भारत 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (एटीसीएम) और पर्यावरण संरक्षण समिति (सीईपी) की 26वीं बैठक में अंटार्कटिका में पर्यटन को विनियमित करने पर पहली बार केंद्रित चर्चा को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। आज इस अवसर पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू उपस्थित रहे। 20 मई से 30 मई, 2024 तक केरल के कोच्चि में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा और अंटार्कटिक संधि सचिवालय इन बैठकों का आयोजन करेंगे। इस सभा में लगभग 40 राष्ट्र के 350 से अधिक प्रतिभागी हैं।
अंटार्कटिक संधि, जो 1959 में हस्ताक्षरित 56 पक्षकारों का एक बहुपक्षीय समझौता है, के प्रावधानों के अनुसार एटीसीएम और सीईपी उच्च स्तरीय वैश्विक वार्षिक बैठकें आयोजित की जाती हैं। इन बैठकों में, अंटार्कटिक संधि के सदस्य देश अंटार्कटिका के विज्ञान, नीति, शासन, प्रबंधन, संरक्षण और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हैं। सीईपी की स्थापना 1991 में अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल के तहत की गई थी। सीईपी अंटार्कटिका में पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा पर एटीसीएम को सलाह देता है।
भारत 1983 से अंटार्कटिक संधि का सलाहकार पक्ष रहा है। भारत अंटार्कटिका के वैज्ञानिक अन्वेषण और पर्यावरण संरक्षण को अन्य 28 सलाहकार पक्षों के साथ, संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके पास एटीसीएम में प्रशासन, वैज्ञानिक अनुसंधान, पर्यावरण संरक्षण और लॉजिस्टिकल सहयोग के मामलों में लिए गए निर्णयों और प्रस्तावों पर प्रस्ताव रखने और मतदान करने का अधिकार है। इसके अलावा, यह अनुसंधान केंद्र स्थापित कर सकता है, वैज्ञानिक कार्यक्रम और लॉजिस्टिक संबंधी संचालन कर सकता है, पर्यावरण नियमों को लागू कर सकता है और अंटार्कटिक संधि के सदस्यों द्वारा साझा किए गए वैज्ञानिक डेटा और शोध निष्कर्षों तक पहुंच सकता है। अनुबंध करने वाले और सलाहकार पक्ष अंटार्कटिक संधि के अनुपालन, पर्यावरण प्रबंधन, वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और अंटार्कटिका को सैन्य गतिविधि और क्षेत्रीय दावों से मुक्त, शांति के क्षेत्र के रूप में बनाए रखने के लिए उत्तरदायी हैं। एटीसीएम का प्रशासन अंटार्कटिक संधि सचिवालय के अर्जेंटीना मुख्यालय से किया जाता है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख डॉ. एम. रविचंद्रन ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा, “अंटार्कटिका जंगल और वैज्ञानिक खोज की अंतिम सीमाओं में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। इस असाधारण क्षेत्र के प्रबंधकों के रूप में, यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस क्षेत्र में अनुसंधान और पर्यटन सहित सभी गतिविधियां इस तरीके से संचालित की जाएं जिससे भावी पीढ़ियों के लिए इसकी पारिस्थितिक अखंडता सुरक्षित रहे। अंटार्कटिक संधि प्रणाली के व्यापक ढांचे में शामिल करने के लिए कार्रवाई योग्य सिफारिशों की एक श्रृंखला लाने वाले 46वें एटीसीएम के इस महत्वपूर्ण पहल का नेतृत्व करने में भारत सम्मानित महसूस कर रहा है।” भारत, अंटार्कटिक संधि प्रणाली का एक प्रतिबद्ध सदस्य होने के नाते, अंटार्कटिका में बढ़ती पर्यटन गतिविधियों और महाद्वीप के नाजुक पर्यावरण पर उनके प्रभाव से निपटने की तत्काल आवश्यकता महसूस करता है। पिछले कुछ वर्षों में अंटार्कटिका आने वाले पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, पर्यटन एक प्रमुख मुद्दा बन गया है, जिससे यह महत्वपूर्ण हो गया है कि इस अनूठे और प्राचीन क्षेत्र में टिकाऊ व उत्तरदायित्वपूर्ण अनुसंधान सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नियम बनाए जाएं। उन्होंने आगे बताया कि भारत ने एहतियाती सिद्धांतों पर आधारित एक व्यापक, सक्रिय और प्रभावी पर्यटन नीति की वकालत की है। 