मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय (एमओएफएएच एंड डी) के अंतर्गत मत्स्य पालन विभाग, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत पोत संचार और सहायक प्रणाली की सहायता से समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा बढ़ाने में सक्षम रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 30 अगस्त, 2024 को महाराष्ट्र के पालघर में आरम्भ की गई इस परियोजना में 364 करोड़ रुपये का परिव्यय किया गया है। ये ट्रांसपोंडर सुविधा मछुआरों को नि:शुल्क दी जा रही है। मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की स्वदेशी ट्रांसपोंडर तकनीक युक्त पोत संचार और सहायक प्रणाली पहल का चक्रवात दाना के दौरान मछुआरों को सुरक्षित रखने में उल्लेखनीय योगदान रहा। इस प्रणाली का उद्देश्य मछली पकड़ने के दौरान समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इससे पहले मोबाइल कवरेज रेंज से बाहर उनके लिए दो-तरफ़ा संचार संभव नहीं था।
सरकार की सभी तेरह तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक लाख मछली पकड़ने की नौकाओं में स्वदेशी तकनीक से विकसित ट्रांस्पोंडर लगाने की योजना है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित इस तकनीक को अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) के तहत इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।
ओडिशा इन ट्रांसपोंडरों को लगाने में सक्रिय रहा है और राज्य में 1000 से अधिक ट्रांसपोंडर लगाए गए हैं। ओडिशा के मछुआरों के लिए यह तकनीक जीवन रेखा सिद्ध हुई है और हाल में ओडिशा के तट और बंगाल की खाड़ी के आस-पास के क्षेत्रों में आए चक्रवाती तूफान के दौरान यह उनके लिए काफी लाभदायक रहा। चक्रवाती तूफान दाना जब ओडिशा के पास पहुंच रहा था तब ओडिशा के राज्य राहत आयुक्त ने मौसम विभाग के दोपहर के बुलेटिन के आधार पर 20 अक्टूबर 2024 को तूफान संबंधी चेतावनी जारी की। पोत संचार और सहायक प्रणाली की सहायता से वास्तविक समय के आधार पर मछुआरों को तूफान आने की चेतावनी और सलाह जारी की गई। इससे समुद्र में मछुआरों की जान बचाने में मदद के साथ ही उनके संसाधनों की क्षति रोकने में भी सहायता मिली।
इन ट्रांसपोंडरों द्वारा अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र अहमदाबाद के माध्यम से मछुआरों को 21 अक्टूबर से 26 अक्टूबर 2024 तक समुद्र में न जाने की सलाह दी गई। समुद्र में मछली पकड़ रहे मछुआरों को भी तुरंत किनारे पर लौटने को कहा गया। समय पर दी गई इस महत्वपूर्ण चेतावनी से मछुआरों को चक्रवाती तूफान से पहले ही इसका सामना करने के लिए आवश्यक सावधानी बरतने का मौका मिला। भेजे गए संदेशों में कहा गया कि समुद्र में मौजूद मछुआरों को तुरंत तट पर लौटने की सलाह दी जाती है और उन्हें 21 से 26 अक्टूबर 2024 के दौरान ओडिशा तट और उससे सटे उत्तरी बंगाल की खाड़ी के समुद्र में न जाने के लिए आगाह किया जाता है। ये संदेश अंग्रेजी और ओडिया दोनों में प्रेषित किए गए, ताकि सभी मछुआरे स्थिति की गंभीरता को समझ सकें।
