प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली स्थित आईसीएआर पूसा में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। सम्मेलन का विषय “सदाबहार क्रांति, जैव-सुख का मार्ग” प्रो. स्वामीनाथन के सभी के लिए भोजन सुनिश्चित करने के प्रति आजीवन समर्पण को दर्शाता है। यह सम्मेलन वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, विकास पेशेवरों और अन्य हितधारकों को ‘सदाबहार क्रांति’ के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने पर चर्चा और विचार-विमर्श का अवसर प्रदान करेगा। प्रमुख विषयों में जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन; खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए सतत कृषि; जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होकर जलवायु को स्वच्छ बनाना; सतत और समतामूलक आजीविका के लिए उपयुक्त तकनीकों का उपयोग और युवाओं, महिलाओं तथा वंचित वर्गों को विकासात्मक चर्चाओं में शामिल करना शामिल हैं।
उनकी विरासत का सम्मान करने के लिए, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) और द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज (टीडब्ल्यूएएस) ने खाद्य एवं शांति के लिए एमएस स्वामीनाथन पुरस्कार की शुरुआत की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने प्राप्तकर्ता को पहला पुरस्कार भी प्रदान किया। यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विकासशील देशों के उन व्यक्तियों को सम्मानित करेगा जिन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान, नीति विकास, जमीनी स्तर पर सहभागिता या स्थानीय क्षमता निर्माण के माध्यम से खाद्य सुरक्षा में सुधार और कमजोर व वंचित वर्गों के लिए जलवायु न्याय, समानता और शांति को आगे बढ़ाने में उत्कृष्ट योगदान दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के पश्चात कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें एक दूरदर्शी व्यक्तित्व की संज्ञा देते हुए कहा कि उनका योगदान किसी भी युग से परे है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन एक महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने विज्ञान को जनसेवा के माध्यम में बदल दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने एक ऐसी चेतना जागृत की जो आने वाली सदियों तक भारत की नीतियों और प्राथमिकताओं का मार्गदर्शन करती रहेगी। उन्होंने स्वामीनाथन जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर सभी को शुभकामनाएं दीं।
प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर कहा कि पिछले दस वर्षों में हथकरघा क्षेत्र ने देश भर में नई पहचान और मजबूती हासिल की है। उन्होंने सभी को, विशेषकर हथकरघा क्षेत्र से जुड़े लोगों को, राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुभकामनाएं दीं।
डॉ. एमएस स्वामीनाथन के साथ अपने कई वर्षों के जुड़ाव को साझा करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की शुरुआती परिस्थितियों का स्मरण किया, जहां सूखे और चक्रवातों के कारण कृषि को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। इस चुनौती से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, मृदा स्वास्थ्य कार्ड पहल पर कार्य शुरू किया था। उन्होंने याद किया कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने इस पहल में गहरी रुचि दिखाते हुए खुले दिल से सुझाव दिए, जिसने इसकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने लगभग बीस वर्ष पहले तमिलनाडु में प्रोफेसर स्वामीनाथन के रिसर्च फाउंडेशन सेंटर के दौरे का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि 2017 में, उन्हें प्रोफेसर स्वामीनाथन की पुस्तक, ‘द क्वेस्ट फॉर ए वर्ल्ड विदाउट हंगर’ का विमोचन करने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि 2018 में, वाराणसी में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र के उद्घाटन के दौरान, प्रोफेसर स्वामीनाथन का मार्गदर्शन अमूल्य था। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन के साथ हुआ प्रत्येक वार्तालाप सीखने का एक अनुभव रहा। उन्होंने प्रोफेसर स्वामीनाथन के विचार “विज्ञान केवल खोज के बारे में नहीं है, बल्कि वितरण के बारे में है,” का स्मरण करते हुए यह पुष्टि की कि उन्होंने अपने कार्य के माध्यम से इसे सिद्ध किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन ने न केवल शोध किया, बल्कि किसानों को कृषि पद्धतियों में बदलाव लाने के लिए प्रेरित भी किया। उन्होंने कहा कि आज भी, प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन का दृष्टिकोण और विचार भारत के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें भारत माता का सच्चा रत्न बताते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि उनकी सरकार के कार्यकाल में प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन की पहचान हरित क्रांति से भी कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने रसायनों के बढ़ते उपयोग और एकल-फसल खेती के खतरों के बारे में किसानों में निरंतर जागरूकता फैलाई। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने अन्न की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए काम किया, लेकिन वे पर्यावरण और धरती माता के प्रति भी उतने ही चिंतित थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों उद्देश्यों में संतुलन बनाने और उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रोफेसर स्वामीनाथन ने सदाबहार क्रांति की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने ग्रामीण समुदायों और किसानों को सशक्त बनाने के लिए जैव-ग्रामों का विचार प्रस्तावित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने सामुदायिक बीज बैंकों और अवसरों का सृजन करने वाली फसलों जैसे नवीन विचारों को बढ़ावा दिया।
