बौद्धिक संपदा, आनुवंशिक संसाधनों और संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) संधि, विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) और भारत, जो पारंपरिक ज्ञान और ज्ञान की प्रचुरता के साथ एक मेगा जैव विविधता हॉटस्पॉट है, के लिए एक उल्लेखनीय जीत है।
पहली बार ज्ञान और बुद्धिमत्ता की वह प्रणाली, जिसने सदियों से अर्थव्यवस्थाओं, समाजों और संस्कृतियों की सहायता की है, अब वैश्विक आईपी प्रणाली में शामिल हो गई है। पहली बार स्थानीय समुदायों और उनके जीआर और एटीके के बीच संबंध को वैश्विक आईपी समुदाय में मान्यता मिली है। ये पारंपरिक ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रदाता और जैव विविधता के भंडार के रूप में भारत द्वारा लंबे समय से समर्थित ऐतिहासिक उपलब्धियां हैं।
यह संधि न केवल जैव विविधता की रक्षा और सुरक्षा करेगी बल्कि पेटेंट प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ाएगी और नवोन्मेषण को सुदृढ़ करेगी। इसके माध्यम से, आईपी प्रणाली सभी देशों और उनके समुदायों की आवश्यकताओं को पूरी करते हुए अधिक समावेशी तरीके से विकसित होते हुए नवोन्मेषण को प्रोत्साहित करना जारी रख सकती है।
यह संधि भारत और विकासशील देशों के लिए भी एक बड़ी जीत का प्रतीक है जो लंबे समय से इस माध्यम का समर्थक रहा है। दो दशकों की वार्ता और सामूहिक समर्थन के बाद इस संधि को 150 से अधिक देशों की आम सहमति से बहुपक्षीय मंचों पर अपनाया गया है।
अधिकांश विकसित देशों, जो आईपी सृजित करते हैं और अनुसंधान तथा नवोन्मेषण के लिए इन संसाधनों और ज्ञान का उपयोग करते हैं, के इसमें शामिल होने से यह संधि आईपी प्रणाली के भीतर परस्पर विरोधी प्रतिमानों को पाटने और दशकों से विद्यमान जैव विविधता की सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करती है।
अनुसमर्थन पर संधि और लागू होने के लिए अनुबंध करने वाले पक्षों को पेटेंट आवेदकों के लिए आनुवंशिक संसाधनों के मूल देश या स्रोत का खुलासा करने के लिए तब अनिवार्य प्रकटीकरण दायित्वों की आवश्यकता होगी, जब प्रतिपादित आविष्कार आनुवंशिक संसाधनों या संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर आधारित हो। यह भारतीय जीआर और टीके को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करेगा, जिनके वर्तमान में भारत में संरक्षित होने के बावजूद उन देशों में दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है, जिनके पास दायित्वों का खुलासा करने की बाध्यता नहीं है। इसलिए, उद्भव बाध्यताओं के प्रकटीकरण पर वैश्विक मानकों का सृजन करने के द्वारा, यह संधि आनुवंशिक संसाधनों और संबंधित पारंपरिक ज्ञान के प्रदाता देशों के लिए आईपी प्रणाली के भीतर एक अभूतपूर्व संरचना का निर्माण करती है।
वर्तमान में, केवल 35 देशों में किसी न किसी रूप में प्रकटीकरण बाध्यताएं हैं, जिनमें से अधिकांश अनिवार्य नहीं हैं और उनके पास प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उचित प्रतिबंध या उपाय नहीं हैं। इस संधि के लिए विकसित देशों सहित अनुबंध करने वाले पक्षों को पेटेंट आवेदकों पर मूल बाध्यताओं के प्रकटीकरण को लागू करने के लिए अपने विद्यमान कानूनी संरचना में बदलाव लाने की आवश्यकता होगी।
यह संधि सामूहिक विकास अर्जित करने और एक स्थायी भविष्य, जिसका भारत ने सदियों से समर्थन किया है, का वादा पूरा करने की यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है।
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