केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज नई दिल्ली के पूसा कैंपस स्थित सी. सुब्रमण्यम सभागार में ‘पादप जीनोम संरक्षक पुरस्कार समारोह और पीपीवीएफआरए अधिनियम, 2001 के रजत जयंती व पीपीवीएफआरए (पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण) के 21वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में भागीदारी की और चयनिय किसान भाई-बहनों को पुरस्कृत किया।
इस अवसर केंद्रीय मंत्री ने तेलंगाना के कम्यूनिटि सीड बैंक, पूर्व वर्धमान पश्चिम बंगाल के शिक्षा निकेतन, मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ, असम के सीआरएस-एनए दिहिंग तेंगा उन्नयन समिति, उत्तराखंड के भूपेंद्र जोशी, केरल के टी. जोसेफ, लक्षण प्रमाणिक, अनंतमूर्ति जे, बिहार के नकुल सिंह, उत्तराखंड के नरेंद्र सिंह सहित विभिन्न अऩ्य श्रेणियों में किसान भाई-बहनों को पुरस्कार प्रदान किए गए।
केंद्रीय कृषि मंत्री चौहान ने संबोधित करते हुए कहा कि पीपीवीएफआरए प्राधिकरण ने पिछले 20 वर्षों में अद्भुत काम किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि पद्धति अत्यंत प्राचीन है। कृषि हमारे देश का मूल रहा है। अनेक बीजों की किस्में पोषण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन बीते वर्षों में कुछ किस्में विलुप्त होने की कगार पर आ गई थीं, जिन्हें सहेजने में किसान भाई-बहनों ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि अधिनियम के माध्यम से बीज संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने 15 लाख रुपये तक की धनराशि देने का प्रावधान किया है। कृषि मंत्री चौहान ने कहा कि बीज सबसे बड़ी पूंजी है। बीज हमारा मौलिक अधिकार है। नई किस्मों को बढ़ावा देना जरूरी लेकिन पुरानी किस्मों को भी बचाना है, दोनों के बीच संतुलन बेहद जरूरी है।
केंद्रीय मंत्री ने पीपीवीएफआरए अधिनियम में नए सुझावों को शामिल करने के प्रस्ताव की भी चर्चा की और कहा कि जहां आवश्यक होगा वहां अधिनियम में नए सुझावों को शामिल करते हुए संशोधन किया जाएगा।
आगे, केंद्रीय कृषि मंत्री चौहान ने कहा कि अधिनियम के बारे में अभी भी किसानों को कम जानकारी है पंजीकरण को लेकर भी कुछ जटिलताएं हैं जिन्हें दूर किया जाना जरूरी है। पारदर्शिता के स्तर पर भी कुछ और कदम उठाए जाने चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि किसानों तक अधिनियम का वास्तविक लाभ का हिस्सा भी सीमित रूप से ही पहुंच पाता है जिस दिशा में और अधिक प्रयास करने होंगे। केंद्रीय मंत्री ने पीपीवीएफआरए अधिनियम का अन्य कानूनों के साथ समन्वय और वैज्ञानिक डेटाबेस को मजबूत करने की भी बात कही।
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने प्राकृतिक और जैविक दृष्टि से किसानों के द्वारा पौधों और बीजों की किस्मों को संरक्षित करने के उपायों की चर्चा की और बताया कि इसी संरक्षण को आगे बढ़ाते हुए पीपीवीएफआरए के माध्यम से कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह सशक्त प्रणाली पौधों और बीजों के संरक्षण में और अधिक उल्लेखनीय भूमिका निभाते हुए किसान कल्याण में नए अध्याय जोड़ेगी।
कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने मडुआ जैसी विभिन्न प्रजातियों के बीजों के संरक्षण पर बल देते हुए संगठन से इस दिशा में और सक्रिय प्रयास करने का आह्वान किया। उन्होंने मडुआ के समान अन्य पौधों की प्रजातियों के औषधीय महत्व को भी रेखांकित किया।
इस अवसर पर केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री रामनाथ ठाकुर, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव देवेश चतुर्वेदी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. मांगी लाल जाट, कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव अजीत कुमार साहू, पीपीवीएफआरए के अध्यक्ष डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, पीपीवीएफआरए के रजिस्ट्रार-जनरल डॉ. डी. के. अग्रवाल उपस्थित रहे।
पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Authority – PPV&FRA) एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के अंतर्गत की गई थी। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। इस प्राधिकरण का उद्देश्य नई पौध किस्मों के प्रजनकों को उनके नवाचार के लिए अधिकार प्रदान करना तथा किसानों के पारंपरिक ज्ञान और योगदान की रक्षा करना है। यह प्राधिकरण नई पौध किस्मों का पंजीकरण करता है, किसानों और समुदायों को उनके संरक्षण कार्य हेतु पुरस्कृत करता है तथा राष्ट्रीय पौध किस्म अभिलेख (National Register of Plant Varieties) का संधारण करता है। साथ ही यह किसानों को बीज बचाने, बोने और पुनः उपयोग करने का अधिकार भी सुनिश्चित करता है, जिससे अनुसंधान, नवाचार और कृषि जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है।
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