प्रधानमंत्री ने कृषि में सूखे की स्थिति में भी सहनशीलता और नमक सहनशीलता वाली फसलों पर प्रोफेसर स्वामीनाथन के विशेष ध्याने को रेखांकित करते हुए कहा कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन का मानना था कि जलवायु परिवर्तन और पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान उन्हीं फसलों में निहित है जिन्हें भुला दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने बाजरा या श्री अन्न पर उस समय काम किया जब उनकी व्यापक स्तर पर उपेक्षा की जाती थी। प्रधानमंत्री मोदी ने याद दिलाया कि वर्षों पहले, प्रोफेसर स्वामीनाथन ने मैंग्रोव के आनुवंशिक गुणों को चावल में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था, जिससे फसलों को जलवायु के प्रति अधिक अनुकूल बनाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि आज जब जलवायु अनुकूलन एक वैश्विक प्राथमिकता बन गई है तो यह स्पष्ट है कि प्रोफेसर स्वामीनाथन की सोच वास्तव में कितनी दूरदर्शी थी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जैव विविधता वैश्विक चर्चा का विषय है और सरकारें इसे संरक्षित करने के लिए विभिन्न कदम उठा रही हैं, लेकिन डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने जैव-सुख के विचार को प्रस्तुत करके एक कदम आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि आज का यह आयोजन इसी विचार का उत्सव है। डॉ. स्वामीनाथन के विचार जैव विविधता की शक्ति स्थानीय समुदायों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, का उद्धरण देते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि स्थानीय संसाधनों के उपयोग से लोगों के लिए आजीविका के नए अवसरों का सृजन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अपने स्वभाव के अनुरूप, डॉ. स्वामीनाथन में विचारों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने की अद्वितीय क्षमता थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि अपने अनुसंधान प्रतिष्ठान के माध्यम से, डॉ. स्वामीनाथन ने निरंतर रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य किया कि नई खोजों का लाभ किसानों तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों, मछुआरों और जनजातीय समुदायों को डॉ. स्वामीनाथन के प्रयासों से बहुत लाभ हुआ।
प्रोफेसर स्वामीनाथन की विरासत को सम्मानित करने के लिए स्थापित एमएस स्वामीनाथन खाद्य एवं शांति पुरस्कार के शुभारंभ पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विकासशील देशों के उन व्यक्तियों को प्रदान किया जाएगा जिन्होंने खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि भोजन और शांति के बीच का संबंध न केवल दार्शनिक है, बल्कि अत्यधिक व्यावहारिक भी है। उपनिषदों के एक श्लोक का उद्धरण देते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने भोजन की पवित्रता को रेखांकित करते हुए कहा कि भोजन स्वयं जीवन है और इसका कभी भी अनादर या उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। प्रधानमंत्री ने चेतावनी देते कहा कि भोजन का कोई भी संकट अनिवार्य रूप से जीवन के संकट को जन्म देता है और जब लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ता है, तो वैश्विक अशांति अपरिहार्य हो जाती है। उन्होंने आज की दुनिया में एमएस स्वामीनाथन खाद्य एवं शांति पुरस्कार के महत्व को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने पुरस्कार के प्रथम प्राप्तकर्ता, नाइजीरिया के प्रोफेसर एडेनले को बधाई देते हुए उन्हें एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक बताया, जिनका कार्य इस सम्मान की भावना का उदाहरण है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारतीय कृषि की वर्तमान ऊंचाइयों को देखकर, डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन जहां भी होंगे, उन्हें निश्चित रूप से गर्व महसूस होगा। उन्होंने कहा कि भारत आज दूध, दालों और जूट के उत्पादन में अग्रणी स्थान पर है। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि चावल, गेहूं, कपास, फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है और साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश भी है। प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछले वर्ष भारत ने अब तक का अपना सर्वोच्च खाद्यान्न उत्पादन हासिल किया। उन्होंने कहा कि भारत तिलहन क्षेत्र में भी रिकॉर्ड स्थापित कर रहा है, सोयाबीन, सरसों और मूंगफली का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों का कल्याण देश की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने घोषणा की कि भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। उन्होंने किसानों की आय बढ़ाने, कृषि खर्च कम करने और राजस्व के नए स्रोत बनाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को दोहराया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने सदैव किसानों की शक्ति को राष्ट्रीय प्रगति की आधारशिला माना है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में बनाई गई नीतियां केवल सहायता के लिए नहीं, बल्कि किसानों में विश्वास जगाने के लिए भी हैं। उन्होंने कहा कि पीएम-किसान सम्मान निधि ने प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता के माध्यम से छोटे किसानों को सशक्त बनाया है, जबकि पीएम फसल बीमा योजना ने किसानों को कृषि जोखिमों से सुरक्षा प्रदान की है और पीएम कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से सिंचाई चुनौतियों का समाधान किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के निर्माण ने छोटे किसानों की सामूहिक शक्ति को मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों को मिलने वाली वित्तीय सहायता ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई गति दी है। ई-नाम प्लेटफॉर्म का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इससे