अधिकारी नौकाओं और जहाज़ों से संपर्क करने के लिए परंपरागत तौर पर अत्यन्त उच्च आवृत्ति वाले रेडियो और फोन कॉल का इस्तेमाल करते थे और यह मछुआरों पर निर्भर था कि वे अपनी नौकाओं की सटीक जानकारी दें। इस प्रणाली की कई चुनौतियां थीं। दूर समुद्र में मशीन से चलने वाली नौकाओं का पता लगाना अक्सर कठिन होता था। कुछ मछुआरे और नाविक नौकाओं और जहाज़ों की संख्या और स्थान के बारे में सटीक जानकारी देने में असमर्थ होते थे। सटीक जानकारी के अभाव में प्रभावी संचार बाधित होने से समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा को गंभीर जोखिम रहता था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के उपग्रहों का इस्तेमाल कर पोत संचार और सहायक प्रणाली से अधिकारी 20 अक्टूबर 2024 की शाम समुद्र में सभी नौकाओं और जहाजों को सामूहिक संदेश भेज सके। समय पर दी गई सूचना ही परिवर्तनकारी साबित हुई, जिससे त्वरित प्रतिक्रिया द्वारा नौकाओं और जहाजों को 21 अक्टूबर 2024 की सुबह तक तट पर लौटाया जा सका। सामूहिक संदेश केवल सूचना भर नहीं थी, बल्कि यह जीवन रेखा साबित हुई जिसने समुद्र में जाने वाले मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकी।
चक्रवाती तूफान दाना के दौरान ट्रांसपोंडर और नभमित्र एप्लिकेशन के उपयोग से नौकाओं और जहाजों की स्थिति की प्रभावी ट्रैकिंग और उनकी गति पर निगरानी रखकर उन्हें सुरक्षित रखा जा सका। इस एप्लिकेशन से अधिकारियों को तट पर प्रत्येक जहाज के आगमन के समय का अनुमान लगाने में मदद मिली जिससे चक्रवात से पहले ही मछुआरों की सुरक्षित वापसी हो सकी। नभमित्र एप्लीकेशन ट्रैकिंग की व्यापक सुविधा प्रदान करता है जिसमें नौकाओं की संख्या और ट्रांसपोंडर आईडी इत्यादि आवश्यक जानकारी मिलती है। एप्लिकेशन द्वारा नौकाओं के स्थान, दिशा और गति की वास्तविक समय में जानकारी से अधिकारी प्रत्येक नौकाओं और जहाजों की गतिविधियों की सटीकता से निगरानी रख सके।
इसके अतिरिक्त, यह एप चक्रवात की जानकारी देने में सक्षमता से कार्य करता है और अक्षांश और देशांतर निर्देशांकों द्वारा चक्रवात के नाम, श्रेणी और विशिष्ट स्थान का विवरण प्रदान करता है। इन आंकड़ों में चक्रवात की तिथि और समय, सतह पर हवा की अधिकतम गति और जिस तिथि को यह जानकारी प्राप्त की गई थी, उसका विवरण था। इस महत्वपूर्ण जानकारी की सुलभता से, मछुआरे बदलती परिस्थिति के अनुरूप मौसम का सामना करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हो सके। चक्रवात से संबंधित आंकड़ों के अलावा, नभमित्र एप से समुद्र की स्थिति, हवा की गति और दिशा, और दृश्यता सहित महत्वपूर्ण मौसम अपडेट भी मिले। समुद्री पर्यावरण की यह समग्र जानकारी मछुआरों के लिए काफी महत्वपूर्ण रही, जिससे वे अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा सके। इन उपायों से अधिकारी मछुआरों को चक्रवात से उत्पन्न खतरों के बारे में अलर्ट जारी कर समुद्र से उनकी प्रभावी ढंग से वापसी समन्वयित करने में सक्षम रहे।
नौकाओं और जहाजों को वास्तविक समय में ट्रैक करने की क्षमता, संकट प्रबंधन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। अधिकारी इनकी मदद से पारादीप से लगभग 126 नौकाओं की निगरानी कर सके जो उस समय समुद्र में थे। इससे चक्रवाती तूफान दाना के आने से पहले ही 22 अक्टूबर 2024 तक सभी नौकाओं की तट पर सुरक्षित वापसी सुनिश्चित हो गई। बेहतर ट्रैकिंग क्षमता से अधिकारी नौकाओं और जहाजों की स्थिति के बारे में अवगत रहे जिससे उन्हें किसी आपात स्थिति से निपटने में मदद मिली। इसके अलावा, वेसल कम्युनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम की संचार क्षमताएं स्थानीय भाषाओं में आपातकालीन संदेशों को प्रसारित करने में सहायक रही। इस सुविधा ने स्पष्टता और तात्कालिकता सुनिश्चित की, जिससे मछुआरों को बिना देरी के सुरक्षित लौटने के महत्व को समझने में मदद मिली। बहुभाषी समर्थन ने सिस्टम की प्रभावशीलता को बढ़ाया, क्योंकि कई मछुआरे अंग्रेजी या हिंदी में धाराप्रवाह नहीं हो सकते हैं। स्थानीय बोलियों का उपयोग करके, अधिकारी आवश्यक जानकारी को अधिक प्रभावी ढंग से संप्रेषित कर सके, जिससे राहत उपाय समय रहते पूरे हो सके।
