insamachar

आज की ताजा खबर

Principal Scientific Advisor to Government of India chairs meeting to discuss biomass cultivation on barren lands for green biohydrogen production
भारत

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन के लिए बंजर भूमि पर बायोमास खेती पर चर्चा करने के लिए बैठक की अध्यक्षता की

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने आज (14 मई, 2024) विज्ञान भवन एनेक्सी, नई दिल्ली में हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन और बायोएनर्जी उत्पादन के लिए बंजर भूमि पर बायोमास खेती पर चर्चा करने के लिए पहली बैठक बुलाई।

बैठक में बायोमास खेती के लिए निम्नीकृत और बंजर भूमि के उपयोग का पता लगाने के लिए प्रमुख हितधारक सरकारी मंत्रालयों, ज्ञान भागीदारों और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाया गया। इस बायोमास का उपयोग हरित बायोहाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए किया जाएगा, जिससे बायोमास से हरित हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने के लिए हितधारकों के बीच एक व्यापक चर्चा श्रृंखला शुरू होगी।

अपने उद्घाटन भाषण में प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का एक उद्देश्य बायोमास-आधारित हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन के लिए केंद्रित पायलट योजना शुरू करना है। इसलिए देश के बायोमास खेती से संबंधित इकोसिस्टम को समझना महत्वपूर्ण है। प्रो. सूद ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बैठक का उद्देश्य बायोमास और बंजर भूमि की उपलब्धता पर इनपुट इकट्ठा करना, बायोमास खेती में अंतराल और चुनौतियों की पहचान करना और हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए निम्नीकृत भूमि का उपयोग करने के लिए एक रोडमैप की रणनीति बनाना है।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने जैव ऊर्जा उत्पादन के लिए बायोमास के रूप में समुद्री शैवाल की खेती की संभावनाओं के बारे में बताया और भारत के गहरे महासागर मिशन के साथ समुद्री जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को बढ़ावा दिया। इसके बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अपर महानिदेशक (मृदा एवं जल प्रबंधन) डॉ. ए. वेलमुरुगन ने शैवाल, गुड़ और गन्ने सहित विभिन्न पौधों का उपयोग करके हरित ऊर्जा के लिए बायोमास उत्पादन पर एक प्रस्तुति दी। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की सलाहकार डॉ. संगीता एम. कतुरे ने जैव ऊर्जा के लिए मंत्रालय में विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला और अतिरिक्त कृषि-अवशेष संबंधी डेटा के लिए राष्ट्रीय बायोमास एटलस के बारे में भी चर्चा की। सरदार स्वर्ण सिंह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायो-एनर्जी (एसएसएस एनआईबीई), एमएनआरई के महानिदेशक डॉ. जी. श्रीधर ने हरित हाइड्रोजन के संदर्भ में कृषि-अवशिष्ट बायोमास की भूमिका पर प्रकाश डाला, अतिरिक्त बायोमास की उपलब्धता और ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में इसकी संभावना के बारे में चर्चा की।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) के निदेशक डॉ. प्रकाश चौहान ने कृषि-अवशेषों से बायोमास उपलब्धता पर डेटा और बंजर भूमि मानचित्रण पर डेटा के लिए ‘भुवन पोर्टल’ पर एक प्रस्तुति दी। डॉ. चौहान ने बायोमास की संभावना को समझने के लिए बायोमास की विशेषता के विवरण पर डेटा की आवश्यकता पर जोर दिया।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव नीलेश कुमार साह ने भूमि क्षरण को रोकने को लेकर समाधान करने वाली सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। भूमि संसाधन विभाग के संयुक्त सचिव नितिन खाड़े ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए रीढ़ रहित कैक्टस के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया।

गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के हृषिकेश बर्वे ने भूमि की उर्वरता बढ़ाने और बायोमास खेती के लिए अंतिम प्रस्तुति के दौरान 4एफ-बायोइकोनॉमी संरचना पर चर्चा की।

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, खान मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय, रेल मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और भूमि संसाधन विभाग सहित विभिन्न मंत्रालयों के उद्योग विशेषज्ञों और प्रमुख सरकारी अधिकारियों ने बायोमास खेती और हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए अपने विभागों के तहत विभिन्न योजनाओं पर अपने इनपुट प्रदान किए।

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय के वैज्ञानिक सचिव डॉ. परविंदर मैनी ने बैठक के परिणामों का सारांश दिया, जिसमें भूमि के साथ-साथ समुद्री इकोसिस्टम में बायोमास खेती की आवश्यकता पर जोर दिया गया। डॉ. मैनी ने विशेष रूप से नेपियर घास, ऊर्जा गन्ना और कैक्टस के संदर्भ में पानी जैसे संसाधनों के साथ अधिक बायोमास उत्पन्न करने पर अनुसंधान एवं विकास के महत्व पर प्रकाश डाला।

प्रो. सूद ने अपने संबोधन के अंत में देश में हाइड्रोजन उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से खेती के लिए बायोमास की पहचान करने और बायोमास की खेती के लिए मंत्रालयों/विभागों के पास उपलब्ध सरकारी स्वामित्व वाली भूमि की पहचान करने की आवश्यकता पर फिर से जोर दिया। प्रो. सूद ने कहा कि टिकाऊ बायोमास खेती के लिए सार्वजनिक और निजी भूमि दोनों का उपयोग करने का यह दृष्टिकोण देश की ऊर्जा की मांग को पूरा करेगा, ईंधन आयात पर निर्भरता कम करेगा, राजस्व उत्पन्न करेगा और जैव ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्थानीय पर्यावरणीय जैव विविधता को बनाए रखते हुए बायोएनर्जी के लिए बायोमास खेती को टिकाऊ और किफायती से स्रोत तैयार करने के साथ-साथ उसे संसाधित किया जाना चाहिए।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *