नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के तत्वावधान में एक ‘नवरत्न’ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम, सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसईसीआई) ने ग्रीन अमोनिया की खरीद के लिए एक ऐतिहासिक निविदा जारी की है। इसका उद्देश्य भारत के उर्वरक क्षेत्र को कार्बन मुक्त करना है। शीघ्र ही अंतिम बोली की प्रस्तुतियों के साथ, निविदा में ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन (एसआईजीएचटी) योजना- मोड 2ए, ट्रैंच I के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप के अंतर्गत 13 उर्वरक संयंत्रों में वार्षिक 724,000 टन ग्रीन अमोनिया के उत्पादन और आपूर्ति की का लक्ष्य रखा गया है।
एसईसीआई मांग एकत्रीकरण को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ दीर्घकालिक ऑफटेक समझौतों पर हस्ताक्षर करेगा जिससे उत्पादक 10 वर्ष की अनुबंध अवधि के दौरान बाजार की निश्चितता के साथ कार्य कर सकेंगे। निविदा 07 जून 2024 को जारी की गई थी और बोली जमा करने की अंतिम तिथि 26 जून 2025 है।
यूरिया और अन्य नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों में एक आवश्यक घटक अमोनिया का उत्पादन वर्तमान में जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके किया जाता है, जिससे उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। एसईसीआई की निविदा हरित हाइड्रोजन और अमोनिया का उत्पादन करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का लाभ लेती है, जिससे कम उत्सर्जन वाले घरेलू उर्वरक उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।
वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए, सरकार राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के अंतर्गत वित्तीय प्रोत्साहन दे रही है, जिसमें पहले तीन वर्षों के लिए क्रमशः 8.82रू/किग्रा, 7.06रू/किग्रा और 5.30रू/किग्रा का उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) से जुड़ा है और इससे कुल मिलाकर 1,533.4 करोड़ रुपए का समर्थन मिलता हैं। उर्वरक कंपनियों से संभावित भुगतान देरी के जोखिम को कम करने के लिए भारत सरकार द्वारा एक मजबूत भुगतान सुरक्षा प्रणाली (पीएसएम) भी बनाई गई है। यह आपूर्तिकर्ताओं को स्थिर नकदी प्रवाह का आश्वासन देती है, जिससे अधिक भागीदारी और वित्तपोषण को बढ़ावा मिलता है। बोली प्रक्रिया में एसईसीआई के ई-रिवर्स नीलामी मॉडल का पालन किया जाएगा जिससे प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी मूल्य प्राप्त करना सुनिश्चित किया जा सकेगा।
भारत में वार्षिक रूप से लगभग 17-19 मिलियन टन अमोनिया की खपत होती है, जिसमें से 50 प्रतिशत से अधिक हाइड्रोजन की आवश्यकता उर्वरक उत्पादन में उपयोग होती है। हालांकि, इसका अधिकांश हिस्सा आयातित प्राकृतिक गैस से प्राप्त होता है। एसईसीआई की पहल से इस निर्भरता में काफी कमी आने के साथ-साथ वैश्विक गैस मूल्य में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करने और व्यापार घाटे को कम करने की आशा है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने से प्रति किलोग्राम 2 किलोग्राम से भी कम सीओ₂ उत्सर्जित होता है, जबकि पारंपरिक ग्रे हाइड्रोजन से 12 किलोग्राम सीओ₂ उत्सर्जित होता है।
घरेलू हरित अमोनिया उत्पादन से भू-राजनीतिक व्यवधानों के दौरान सुगमता बढ़ने तथा रोजगार के नए अवसरों का सृजन होने की उम्मीद है।
एसईसीआई का ग्रीन अमोनिया टेंडर हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली “चिकन-एंड-एग” चुनौती का समाधान करता है, जिससे मांग और आपूर्ति दोनों में वृद्धि होती है। यह तत्काल मांग को आकर्षित करता है, जो ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण और संबद्ध स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करता है।
यह पहल 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है और विकसित होने के साथ-साथ एक स्थायी और आत्मनिर्भर विकसित भारत के व्यापक दृष्टिकोण का समर्थन करती है। बोलीदाताओं को अपने सबसे प्रतिस्पर्धी प्रस्तावों को आगे लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, यह नवाचार, पारदर्शिता और वैश्विक प्रभाव के साथ स्वच्छ ऊर्जा बाजारों में अग्रणी होने की एसईसीआई की विरासत को जारी रखते हैं।