भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष, जिन्हें भारत की राष्ट्रीय निधि घोषित किया गया है, रूस के कलमीकिया गणराज्य में सप्ताह भर की एक ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण प्रदर्शनी के बाद औपचारिक रूप से भारत वापस लौट आए हैं। महामहिम उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल रविवार को कलमीकिया की राजधानी एलिस्टा से रवाना हुआ, जिसके साथ ही 11 से 18 अक्टूबर, 2025 के दौरान आयोजित कार्यक्रम का समापन हो गया।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी), राष्ट्रीय संग्रहालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के सहयोग से आयोजित इस प्रदर्शनी का उद्देश्य साझी बौद्ध विरासत का उत्सव मनाना और भारत एवं रूस के बीच लोगों के बीच गहरे पारस्परिक संबंधों को मजबूत करना था।
इस प्रदर्शनी के समापन के उपलक्ष्य में एलिस्टा स्थित केन्द्रीय मंदिर, “बुद्ध शाक्यमुनि के स्वर्णिम निवास” में एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया। श्रद्धेय भिक्षुओं और श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए, उपराज्यपाल सिन्हा ने इस आयोजन के गहन प्रभाव पर प्रकाश डाला।
उपराज्यपाल ने कहा, “भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष रूस के कलमीकिया में एक सप्ताह तक चली प्रदर्शनी के बाद स्वदेश लौट आए हैं। इस प्रदर्शनी ने आपसी समझ को बढ़ावा देने, विश्वास एवं सहयोग का निर्माण करने और साझा आध्यात्मिक अनुभवों के जरिए स्थायी संबंध बनाने की हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि भौतिक अवशेष भले ही वापस आ गए हैं, “कलमीकिया में भगवान बुद्ध की स्थायी उपस्थिति साधकों को उनकी जागृति में मार्गदर्शन करती रहेगी।” उन्होंने पिछले सप्ताह को “ऐतिहासिक और आशीर्वाद से भरा” बताया, जो कलमीकिया के लोगों के लिए खुशी और आध्यात्मिक तृप्ति लेकर आया।
अपने संबोधन में, उपराज्यपाल सिन्हा ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं की शाश्वत प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला और मानव जगत से दया, ज्ञान एवं न्याय पर आधारित दुनिया के निर्माण का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हमें दया से परिपूर्ण, सभी प्रकार के भेदभावों से मुक्त और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर रहने वाली दुनिया का निर्माण करना चाहिए। मेरा दृढ़ विश्वास है कि बुद्ध की शिक्षाएं मानव जगत को इस दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।”
इस आयोजन के कूटनीतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उपराज्यपाल ने कहा कि “भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक आदान-प्रदान सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है”। उन्होंने कहा कि यह आदान-प्रदान “शांति, आध्यात्मिक लोकाचार और दया से परिपूर्ण जीवन के स्थायी मूल्यों में साझा विश्वास” पर आधारित है।
उन्होंने उपस्थित लोगों को बुद्ध के संदेश के मूल को याद दिलाते हुए अपने संबोधन का समापन किया। उन्होंने कहा: “अपने आप में एक प्रकाश बनें – अपने भीतर देखें क्योंकि प्रकाश और शुद्ध जागृति आपके भीतर ही है।”
पवित्र अवशेषों की इस सफल प्रदर्शनी ने दोनों देशों के बीच आध्यात्मिक संबंध को गहरा करने, साझा विरासत को मजबूत करने और भावी पीढ़ियों के लिए शांति एवं सजगता के एक साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का काम किया है।
यह प्रदर्शनी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी), राष्ट्रीय संग्रहालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) का एक संयुक्त प्रयास था, जो दुनिया भर में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है।
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