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Samvidhan Hatya Diwas is being observed today to pay tribute to those who suffered during the Emergency
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आपातकाल के दौरान पीड़ित लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए आज संविधान हत्या दिवस मनाया जा रहा है

आज संविधान हत्‍या दिवस है। यह दिन हमें उन घटनाओं की याद दिलाता है, जब 25 जून 1975 को संविधान का गला घोंटकर देश पर आपातकाल थोप दिया गया था। यह आपातकाल से पीड़ित प्रत्‍येक व्‍यक्ति को श्रद्धांजलि देने का दिन भी है।

1975 में, आज ही के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आंतरिक अशांति के खतरे का हवाला देते हुए अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की थी। यह घोषणा बढ़ती राजनीतिक अशांति और न्यायिक घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में की गई थी जिसने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सत्तारूढ़ नेतृत्व की वैधता को हिला कर रख दिया था। कार्यपालिका को अत्‍यधिक शक्तियां प्राप्त हुई और करीबन सब कुछ केंद्रीय नियंत्रण में ले लिया गया था। घोषणा के बाद, अभिव्‍यक्ति की आजादी जैसे संवैधानिक व्‍यवस्‍था को निलंबित कर दिया गया। सभी समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दी गई। यहां तक ​​​​कि वैधानिक निगरानी संस्था, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी समाप्त कर दिया गया था। आकाशवाणी से मन की बात कार्यक्रम में अपने विचार साझा करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आपातकाल देश के इतिहास का सबसे काला युग था जब लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर अत्याचार किए गए थे।

यह भारत के इतिहास का काला दौर था लाखों लोग ने इमरजेंसी का पूरी ताक‍त से विरोध किया। लोकतंत्र के समर्थकों पर उस दौरान इतना अत्‍याचार किया गया, इतनी यातनाए दी गई कि आज भी मन सीहर उठता है।

आपातकाल के दौरान हुए संवैधानिक संशोधनों ने अदालतों को आपातकाल घोषित करने के राष्ट्रपति के फैसले पर सवाल उठाने से रोक दिया था और प्रधानमंत्री तथा लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को न्यायिक जांच से बाहर कर दिया था।

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