भारत

इस्पात मंत्रालय ने भारत में इस्पात क्षेत्र को हरित बनाने: दिशा-निर्देश और कार्य योजना पर रिपोर्ट जारी की

इंटरनेशनल सेंटर के सी.डी. देशमुख हॉल में ‘हरित इस्पात: स्थायित्व का मार्ग’ नामक एक कार्यक्रम को आयोजित कर रहा है। इस आयोजन में विभिन्न मंत्रालयों, सीपीएसई, प्रबुद्ध वर्ग, शिक्षाविद तथा कई संस्थानों और इस्पात उद्योग जगत के प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस कार्यक्रम के दौरान इस्पात उद्योग के विशेषज्ञों और अनुभवी लोगों के बीच ‘नेतृत्व एवं नवाचार: हरित इस्पात अवस्था परिवर्तन को आगे बढ़ाना’ विषय पर एक पैनल चर्चा सत्र आयोजित किया जाएगा।

इस आयोजन के दौरान, इस्पात एवं भारी उद्योग मंत्री भारत में इस्पात क्षेत्र को हरित बनाना: दिशा-निर्देश और कार्य योजना पर एक रिपोर्ट जारी करेंगे। इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट को इस्पात क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन की दिशा में कार्य क्षेत्र निर्धारित करने के लिए इस मंत्रालय द्वारा गठित 14 टास्क फोर्स के आधार पर तैयार किया गया है।

यह रिपोर्ट भारत में इस्पात क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन के विभिन्न पहलुओं पर आधारित है। यह निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित है:

  • वर्तमान स्थिति और चुनौतियां: भारत में इस्पात क्षेत्र, इसके कार्बन फुटप्रिंट तथा डीकार्बोनाइजेशन में आने वाली चुनौतियों का अवलोकन।
  • डीकार्बोनाइजेशन के प्रमुख उत्तोलक: ऊर्जा सामर्थ्य, नवीकरणीय ऊर्जा, सामग्री दक्षता, प्रक्रिया परिवर्तन, सीसीयूएस, हरित हाइड्रोजन और बायोचार का उपयोग।
  • प्रौद्योगिकीय नवाचार: प्रौद्योगिकी एवं कार्य प्रणालियों में नवीनतम प्रगति जो उत्सर्जन को कम करने में सहायता कर सकती है।
  • नीतिगत रूपरेखा: मौजूदा नीतियों की जांच और डीकार्बोनाइजेशन को बढ़ावा देने के लिए संभावित नीतिगत संवर्द्धन पर चर्चा।
  • भावी दृष्टिकोण: टिकाऊ इस्पात उद्योग के लिए दृष्टिकोण और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में विभिन्न हितधारकों की भूमिका।
  • दिशा-निर्देश और कार्य योजना: सरकार के साथ-साथ उद्योग जगत से अपेक्षित रणनीतियां एवं हस्तक्षेप।

इस्पात मंत्रालय राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धताओं (एनडीसी) के तहत उल्लिखित नेट-जीरो उत्सर्जन को प्राप्त करने के लक्ष्य के अनुरूप भारत में इस्पात क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन और डीकार्बोनाइजेशन को कम करने के लिए रणनीतियों व कार्य योजनाओं को अपनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

यह रिपोर्ट भारतीय इस्पात उद्योग में कम कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस्पात क्षेत्र को आकार देने और मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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