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साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड ने अधिकृत क्षतिपूरक वनीकरण का नेतृत्व किया

कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की अग्रणी सहायक कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी अधिकृत क्षतिपूरक वनीकरण (एसीए) दिशानिर्देशों के सफल कार्यान्वयन के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसका उद्देश्य वन क्षेत्र बढ़ाने और गैर-वन भूमि पर वनीकरण को बढ़ावा देना है, जिससे राष्ट्रीय पर्यावरण लक्ष्यों में योगदान दिया जा सके और मूल्यवान कार्बन क्रेडिट अर्जित किया जा सके।

कोयला खनन परियोजनाओं के लिए अक्सर वन भूमि की आवश्यकता होती है। इसके लिए पर्यावरण अनुमोदन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में वानिकी मंजूरी (एफसी) भी जरूरी है। इस तरह की अनुमति प्राप्त करने में एक बड़ी चुनौती उपयुक्त प्रतिपूरक वनरोपण (सीए) भूमि की पहचान करना है। इस बारे में, मंत्रालय ने 24 जनवरी, 2023 को एसीए के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनका उद्देश्य वानिकी मंजूरी अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, सीए लागत को कम करना और वनीकरण प्रयासों को बढ़ाना है। एसीए दिशानिर्देश सरकारी संस्थानों और निजी भूमि मालिक दोनों को ही परती भूमि पर वनीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे वनों की सीमा से बाहर पेड़ों (टीओएफ) में वृद्धि होगी और जैव विविधता में मदद मिलेगी।

एसीए दिशानिर्देशों के प्रति सक्रिय रूख दर्शाते हुए एसईसीएल ने लगभग 2,245 हेक्टेयर गैर-वन-डी-कोल्ड भूमि की पहचान की, जिसमें छत्तीसगढ़ में 1,424 हेक्टेयर और मध्य प्रदेश में 821 हेक्टेयर भूमि शामिल है। इन भूमियों को एसीए के लिए उपयुक्त के रूप में पहचान की गई और इनकी एसीए भूमि बैंकों के रूप में अधिसूचना के लिए संबंधित राज्य वन विभागों को प्रस्ताव किया गया था। इस कदम से भविष्य की कोयला खनन परियोजनाओं के लिए एफसी प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है, जिनके लिए वन भूमि डायवर्जन की आवश्यकता होती है।

मुख्य उपलब्धियां:

  • जैविक सुधार और पौधरोपण: एसईसीएल ने छत्तीसगढ़ में सूरजपुर और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिलों में बिश्रामपुर ओपनकास्ट (ओसी) परियोजना, दुग्गा ओसी, कुरासिया कोलियरी, जमुना ओसी, कोतमा ओसी और शारदा ओसी तथा मध्य प्रदेश में अनूपपुर और शहडोल सहित कई साइटों पर जैविक सुधार और वृक्षारोपण किया है।  इन प्रयासों ने डी-कोल्ड भूमि को सागौन, साल, बबूल, नीम और अन्य वृक्षों जैसी स्थानीय प्रजातियों से इको-सिस्टम को बदल दिया है।
  • जैव विविधता समृद्ध करना : पुनः प्राप्त भूमि अब वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध विविधता की मेजबानी करती है, जिसमें स्लॉथ भालू, लोमड़ी और विभिन्न सरीसृप और प्रवासी पक्षी जैसी प्रजातियां शामिल हैं, जिन्होंने विशेष रूप से जल निकायों के आसपास के क्षेत्र को फिर से समृद्ध किया है।
  • एसीए भूमि प्रमाणन: छत्तीसगढ़ में चिन्हित 1,424 हेक्टेयर में से 696 हेक्टेयर भूमि का सूरजपुर और कोरिया वन प्रभाग के अधिकारियों द्वारा निरीक्षण किया गया है। राज्य वन विभाग ने गेवरा ओसी, दीपका ओसी, कुसमुंडा ओसी और चिरिमिरी ओसी सहित एसईसीएल के विभिन्न एफसी प्रस्तावों के लिए सीए भूमि के रूप में उपयोग की जाने वाली इन भूमियों के लिए साइट उपयुक्तता प्रमाण पत्र जारी किए हैं। मंत्रालय ने कुल 541.195 हेक्टेयर भूमि के लिए गेवरा ओसी और कुसमुंडा ओसी के लिए एसीए प्रस्ताव पहले ही स्वीकार कर लिए हैं।

डी-कोल्ड भूमि में पर्यावरणीय संतुलन बहाल करने की एसईसीएल की प्रतिबद्धता एसीए दिशानिर्देशों का पालन करने के प्रयासों से ही स्पष्ट है। इन पहलों की सफलता न केवल जिम्मेदार खनन प्रथाओं के प्रति एसईसीएल के समर्पण को दर्शाती है, बल्कि देश भर में अन्य कोयला खनन संस्थाओं के लिए एक मानक भी स्थापित करती है। जैसे-जैसे एसईसीएल अपने वनीकरण प्रयासों का विस्तार करना जारी रखता है, उससे भारत के पर्यावरण लक्ष्यों में योगदान देने और एक हरित, अधिक सतत भविष्य को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

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