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केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने ‘थाईलैंड-भारत अंतर्संबंधित विरासतें: बौद्ध धर्म में आस्था की प्रवाह’ विषय पर फोटोग्राफिक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया

केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने आज नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में “थाईलैंड-भारत अंतर्संबंधित विरासतें: बौद्ध धर्म में आस्था का प्रवाह” नामक फोटोग्राफिक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। उद्घाटन समारोह में केंद्रीय मंत्री के साथ थाईलैंड के विदेश मंत्री मैरिस सांगियामपोंगसा, राजदूत महामहिम पट्टारत होंगटोंग और राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. बी.आर. मणि भी उपस्थित थे।

गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए कहा, “आज, राष्ट्रीय संग्रहालय में यह फोटोग्राफिक प्रदर्शन भगवान बुद्ध और उनके शांति और करुणा के संदेश के प्रति थाईलैंड के लोगों की भावनात्मक लहर और गहरी भक्ति तथा श्रद्धा को प्रदर्शित करता है।”

केंद्रीय मंत्री महोदय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि भगवान बुद्ध के आदर्श भारत और थाईलैंड के बीच एक आध्यात्मिक पुल के रूप में काम करते हैं, जो गहरे संबंधों को बढ़ावा देते हैं।

प्रदर्शनी का उद्देश्य भगवान बुद्ध और उनके प्रमुख शिष्यों, अराहत सारिपुत्त और अराहत महा मोगलाना के पवित्र अवशेषों के प्रति थाईलैंड के लोगों के विशेष स्वागत और श्रद्धा को प्रदर्शित करना है। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले के पिपरहवा से खुदाई में प्राप्त ये अवशेष प्रदर्शनी का केंद्र बिंदु हैं, जो भारत और थाईलैंड के बीच गहरे सांस्कृतिक और पारंपरिक संबंधों का प्रतीक हैं।

वर्ष 1970-71 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा पिपरहवा में की गई खुदाई से दो ताबूत प्रकाश में आए, जिनमें कुल बाईस पवित्र अस्थि अवशेष थे। इनमें से बीस हड्डी के टुकड़े और दो ताबूत वर्तमान में नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित हैं, जबकि शेष दो हड्डी के टुकड़े कोलकाता के भारतीय संग्रहालय को उधार दिए गए हैं।

पवित्र अवशेषों को थाईलैंड में 25 दिनों तक चली एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी का आयोजन इस वर्ष की शुरुआत में फरवरी-मार्च में गंगा-मेकांग पवित्र अवशेष धम्मयात्रा के तत्वावधान में किया गया था।

प्रदर्शनी के 25 दिनों के दौरान, भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों के पवित्र अवशेषों को सनम लुआंग मंडप (बैंकॉक), हो कुम लुआंग, रॉयल पार्क राजप्रुक (चियांग माई), वाट महा वानाराम (उबोन रतचथानी), वाट महा थाट वाचिरामोंगकोल (क्राबी) में सार्वजनिक पूजा के लिए रखा गया था। थाईलैंड और उसके पड़ोसी देशों के विभिन्न हिस्सों से चार मिलियन से अधिक भक्तों ने पवित्र अवशेषों को श्रद्धांजलि अर्पित की। थाइलैंड के सभी चार स्थानों पर थाई समुदायों और भारतीय प्रवासियों द्वारा विस्तृत और रंगीन औपचारिक जुलूस और जप समारोह आयोजित किए गए थे।

यह प्रदर्शनी थाईलैंड साम्राज्य और भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से विदेश मंत्रालय, थाईलैंड में भारतीय दूतावास, राष्ट्रीय संग्रहालय, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ और महाबोधि समिति के सक्रिय सहयोग से आयोजित की गई थी।

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