किसानों के लिए अपनी उपज बेचना आसान हो गया है, जबकि पीएम किसान संपदा योजना ने नई खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों और भंडारण बुनियादी ढांचे के विकास को गति दी है। उन्होंने बताया कि हाल ही में स्वीकृत पीएम धन धान्य योजना का उद्देश्य उन 100 जिलों का उत्थान करना है जहां कृषि पिछड़ गई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन जिलों में सुविधाएं और वित्तीय सहायता प्रदान करके सरकार खेती के प्रति किसानों में नया विश्वास जगा रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 21वीं सदी का भारत विकसित राष्ट्र बनने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और यह लक्ष्य समाज के हर वर्ग और हर पेशे के योगदान से हासिल किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन से प्रेरणा लेते हुए भारत के वैज्ञानिकों के पास अब इतिहास रचने का एक और अवसर है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की पिछली पीढ़ी ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की और इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्तमान ध्यान पोषण सुरक्षा पर केंद्रित होना चाहिए। जन स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैव-अनुकूल और पोषण-समृद्ध फसलों को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि में रसायनों के उपयोग को कम करने समर्थन किया। उन्होंने प्राकृतिक खेती को और अधिक बढ़ावा देने का आग्रह करते हुए कहा कि इस दिशा में और अधिक तत्परता और सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों को सर्वविदित मानते हुए, प्रधानमंत्री ने जलवायु-प्रतिरोधी फसल किस्मों की अधिक संख्या विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सूखा-सहिष्णु, ताप-प्रतिरोधी और बाढ़-अनुकूल फसलों पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री मोदी ने फसल चक्र और मृदा-विशिष्ट उपयुक्तता पर अनुसंधान बढ़ाने का आह्वान करते हुए किफायती मृदा परीक्षण उपकरण और प्रभावी पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सौर ऊर्जा चालित सूक्ष्म सिंचाई की दिशा में प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता पर बल देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि ड्रिप प्रणालियों और सटीक सिंचाई को और अधिक व्यापक और प्रभावी बनाया जाना चाहिए। कृषि प्रणालियों में उपग्रह डेटा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग को एकीकृत करने के विचार पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पूछा कि क्या ऐसी प्रणाली विकसित की जा सकती है जो फसल की पैदावार का पूर्वानुमान लगा सके, कीटों की निगरानी कर सके और बुवाई के तरीकों का मार्गदर्शन कर सके और क्या ऐसी वास्तविक समय पर निर्णय लेने वाली सहायता प्रणाली हर जिले में सुलभ बनाई जा सकती है।
प्रधानमंत्री ने विशेषज्ञों से कृषि-तकनीक स्टार्टअप्स का निरंतर मार्गदर्शन करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में नवोन्मेषी युवा कृषि चुनौतियों के समाधान की दिशा में कार्य कर रहे हैं और अनुभवी पेशेवरों के मार्गदर्शन में, इन युवाओं द्वारा विकसित उत्पाद अधिक प्रभावशाली होंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के कृषक समुदायों के पास पारंपरिक ज्ञान का एक समृद्ध भंडार है। पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धतियों को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर, एक समग्र ज्ञानकोष तैयार किया जा सकता है। फसल विविधीकरण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बताते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को इसके महत्व के बारे में जानकारी देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि किसानों को विविधीकरण के लाभों के साथ-साथ इसे न अपनाने के दुष्परिणामों से भी अवगत कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ इस प्रयास में अत्यंत प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं।
11 अगस्त 2024 की पूसा परिसर की अपनी यात्रा के दौरान कृषि तकनीक को प्रयोगशाला से ज़मीन तक पहुंचाने के लिए गहन प्रयास करने के अपने आग्रह की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मई और जून 2025 के महीनों में “विकसित कृषि संकल्प अभियान” के शुभारंभ पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पहली बार 700 से अधिक जिलों में वैज्ञानिकों की 2,200 से अधिक टीमों ने इसमें भाग लिया। 60,000 से अधिक कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इन प्रयासों ने वैज्ञानिकों को लगभग 1.25 करोड़ किसानों से सीधे जोड़ा। उन्होंने किसानों तक वैज्ञानिक पहुंच बढ़ाने के लिए इस पहल की अत्यंत सराहना की।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि खेती लोगों की आजीविका है। उन्होंने कहा कि डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने हमें सिखाया कि कृषि केवल फसलों के बारे में नहीं है, बल्कि जीवन के बारे में भी है। उन्होंने कहा कि खेती से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा, प्रत्येक समुदाय की समृद्धि और प्रकृति की सुरक्षा, सरकार की कृषि नीति की शक्ति है। विज्ञान और समाज को एक सूत्र में जोड़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि छोटे किसानों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने खेतों में काम करने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने के महत्व पर बल देते हुए अपने संबोधन के समापन पर कहा कि राष्ट्र को इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉ. स्वामीनाथन की प्रेरणा सभी का मार्गदर्शन करती रहेगी।
इस कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की अध्यक्ष सौम्या स्वामीनाथन और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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