उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्तियों की गतिविधियों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा “दुखद विषय है, चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है, मंथन का विषय है कि कुछ भटके हुए लोग संविधान की शपथ के बावजूद भारत मां को पीड़ा दे रहे हैं। राष्ट्रवाद के साथ समझौता कर रहे हैं।” उन्होंने इस आचरण को घृणित, निंदनीय, निंदनीय एवं राष्ट्रविरोधी बताया।
संविधान के भाग-4 में ‘राज्य के नीति निदेशक तत्व’ पर चित्रित गीता के दृश्य पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र में उपदेश दे रहे थे जिसका ज्ञान था कि एकाग्रता से बिना भटके हुए लक्ष्य की प्राप्ति करो।” उन्होंने आगे कहा कि, “हमारा राष्ट्रवाद हमारा लक्ष्य है, हमारे भारत को कोई सुई भी चुभेगी, तो 140 करोड़ लोगों को दर्द होगा।”
संवैधानिक मूल्यों के अनुसरण पर ज़ोर देते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि, “दुनिया के लोग हम पर हंस रहे हैं कि संवैधानिक पद पर एक व्यक्ति बैठा है, विदेश के अंदर ऐसा आचरण कर रहा है कि अपने संविधान की शपथ को भूल गया, देशहित को नजरअंदाज़ कर दिया, हमारी संस्थाओं की गरिमा पर कुठाराघात कर दिया।” उन्होंने कहा कि “प्रत्येक भारतीय देश के बाहर भारतीय संस्कृति का राजदूत है, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की इस परंपरा को अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रतिपक्ष के नेता के रूप में प्रमाणित किया।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा “इस पद पर होकर मेरा कर्तव्य राजनीति में शामिल होना नहीं है। राजनीतिक दल अपना काम करें। विचारधाराएँ अलग होंगी, विचार अलग होंगे और शासन के प्रति दृष्टिकोण भी अलग होगा लेकिन एक बात अटल रहनी चाहिए कि राष्ट्र सर्वोच्च है। जब देश के सामने चुनौतियां आती हैं तो हम एकजुट होकर खड़े होते हैं। हमारे रंग, धर्म, जाति, संस्कृति या शिक्षा के बावजूद, हम एकजुट हैं, और हम एक हैं।”
राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों को सम्बोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट प्रगति हासिल की है। देश के विकास और उत्थान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि, “आज थल, जल, वायु, अंतरिक्ष को भारत की गूंज सुनाई दे रही है।”
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इसे न अपनाने वाले राज्यों से इसे स्वीकार करने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एनईपी किसी राजनीतिक दल से जुड़ा विषय नहीं है अपितु एक राष्ट्रीय पहल है जो देश के लिए एक बेहद निर्णायक है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने किशनगढ़ के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि, “किशनगढ़ मेरी राजनीतिक कर्मभूमि है, यहाँ की ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोगों ने मुझे सींचा है और मेरी इस लंबी यात्रा में बड़ी भागीदारी निभाई है।”
सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की अहम भूमिका को रेखांकित करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने टिप्पणी की कि शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक असमानताओं से निपटने के लिए एक ऐसा साधन है जो असमानता की जड़ों पर प्रहार कर समानता का मार्ग प्रशस्त करती है।
कार्यक्रम के इस उपलक्ष्य पर प्रोफेसर आनंद भालेराव, कुलपति, राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय एवं प्रोफेसर अल्पना कटेजा, कुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय, तथा अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।
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