कोयला और खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने स्थिरता और कुशल प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आज कोयला क्षेत्र में ओवरबर्डन के लाभकारी उपयोग पर उच्चाधिकार विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) की रिपोर्ट पेश की। नई दिल्ली स्थित सुषमा स्वराज भवन में आयोजित कोयला क्षेत्र की अर्धवार्षिक समीक्षा कार्यक्रम में कोयला और खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे, कोयला मंत्रालय के सचिव विक्रम देव दत्त, कोयला मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और कोयला/लिग्नाइट पीएसयू के सीएमडी मौजूद रहे।
एचपीईसी में पांच केंद्रीय मंत्रालयों, नीति आयोग और कोयला कंपनियों के बहु-विषयक विशेषज्ञ शामिल थे। ओवरबर्डन में मिट्टी, चट्टान और खनिज शामिल हैं और इन्हें पारंपरिक रूप से कोयला खनन के दौरान अपशिष्ट के रूप में त्याग दिया जाता है, समिति को इनके उपयोग के नवीन तरीकों की पहचान करने का काम सौंपा गया था।
ओवरबर्डन को मूल्यवान संसाधनों के रूप में उपयोग करने के लिए रिपोर्ट एक व्यापक रूपरेखा तैयार करती है। ऐतिहासिक रूप से अपशिष्ट के रूप में देखे जाने वाले ओवरबर्डन को अब पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने और स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता वाली संपत्ति के रूप में उपयोग किया जा रहा है। एचपीईसी रिपोर्ट ‘संपूर्ण खनन’ दृष्टिकोण की वकालत करती है जिसका उद्देश्य स्थायी खनन तरीकों में योगदान करते हुए आर्थिक मूल्य श्रृंखला में ओवरबर्डन को एकीकृत करना है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताओं में ओवरबर्डन को संसाधित करके निर्मित-रेत (एम-रेत) का उत्पादन करने की रणनीतियां शामिल हैं। निर्मित-रेत का उपयोग निर्माण परियोजनाओं में किया जा सकता है, जिससे नदी की रेत पर निर्भरता कम हो सकती है और पर्यावरणीय क्षरण को रोका जा सकेगा है। इस एम-रेत की व्यावसायिक बिक्री से कोयला कंपनियों को महत्वपूर्ण राजस्व प्राप्त होने और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ मिलने की उम्मीद है।
एचपीईसी रिपोर्ट में कोयला समुदायों के लिए कई प्रमुख लाभों का अनुमान लगाया गया है। एम-सैंड का उत्पादन करने के लिए ओवरबर्डन का प्रसंस्करण न केवल कोयला कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण राजस्व लेकर आता है, बल्कि निर्माण के लिए सस्ती, उच्च गुणवत्ता वाली रेत की उपलब्ध कराके स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का भी लाभ पहुंचाता है। ओवरबर्डन से रेत प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना से नौकरियां पैदा होंगी और कोयला खनन क्षेत्रों में आजीविका को बढ़ावा मिलेगा। प्रभावी ओवरबर्डन उपयोग, ओवरबर्डन डंप की आवश्यकता में कमी लाकर कृषि या बुनियादी ढांचे के लिए भूमि को पुनः उपलब्धता सुनिश्चित करता है। निर्माण उद्योगों के लिए नदी की रेत पर निर्भरता कम करके, ओवरबर्डन प्रसंस्करण पारिस्थितिक तंत्र को कटाव और गिरावट से भी बचाता है। इसके अतिरिक्त, ओवरबर्डन में मिट्टी, चूना पत्थर और दुर्लभ तत्वों जैसे मूल्यवान संसाधन शामिल हैं, जो बुनियादी ढांचे के विकास और अन्य उद्योगों को योदगान दे सकते हैं। कई सफल पायलट संयंत्रों ने पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देने के साथ-साथ सामुदायिक जुड़ाव, विश्वास और कल्याण को बढ़ावा दे रही इस पहल की व्यवहार्यता दिखाई है।
चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और कचरे को धन में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में, कोयला/लिग्नाइट पीएसयू ने चार ओवरबर्डन प्रसंस्करण संयंत्र और पांच ओवरबर्डन से एम-रेत पायलट संयंत्र चालू किए हैं। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में कोयला/लिग्नाइट पीएसयू के भीतर छह और ओवरबर्डन प्रसंस्करण और ओवरबर्डन से एम-रेत संयंत्र की स्थापना का कार्य विभिन्न चरणों में चल रहा है।
इस रिपोर्ट का पेश किया जाना, अपशिष्ट को कम से कम करने और संसाधनों को अधिकतम करने वाले कोयला क्षेत्र की चक्रीय अर्थव्यवस्था की यात्रा में महत्वपूर्ण कदम है। कोयला मंत्रालय, विभिन्न हितधारकों के सहयोग से, एचपीईसी रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। रिपोर्ट में पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और कोयला खनन क्षेत्रों के आसपास के समुदायों को लाभ पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो भारत की पर्यावरणीय स्थिरता और संसाधन दक्षता लक्ष्यों को प्राप्त करने के व्यापक लक्ष्यों के अनुरूप है।
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