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Vice President CP Radhakrishnan addressed the eighth 180th fasting breaking ceremony of Acharya Hansratna Surishwarji Maharaj in New Delhi
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उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने नई दिल्ली में आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज के आठवें 180वें उपवास पारण समारोह को संबोधित किया

उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने नई दिल्ली में आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज जी के आठवें 180 उपवास पारण समारोह में भाग लिया। सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने दिव्यतपस्वी आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज के पवित्र महापर्ण में भाग लेने के लिए बहुत आभार जताया।

दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक, जैन धर्म के गहन योगदान पर रोशनी डालते हुए, सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि इसकी शिक्षाओं – अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अनेकांतवाद – ने भारत और विश्व पर अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी द्वारा अपनाई गई अहिंसा, वैश्विक शांति आंदोलनों को प्रेरित करती रही है। उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि शाकाहार, पशुओं के प्रति करुणा और सतत जीवन शैली के जैन सिद्धांतों को पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के एक आदर्श के रूप में दुनिया भर में मान्यता मिली है।

अपनी व्यक्तिगत यात्रा को याद करते हुए, सीपी राधाकृष्णन ने बताया कि उन्होंने 25 वर्ष पहले काशी की यात्रा के बाद शाकाहार अपनाया था, और यह पाया था कि इससे विनम्रता, परिपक्वता और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम की भावना विकसित होती है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्राकृत को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा देने तथा ज्ञानभारतम मिशन जैसी पहलों के माध्यम से जैन पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए सरकार के प्रयासों की प्रशंसा की।

उपराष्ट्रपति ने तमिलनाडु में जैन धर्म की ऐतिहासिक व्यापकता और तमिल संस्कृति पर इसके व्यापक प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने संगम और संगमोत्तर काल के दौरान तमिल साहित्य में जैन धर्म के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख किया और इलांगो आदिगल द्वारा रचित शिलप्पादिकारम और कोंगु वेलिर द्वारा रचित पेरुंगथाई जैसी शास्त्रीय रचनाओं का हवाला दिया, जो अहिंसा, सत्य और त्याग के दार्शनिक और नैतिक आदर्शों को दर्शाती हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि तिरुक्कुरल और संगम साहित्य जैसे ग्रंथों पर जैन प्रभाव है। सीपी राधाकृष्णन ने तमिलनाडु भर में कई जैन मठों की उपस्थिति पर प्रकाश डाला, जो ऐतिहासिक रूप से शिक्षा के केंद्र रहे हैं।

सीपी राधाकृष्णन ने आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज की इस बात के लिए सराहना की कि उन्होंने यह सिद्ध किया है कि सच्ची शक्ति धन या पद में नहीं, बल्कि संयम, करुणा और अनुशासन में निहित है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि आचार्य जी का “संस्कृति बचाओ, परिवार बचाओ, राष्ट्र निर्माण” अभियान समाज को मूल्यों को बनाए रखने, परिवारों को मज़बूत बनाने और एक सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रेरित करता है।

आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज एक श्रद्धेय जैन मुनि हैं जो अपनी आध्यात्मिक साधना और दीर्घकालिक तप साधना के लिए जाने जाते हैं। महापर्णा उनके 180 दिनों के उपवास का औपचारिक समापन है, जिसे उन्होंने आठवीं बार किया है, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों के प्रसार के प्रति उनकी भक्ति, अनुशासन और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह आयोजन श्रद्धालुओं और व्यापक समुदाय के लिए आस्था, संयम और प्रेरणा का प्रतीक है।

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