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राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने पहुंच और लाभ साझाकरण तंत्र के अंतर्गत आंध्र प्रदेश में लाल चंदन के संरक्षण के लिए 82 लाख रुपये की स्वीकृति दी

चेन्नई स्थित राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने स्थानिक पादप प्रजाति के लाल चंदन (प्टेरोकार्पस सैंटालिनस) के संरक्षण के लिए आंध्र प्रदेश जैव विविधता बोर्ड को 82 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की है। इस पहल का उद्देश्य लाल चंदन के एक लाख पौधे उगाना है, जिन्हें बाद में किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। इससे “वनों के बाहर वृक्ष” (टीओएफ) कार्यक्रम में योगदान मिलेगा और इस क्षेत्र की एक विशिष्ट प्रजाति के संरक्षण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

यह धनराशि लाल चंदन के उपयोगकर्ताओं से एकत्रित लाभ-साझाकरण राशि से वित्त प्रदत्त की गई है और इसे संरक्षण संबंधी कार्यकलापों के लिए संबंधित हितधारकों को वापस भेजा जा रहा है। ये धनराशि हितधारकों द्वारा प्राप्त बिक्री आय या बिक्री मूल्य के अतिरिक्त है। यह स्वीकृति जैविक विविधता अधिनियम, 2002 (2023 में संशोधित) के तहत पहुंच और लाभ साझाकरण (एबीएस) तंत्र के अनुप्रयोग को दर्शाती है। एबीएस तंत्र जैविक संसाधनों तक पहुंच को विनियमित करता है, साथ ही स्थानीय समुदायों, व्यक्तियों और जैव विविधता प्रबंधन समितियों (बीएमसी) सहित लाभार्थियों के साथ लाभों का उचित और न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करता है। इस प्रकार यह पहल दर्शाती है कि कैसे नीतियां संरक्षण को समुदाय-संचालित कार्रवाई में रुपातंरित कर सकती हैं।

मूल रुप से दक्षिणी पूर्वी घाटों में स्थित और विशेष रूप से अनंतपुर, चित्तूर, कडप्पा और कुरनूल जिलों में पाया जाने वाला लाल चंदन, अपने उच्च व्यावसायिक मूल्य के कारण भारी खतरे में है, जिसके कारण व्यापक स्तर पर तस्करी हो रही है। यह प्रजाति वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है और लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर हुई संधि (सीआईटीईएस) के अंतर्गत सूचीबद्ध है, जो इसके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सख्ती से नियंत्रित करता है।

एनबीए पहले ही आंध्र प्रदेश वन विभाग को लाल चंदन से संबंधित विभिन्न संरक्षण और सुरक्षा कार्यकलापों के लिए 31.55 करोड़ रुपये से अधिक जारी कर चुका है। उम्मीद है कि वर्तमान राशि प्रत्यक्ष रुप से जैव विविधता प्रबंधन समितियों की मदद से जमीनी स्तर पर संरक्षण कार्यों के लिए उपयोग में लाई जाएगी। स्थानीय और जनजातीय समुदाय नर्सरी विकास, वृक्षारोपण और दीर्घकालिक देखभाल, रोजगार सृजन, कौशल निर्माण को बढ़ावा देने तथा जैविक संसाधनों के संरक्षण में स्थानीय नेतृत्व को बढ़ाने में भाग लेंगे।

यह पहल न केवल भारत के राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों को सुदृढ़ बनाती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता सम्मेलन (सीबीडी) के प्रति देश की प्रतिबद्धता को भी मजबूत करती है।

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