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भारत के अटॉर्नी जनरल ने सीसीआई के 15वें वार्षिक दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में विशेष रूप से संबोधित किया

भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने आज नई दिल्ली में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के 15वें वार्षिक दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में विशेष रूप से संबोधित किया।

आर. वेंकटरमणी ने अपने संबोधन में बताया कि कैसे प्रतिस्पर्धा के विनियमन की आवश्यकता प्रतिस्पर्धा में अनुचित प्रथाओं की रोकथाम, मूल्य निर्धारण और उपभोक्ता कल्याण के क्षेत्रों में फैल गई है तथा निर्धारण कारक के रूप में सामान्य लोगों की भलाई के युग में पहुँच गई है।

आर. वेंकटरमणी ने पॉल सैमुएलसन के इस कथन का उल्लेख किया कि बाजार काम कर सकते हैं, लेकिन केवल सरकार द्वारा बनाए गए सुरक्षा उपायों के साथ। उन्होंने कहा कि ऐसे सुरक्षा उपायों में प्रतिस्पर्धा विनियमन सम्मिलित हैं। आर. वेंकटरमणी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मुक्त बाजार के इंजन और सामाजिक लाभ की छत्रछाया के बीच सह-अस्तित्व के नए विचारों को गढ़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रोत्साहनों और बाजार के विचारों के स्वतंत्र उपयोग के बीच मार्गदर्शन का कार्य एक अलग कानूनी नवाचार होगा, जो अन्य नियामक विचारों से अलग होगा।

आर. वेंकटरमणी ने कुछ व्यापक पहलुओं पर बात की, जैसे प्रतिस्पर्धा कानूनों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग और वहां से शुरू होना; सामान्य रूप से नियामक कानूनों के लिए चुनौतियां; उपभोक्ताओं और आपूर्तिकर्ताओं तथा आपूर्तिकर्ताओं के बीच आर्थिक शक्ति के पुनर्वितरण का कार्य; नए-उभरते स्थिरता के विचार और प्रतिस्पर्धा नीति, क्योंकि स्थिरता का व्यवसाय व्यापार की स्थिरता को नियंत्रित करेगा।

आर. वेंकटरमणी ने डिजिटल बाजारों के संदर्भ में कहा कि चल रही बहस एक ओर पहले और बाद की कार्रवाई (जांच और प्रतिबंध) और गलत नकारात्मकता की संभावना बनाम पहले और पुरानी कार्रवाई (प्रतिबंध और निषेधात्मक नियम) और दूसरी ओर गलत सकारात्मकता की संभावना के बारे में है। बहस एक व्यापक विनियामक व्यवस्था तैयार करने की भी है, जिसमें शामिल गतिविधि की अनदेखी की जाती है, जबकि बाजार के लिए अधिक विशिष्ट विनियमन होते हैं। आर. वेंकटरमणी ने कहा कि इसमें सहायता के लिए, व्यवहार अर्थशास्त्र जैसे उपकरण उपयोगी हैं, जो मानवीय प्राथमिकताओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।

आर. वेंकटरमणी ने आगे उल्लेख किया कि हमारे प्रतिस्पर्धा कानून के मौजूदा ढांचे और सीखे गए और सीखे जाने वाले सबक को देखते हुए हमें अपनी बहसों को अपनी घरेलू सीमाओं से थोड़ा आगे ले जाना होगा और साथ ही अपने विशिष्ट राष्ट्रीय स्वरूप का अनुसरण करना होगा। जिस प्रकार मानवीय नवाचार गतिशील होते हैं, उसी प्रकार बाजार की गतिविधियाँ भी गतिशील होती हैं, लेकिन चुनौती प्रासंगिक सशक्तीकरण और संश्लेषणात्मक सिद्धांतों का एक स्थान तैयार करने की है।

इस कार्यक्रम में सरकार, नियामक निकायों, पीएसयू, उद्योग, शिक्षा, वाणिज्य मंडल और कानूनी बिरादरी के बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।

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