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Union Minister Dr. Jitendra Singh said that 300 women scientists will be provided research grants for three years under the CSIR-ASPIRE scheme
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केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि CSIR-ASPIRE योजना के अंतर्गत 300 महिला वैज्ञानिकों को तीन वर्षों के लिए अनुसंधान अनुदान प्रदान किया जाएगा

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज नई दिल्ली में कहा कि “सीएसआईआर-एस्पायर योजना के अंतर्गत 300 महिला वैज्ञानिकों को तीन वर्षों के लिए अनुसंधान अनुदान प्रदान किया जाएगा।”

डॉ. सिंह ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार का उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘ईज ऑफ लिविंग’ के दृष्टिकोण के अनुरूप नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए होना चाहिए। डीएसआईआर और सीएसआईआर के कामकाज की समीक्षा करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने सीएसआईआर-एस्पायर योजना की सराहना की, जो महिला वैज्ञानिकों को समर्थन प्रदान करने वाले सरकार के प्रयासों को दर्शाते है। पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुरू की गई एस्पायर योजना महिला वैज्ञानिकों को अनुसंधान अनुदान प्रदान करने के लिए एक विशेष आह्वान है। इसके लिए लगभग 3000 प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। स्क्रीनिंग और स्वतंत्र समीक्षा करने के बाद, क्षेत्रवार अनुसंधान समितियों ने समर्थन प्रदान करने के लिए कुल 301 अनुसंधान प्रस्तावों की सिफारिश की।

डॉ. सिंह ने ‘वन वीक वन लैब’ पहल की सफलता पर अपना संतोष व्यक्त किया और टीम को इसे आगे बढ़ाने और ‘वन वीक वन थीम’ पहल की तर्ज पर काम करने का निर्देश दिया। सीएसआईआर का ‘वन वीक वन लैब’ (ओडब्ल्यूओएल) अभियान पूरे देश में स्थित 37 सीएसआईआर प्रयोगशालाओं के नेटवर्क की विविध विरासतों, विशिष्ट नवाचारों और तकनीकी सफलताओं का प्रदर्शन करता है, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विविध डोमेन में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य विभिन्न उद्योगों और एमएसएमई, स्टार्ट-अप और अन्य हितधारकों के बीच मजबूत संपर्क स्थापित करने का होना चाहिए, न कि इसे प्रयोगशाला की दीवारों तक ही सीमित रखना चाहिए।”

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने स्थायी हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए वाणिज्यिक खेती के साथ-साथ समुद्री शैवाल मिशन को आगे बढ़ाने और विकसित करने का भी निर्देश दिया। उन्होंने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि भारत प्रतिदिन 774 टन बायोमेडिकल कचरे का उत्पादन करता है। उन्होंने सीएसआईआर के प्रयासों की सराहना की जो रोगजनक जैव चिकित्सा अपशिष्ट को मूल्य वर्धित मृदा योजक में बदल देता है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने टीम सीएसआईआर को ई-टिलर, 108-पेटल लोटस और पर्पल मिशन जैसे सभी सफल प्रयासों के लिए भी बधाई दी।

उन्होंने सीएसआईआर के वैज्ञानिकों को फिनोम इंडिया-सीएसआईआर हेल्थ कोहोर्ट नॉलेजबेस (पीआई-सीएचईसीके) को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग मॉडल के साथ एकीकृत करने का भी निर्देश दिया, जिससे लक्षित नैदानिक और रोगनिरोधी प्रौद्योगिकियों के विकास को सक्षम बनाया जा सके तथा इस प्रकार से देश और शायद वैश्विक स्तर पर सटीक चिकित्सा का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। उन्होंने महिलाओं में ऑस्टियोआर्थराइटिस की प्रगति और उम्र बढ़ने से उत्पन्न होने वाली अन्य जटिलताओं को रोकने के लिए सहायक/सुधारात्मक उपायों के विकास के प्रारंभिक चरण में भारतीय महिला फुट एंथ्रोपोमेट्री और चाल के दोषपूर्ण पैटर्न की पहचान करने के लिए व्यापक डेटाबेस के प्रगति की भी जानकारी प्राप्त की।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि “बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री भारत के भविष्य की जैव अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे और हरित विकास को बढ़ावा देंगे।” इस बैठक को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ी है, जो 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुकी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत में अब औद्योगिक विकास और उद्यमिता का एक सक्षम इकोसिस्टम है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए पिछले ‘लेखानुदान’ में जैव विनिर्माण और जैव फाउंड्री को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना की परिकल्पना की गई थी।”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस योजना से आज के उपभोक्ता विनिर्माण प्रतिमान को पुनरुत्पादक सिद्धांतों पर आधारित बनाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह जैव-स्टार्ट-अप और जैव-अर्थव्यवस्था के पूरक के लिए बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर, बायो-प्लास्टिक, बायो-फार्मास्यूटिकल्स और बायो-एग्री-इनपुट जैसे पर्यावरण के लिए अनुकूल विकल्प प्रदान करेगा।

उन्होंने वैज्ञानिकों और अधिकारियों को निर्देश दिया कि हमें इस गति को निरंतर बनाए रखना होगा और किसानों व कृषि-उद्यमियों को बढ़ावा देना होगा और उन्हें सशक्त बनाना होगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने एक मंत्र देते हुए कहा कि हमें बायो ई3 यानी जैव-अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार प्राप्त करने के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों और उत्पादों के विकास पर भी जोर दिया। उन्होंने डीबीटी को अनुसंधान संस्थानों, औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और स्टार्ट अप इकोसिस्टम के बीच अनुसंधान का एकीकरण करने के लिए प्रेरित किया।

इस बैठक में डॉ. राजेश गोखले, सचिव, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और डॉ. एन कलैसेल्वी, डीजी सीएसआईआर के साथ वरिष्ठ वैज्ञानिक और दोनों विभागों के अधिकारी भी उपस्थित हुए।

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