह-अध्यक्ष मालेबोना प्रेशियस मैटसोसो ने कहा कि चिकित्सा उत्पादों का विनियमन आज सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। विनियामक निर्णयों का प्रभाव न केवल राष्ट्रीय या वैश्विक स्तर पर बल्कि अस्पताल के कमरों में भी पाया जाता है। उन्होंने कहा कि कुशल विनियमन और निगरानी के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप और प्रतिक्रिया को छोटा किया जा सकता है।

भारत को दुनिया की फार्मेसी बताते हुए उन्होंने कहा कि यह टैग भारत के बारे में कुछ उम्मीदें और क्षमताएं लेकर आता है। उन्होंने अंडर-रेगुलेशन और ओवर-रेगुलेशन के विपरीत स्मार्ट रेगुलेशन पर जोर देते हुए अपने संबोधन का समापन किया।

भारत के औषधि महानियंत्रक डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने औषधि नियंत्रण और चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिसमें भारत की पहली सीएआर टी-सेल थेरेपी की मंजूरी भी शामिल है। उन्होंने कहा, “हम अपने सिस्टम में अपने कौशल और क्षमताओं को लगातार उन्नत कर रहे हैं और कम विनियमन और उच्च निष्पादन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”

मुख्य सम्मेलन से पहले एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें फार्मास्यूटिकल, मेडिकल डिवाइस और क्लिनिकल रिसर्च सेक्टर में भारत के नवाचार, क्षमताओं और नेतृत्व को प्रदर्शित किया गया। फार्मास्यूटिकल दिग्गजों, मेडिकल डिवाइस निर्माताओं और हेल्थकेयर इनोवेटर्स सहित प्रमुख उद्योग संस्थान ने नियामकों और हितधारकों के अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने अपनी प्रगति और सफलताओं को प्रस्तुत किया। यह प्रदर्शनी भारत की “विश्व की फार्मेसी” के रूप में स्थिति और वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में इसके बढ़ते प्रभाव का प्रमाण थी।

मुख्य सम्मेलन सत्रों के अलावा, कई अतिरिक्त मीटिंग भी होंगी, जहां विभिन्न देशों के प्रतिनिधि विशिष्ट विनियामक चुनौतियों और अवसरों पर केंद्रित चर्चा करेंगे। ये बैठकें विनियामक प्रणालियों को मजबूत करने, नवाचार को बढ़ावा देने और वैश्विक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिए सहयोग को बढ़ावा देने पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संवादों को सुविधाजनक बनाएंगी।

मुख्य चर्चाएं और नियामक चुनौतियां

5 दिवसीय सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें नियामक अधिकारी और बड़े उद्योगपति वैश्विक औषधि और चिकित्सा उपकरण विनियमन को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे। कुछ प्रमुख सत्र इस प्रकार हैं:

  • स्मार्ट विनियमन पर पूर्ण सत्र : चर्चाएं विनियामक निर्भरता के उभरते परिदृश्य और विश्व सूचीबद्ध प्राधिकरण (डब्ल्यूएलए) ढांचे के इर्द-गिर्द घूमेंगी। वैश्विक विनियामक इस बात का पता लगाएंगे कि विभिन्न देशों में प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए सहयोग को कैसे बढ़ाया जाए।
  • चिकित्सा उपकरणों पर कार्यशालाएं : आईवीडी (इन विट्रो डायग्नोस्टिक्स) सहित चिकित्सा उपकरणों के विनियमन पर महत्वपूर्ण ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जहां विशेषज्ञ वैश्विक और क्षेत्रीय नियामक ढांचे में रुझानों पर चर्चा करेंगे।
  • फार्मास्युटिकल प्रारंभिक सामग्रियों की गुणवत्ता : यह कार्यशाला फार्मास्युटिकल उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उनके आरंभ से ही कड़े नियमों की आवश्यकता पर प्रकाश डालेगी।
  • स्वास्थ्य सेवा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई): नियामक और उद्योग विशेषज्ञ नियामक निरीक्षण, फार्माको-सतर्कता और नैदानिक ​​परीक्षणों को बेहतर बनाने में एआई की भूमिका पर चर्चा करेंगे, साथ ही डेटा गोपनीयता और कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियों का भी समाधान करेंगे।
  • कोविड-19 महामारी के प्रत्युत्तर में विनियामक तैयारी : यह एक पूर्ण सत्र है जो कोविड-19 महामारी से सीखे गए सबक और भविष्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिए तैयार रहने हेतु निरंतर विनियामक नवाचार की आवश्यकता पर केंद्रित है।

19वीं आईसीडीआरए भागीदारी और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से वैश्विक विनियामक प्रणालियों को मजबूत करने पर जोर देगी। विभिन्न देशों के विनियामक प्राधिकरण चिकित्सा उत्पादों के लिए विनियमनों को सुसंगत बनाने, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को संबोधित करने और पारंपरिक दवाओं को आगे बढ़ाने में चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करेंगे।

इस कार्यक्रम में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल, स्वास्थ्य मंत्रालय के सलाहकार (लागत) राजीव वधावन, भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको एच. ओफ्रिन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

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