भारत में कोयला खनन ने हाल के वर्षों में परिवर्तनकारी परिवर्तन देखे हैं, जो महत्वपूर्ण उद्योग विकास के साथ एक नए युग की शुरुआत है। वाणिज्यिक कोयला खनन के प्रारंभ ने अभूतपूर्व विकास को बढ़ावा दिया है। वित्तीय वर्ष 23 के दौरान कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों का सामूहिक कोयला उत्पादन 10 करोड़ टन को पार कर गया है और वित्तीय वर्ष 26 तक इसके 20 करोड़ टन को पार करने की संभावना है। माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर्स (एमडीओ) जैसे आउटसोर्सिंग मॉडल को अपनाया जाना एक पसंदीदा व्यावसायिक रणनीति साबित हुई है, ठेकेदारों और सेवा प्रदाताओं से व्यापक जुड़ाव को बढ़ावा मिला है। इस रुझान में राजस्व-साझाकरण ढांचे के तहत परित्यक्त कोयला खदानों की नीलामी भी शामिल है।
एक जिम्मेदार खनन, कोयला खदान परिवर्तन रणनीतियों और “न्यायसंगत परिवर्तन” की अवधारणा को प्रमुखता मिली है, जो श्रमिकों, समुदायों और पर्यावरण के कल्याण को सुनिश्चित करते हुए कोयले पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं से दीर्घकालिक विकल्पों की ओर अनिवार्य बदलाव पर बल देती है। इससे प्रभावित श्रमिकों के लिए समर्थन, सामुदायिक विकास पहल, पर्यावरण सुधार और वर्तमान दिशानिर्देशों के भीतर नीतिगत सुधारों सहित व्यापक उपायों की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
कोयला मंत्रालय ने इन परिवर्तनों को देखते हुए खनन योजना तैयार करने की रूपरेखा को संशोधित किया है जो भारत के कोयला खनन क्षेत्र को विनियमित करने तथा आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और परामर्श के लिए खनन योजना पर दिशानिर्देश का मसौदे को जारी किया है। ये दिशानिर्देश कोयला खनन कंपनियों के लिए एक रणनीतिक ब्लू प्रिंट के रूप में काम करते हैं, जो कठोर पर्यावरण, सामाजिक और सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए खनन गतिविधियों की प्रभावी योजना, निष्पादन और निगरानी की सुविधा प्रदान करते हैं। इसका प्राथमिक उद्देश्य स्थायी प्रथाओं के माध्यम से कोयला संसाधन निष्कर्षण को उपयुक्त बनाना है जो अपशिष्ट को कम करते हैं और परिचालन दक्षता को बढ़ाते हैं। इस रणनीतिक दृष्टिकोण में संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिए उन्नत तकनीकी एकीकरण शामिल है, जिससे पर्यावरण और आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है।
सुरक्षा और स्वास्थ्य उपाय संशोधित दिशानिर्देशों की आधारशिला हैं, जो खनन कर्मियों और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। कोयला खनन कार्यों में शामिल सभी हितधारकों की सुरक्षा के लिए मजबूत सुरक्षा प्रोटोकॉल और बुनियादी ढांचा आवश्यक है।
संशोधित दिशानिर्देशों के मसौदे में उत्तरदायी खनन प्रथाओं पर भी फोकस किया गया है जो इकोसिस्टम संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए कोयला उद्योग को बढ़ावा देते हैं। इसमें स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए खनन योजनाओं में पुनरुद्धार, सुधार और पुनर्सृजन उपायों को अनिवार्य रूप से शामिल करना शामिल है। पर्यावरणीय प्रभावों को कम करके, सामुदायिक चिंताओं को दूर करके तथा जल की गुणवत्ता की निगरानी में निरंतर सुधार को बढ़ावा देकर, दिशानिर्देशों का उद्देश्य कोयला खनन के लिए एक अधिक स्थायी और नैतिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।
संशोधित खनन योजना और खदान बंद करने के दिशानिर्देशों के प्रारूप में शुरू किए गए प्रमुख सुधारों में शामिल हैंः
ये दिशानिर्देश अब एक समावेशी और व्यापक समीक्षा प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए हितधारकों के परामर्श के अंतर्गत हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी प्रासंगिक दृष्टिकोणों पर विचार किया जाए। हितधारकों से अनुरोध है कि वे 1 जुलाई 2024 तक अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत करें।
कोयला मंत्रालय भारत के कोयला खनन क्षेत्र में सतत विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। ये व्यापक सुधार जिम्मेदार संसाधन प्रबंधन, सामुदायिक कल्याण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति मंत्रालय के समर्पण को रेखांकित करते हैं।
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