1966 से एटीसीएम में पर्यटन को विनियमित करने पर चर्चा चल रही है, लेकिन ये एजेंडा आइटम, सत्र, कागजात या संकल्प तक ही सीमित रहे हैं। भारत द्वारा आयोजित 46वें एटीसीएम में पहली बार अंटार्कटिका में पर्यटन को विनियमित करने के लिए एक समर्पित कार्य समूह तैयार किया गया है ।
एनसीपीओआर के निदेशक डॉ. थंबन मेलोथ ने बताया कि भारत के पास 2022 में लागू भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम के द्वारा अंटार्कटिका में पर्यटन सहित भारत की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचा है। उन्होंने कहा, “भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम भारत के पर्यटन नियमों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ समन्वित करता है और सामान्य संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अन्य अंटार्कटिक संधि देशों के साथ सहयोग करता है।
भारत ने 2022 में पहली बार ‘बदलती दुनिया में अंटार्कटिका’ विषय पर 10वें एससीएआर (अंटार्कटिक अनुसंधान पर वैज्ञानिक समिति) सम्मेलन की मेजबानी की और अंतर्राष्ट्रीय ध्रुवीय वर्ष समारोह में योगदान दिया। दक्षिणी महासागर में 11 भारतीय अभियान हुए हैं, और वेडेल सागर और दक्षिणी ध्रुव में एक-एक अभियान हुआ है। 2007 में, भारत ने अंटार्कटिक संधि प्रणाली के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, नई दिल्ली में 30वें एटीसीएम का आयोजन किया। भारत ने अंटार्कटिक बर्फ शेल्फ और बर्फ वृद्धि का अध्ययन करने एवं जलवायु अध्ययन के लिए बर्फ कोर ड्रिल करने के लिए नॉर्वे और यूके के साथ भी सहयोग किया।
एमओईएस के सलाहकार और मेजबान देश सचिवालय के प्रमुख डॉ. विजय कुमार ने कहा, “पिछले चार दशकों में, भारत ने अंटार्कटिक अनुसंधान, पर्यावरण प्रबंधन और अंटार्कटिक संधि के ढांचे के भीतर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में खुद को स्थापित किया है”। भारत अंटार्कटिक संधि प्रणाली में सलाहकार पक्षों के रूप में कनाडा और बेलारूस को शामिल करने की संभावना पर चर्चा करने के लिए एक मंच भी प्रदान करेगा। कनाडा और बेलारूस क्रमशः 1988 और 2006 से अंटार्कटिक संधि प्रणाली पर हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं। चर्चा को सुविधाजनक बनाने में भारत की भागीदारी अंटार्कटिका में वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के व्यापक उद्देश्यों के अनुरूप नए सलाहकार पक्षों को शामिल करना है।
46वें एटीसीएम और 26वें सीईपी के अध्यक्ष के रूप में चुने गए राजदूत पंकज सरन ने कहा, “अंटार्कटिका संधि प्रणाली में देशों के सहयोगात्मक प्रयास, प्राचीन पर्यावरण को संरक्षित करने और अंटार्कटिका में वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण हैं। अपने नेतृत्व और प्रतिबद्धता के माध्यम से, भारत अंटार्कटिक शासन के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।”
46वें एटीसीएम पूर्ण सत्र में एमओईएस के पूर्व सचिव, पद्म भूषण डॉ. शैलेश नायक द्वारा ‘अंटार्कटिका और जलवायु परिवर्तन’ विषय पर एक वार्ता भी शामिल थी। इस कार्यक्रम में विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) पवन कपूर भी उपस्थित थे।
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