तूफान आपदा के दौरान समाधान समन्वय पोत संचार और सहायक प्रणाली के माध्यम से ही संभव था। इस प्रणाली से सक्रिय सहायता सक्षमता से दी जा सकी और इससे मत्स्य विभाग, तटरक्षक और स्थानीय अधिकारियों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग भी सुविधाजनक तरीके से हो सका। आपात स्थितियों के दौरान अंतर-एजेंसी सहयोग का यह स्तर महत्वपूर्ण है और सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जाए तो राहत और सहायता तेजी से दी जा सकती है। चक्रवाती तूफान दाना के दौरान पोत संचार और सहायक प्रणाली का सफल उपयोग संकट प्रबंधन और आपदा तैयारियों में उल्लेखनीय साबित हुआ है। यह दर्शाता है कि प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में तटीय समुदायों को अनुकूल स्थिति में ढालने के साथ ही आजीविका की रक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ कैसे उठाया जा सकता है। इस प्रणाली ने संकट प्रबंधन की स्थिति में प्रभावशाली सुधार को दर्शाते हुए पोत संचार और सहायता प्रणाली की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित किया है।
चक्रवाती तूफान दाना के दौरान मछुआरों के जीवन की रक्षा करने और भविष्य की समुद्री चुनौतियों के लिए ट्रांसपोंडर प्रौद्योगिकी की क्षमताएं भी इससे सामने आई हैं। वास्तविक समय संचार और निगरानी को सक्षम कर, पोत संचार और सहायक प्रणाली ने समुद्री सुरक्षा में एक नया मानक स्थापित किया है। इस संकट के दौरान प्रणाली की प्रभावशीलता भविष्य के कार्यान्वयन के लिए एक आदर्श साबित हुआ है और बताता है कि सुरक्षा और तैयारियों को बढ़ाने के लिए अन्य क्षेत्रों और स्थितियों में समान तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। चक्रवाती तूफान दाना के बचाव प्रबंधन में सीखे गए सबक अमूल्य हैं। यह आवश्यक है कि आपदा प्रबंधन के लिए उन्नत तकनीकों को अपनाया जाए। पोत संचार और सहायक प्रणाली समुद्री सुरक्षा बुनियादी ढांचे में निवेश के महत्व को दर्शाती है। इस तूफान के दौरान समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में यह प्रणाली काफी महत्वपूर्ण उपाय सिद्ध हुआ है। वास्तविक समय में ट्रैकिंग, प्रभावी संचार और समन्वित आपातकालीन राहत उपायों की सुविधा प्रदान कर इस प्रणाली से यह पता चला है कि कैसे तकनीक द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में समुद्री सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है। संकट में इसकी सफलता ने आजीविका की सुरक्षा और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयारी बढ़ाने में उन्नत तकनीकों को एकीकृत करने की प्रभावशीलता को भी प्रमाणित किया है। भारत के समुद्री सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने के क्रम में चक्रवाती तूफान दाना से सीखे गए सबक भविष्य में ऐसे पहल को आगे बढ़ाएंगे जिससे अंततः मछली पकड़ने वाले समुदाय के लिए सुरक्षित वातावरण बनेगा। स्वदेशी तौर पर डिजाइन और विकसित किए गए पोत संचार और सहायक प्रणाली का प्रभावी उपयोग भविष्य में सुरक्षा की स्थिति के प्रति काफी हद तक आश्वस्त करता है। इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि मछुआरों को आपदा की स्थिति की पूर्व जानकारी दी जा सके, जिससे वे अधिक आत्मविश्वास से प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सकें।
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