केंद्रीय मंत्री एवं प्रसिद्ध मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज विश्व मधुमेह दिवस पर भारत में मधुमेह महामारी पर नियंत्रण के लिए सहयोगात्मक प्रयास का आह्वान किया।
डॉ. सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ के अध्यक्ष डॉ. पीटर श्वार्ज सहित मधुमेह विज्ञान क्षेत्र के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों को संबोधित करते हुए इस वर्ष की थीम, “ब्रेकिंग बैरियर्स, ब्रिजिंग गैप्स” (बाधाओं को तोड़ना, अंतरालों को पाटना) पर प्रकाश डाला, तथा प्रत्येक व्यक्ति की सस्ती, उच्च गुणवत्तायुक्त मधुमेह देखभाल सेवा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एकजुट दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।
डॉ. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि मधुमेह की चुनौती से केवल दवाओं से ही नहीं निपटा जा सकता है, क्योंकि इसमें अन्य चुनौतियां भी है। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा की पहुंच, जागरूकता और उपचार में अंतर की ओर इशारा करते हुए कहा कि जिन लोगों में इस बीमारी का पता चल जाता है उनमें से लगभग आधे लोग अपनी स्थिति से अनजान रहते हैं या आर्थिक कारणों तथा जानकारी के अभाव में नियमित उपचार जारी रखने के लिए संघर्ष करते हैं। उन्होंने कहा कि यह एक “प्रणालीगत अंतर” है जिस पर सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों से ध्यान देने और इस दिशा में मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
डॉ. सिंह अपने संबोधन में एक अवधारणा पेश की जिसे उन्होंने “पीपीपी प्लस पीपीपी” अर्थात “घरेलू स्तर पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के साथ सहयोग” करार दिया। उन्होंने इस मॉडल को दो-स्तरीय सहयोग के रूप में रेखांकित किया, जिसमें भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने के लिए आंतरिक रूप से एकजुट होकर अंतरराष्ट्रीय समकक्षों के साथ जुड़ने की परिकल्पना की गई है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस भागीदारी मॉडल का निर्माण करके, भारत नवाचार को गति दे सकता है, स्वास्थ्य सेवा पहुंच में सुधार कर सकता है और मधुमेह देखभाल के लिए टिकाऊ, वहनीय कार्यक्रम चला सकता है। उन्होंने कहा कि यह सहयोगात्मक ढाँचा इतने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने और स्थानीय स्तर पर वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ लेने के लिए महत्वपूर्ण है।
डॉ. सिंह ने इस कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ के प्रमुख डॉ. पीटर श्वार्ज की उपस्थिति पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए वैश्विक मधुमेह संकट से निपटने में उनकी प्रशंसा की। उन्होंने डॉ. पीटर और महासंघ के साथ मिलकर काम करने के बारे में आशा व्यक्त की, ताकि भारत में सर्वोत्तम विधियों और संसाधनों को साथ लाने वाली महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया जा सके। डॉ. सिंह ने कहा, “डॉ. पीटर जैसे दिग्गजों के साथ मिलकर, सफल वैश्विक मॉडलों से सीखकर और उन्हें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालकर भारत में मधुमेह देखभाल को बढ़ाने की क्षमता हमारे पास है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मधुमेह देखभाल में सार्थक प्रगति को बढ़ावा देगा।
केन्द्रीय मंत्री ने मधुमेह की निगरानी के लिए सुलभ उपकरण विकसित करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की पहलों पर प्रकाश डाला, जिसमें बेहतर और वहनीय उपकरण शामिल हैं जो रोगियों को अपनी बीमारी का आसानी से प्रबंधन करने में सक्षम बनाते हैं। डॉ. सिंह ने लागत प्रभावी चिकित्सा उपकरणों और एआई-संचालित कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए जारी प्रयासों का उल्लेख किया, जो स्वास्थ्य सेवा को सस्ती और सुलभ बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
केन्द्रीय मंत्री ने अपने संबोधन का समापन करते हुए इस बात पर जोर दिया कि मधुमेह से निपटने में केवल चिकित्सकों की अकेले जिम्मेदारी नहीं बनती है बल्कि मरीज को भी अपनी देखभाल एवं अनुशासन वाली जीवन-शैली का पालन जरूरी है। उन्होंने कहा, “मधुमेह एक राष्ट्रीय मुद्दा है जो लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करता है और संयुक्त प्रयासों से हम जागरूकता, देखभाल और सुलभ उपचार के जरिए इस अंतर को पाट सकते हैं।”
विश्व मधुमेह दिवस के अवसर पर विश्व स्तर पर जागरूकता बढ़ाई जा रही है, ऐसे में डॉ. सिंह का संदेश इस दिशा में कार्रवाई का आह्वान है, जिसमें एक ऐसे भविष्य के निर्माण के लिए ठोस प्रयास करने का आग्रह किया गया है, जहां प्रत्येक भारतीय की पहुंच गुणवत्तापूर्ण मधुमेह देखभाल तक हो।
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