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Union Minister Dr Jitendra Singh said, 'Kargil war confirmed India's continued readiness to defeat enemy designs'
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केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘कारगिल युद्ध ने दुश्मन के मंसूबों को हराने के लिए भारत की ओर से निरंतर पुरजोर तैयारी की पुष्टि की’

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में 25वें कारगिल विजय दिवस समारोह में कहा, ‘‘कारगिल युद्ध ने दुश्मन के मंसूबों को हराने के लिए भारत की ओर से निरंतर पुरजोर तैयारी की पुष्टि की।’

डॉ. जितेंद्र सिंह ने ‘विजय दिवस’ समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि इससे यह प्रभावशाली संदेश गया है: जब भी भारत की अखंडता और सीमाओं को चुनौती दी जाती है, तो पूरा देश वास्‍तविक हालात की परवाह किए बिना ही अपने विरोधियों का सामना करने और उन्हें हराने के लिए एकजुट हो जाता है। इस युद्ध से अचानक होने वाले हमले का सामना करने और यहां तक कि सबसे चालाक दुश्मनों को भी मात देने की भारत की उत्‍कृष्‍ट क्षमता उभर कर सामने आई। डॉ. जितेंद्र सिंह सिंह के अनुसार, कारगिल युद्ध भारतीय लोकाचार में निहित धर्मनिरपेक्षता के सर्वोच्‍च मूल्यों का भी प्रतीक है, क्‍योंकि अग्रिम पंक्ति पर तैनात सैनिकों ने जाति, पंथ, धर्म या क्षेत्र के विचारों से ऊपर उठकर भारत माता के प्रति एकमात्र कटिबद्धता के साथ लड़ाई लड़ी।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग तथा कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘कारगिल युद्ध से उभर कर सामने आए अनेक प्रमुख बिंदुओं में से एक अहम बिंदु यह है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) को भारत का हिस्सा मानने में पाकिस्तान वर्ष 1947 से ही लगातार आनाकानी करता रहा है। 1948 और 1965 में बड़े पारंपरिक युद्धों, उसके बाद घुसपैठ की कोशिशों और फि‍र ‘हजारों घावों’ वाले छद्म युद्ध के बावजूद पाकिस्तान कभी भी इस वास्तविकता को स्‍वीकार नहीं कर पाया। कारगिल युद्ध ने भारत के लिए अपनी राजनीतिक और सैन्य रणनीतियों को पूरी तरह से अनुकूल बनाने की आवश्यकता को मजबूत किया।’

कारगिल के पश्‍चात खासकर वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के पदभार संभालने के बाद भारत के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। उनके नेतृत्व में राजनीतिक व्यवस्था ने सेना को अपने प्रोफेशनल विवेक और बुद्धि के आधार पर जवाबी हमला करने की स्वायत्तता प्रदान की। सरकार की रणनीति में यह बदलाव सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले पर दिए गए मुंहतोड़ जवाब से स्पष्ट हो गया था जहां भारतीय सेना आक्रामकता के स्रोतों को नष्ट करने के लिए दुश्मन के इलाके में सक्रिय रूप से घुस गई थी। रक्षा बजट में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई, अंतरिम बजट में 6.22 लाख करोड़ रुपये का उल्लेखनीय आवंटन किया गया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार की प्राथमिकता का संकेत है।

भारत का रक्षा क्षेत्र, जो कभी एक प्रमुख आयातक था, अब रक्षा उपकरणों के एक महत्वपूर्ण निर्यातक में बदल गया है। रक्षा-संबंधी 5,000 वस्तुओं की पहचान की गई है, जिनका अब आयात नहीं किया जाएगा, जो आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। हालांकि, कारगिल युद्ध ने भारत को इस्लामाबाद की अस्थिर एवं असंगत नीतियों तथा पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व और उसकी सेना के बीच समन्वय की कमी के कारण सतर्क रहने के महत्व को भी सिखाया।

कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और संशोधित रक्षा दृष्टिकोण के बाद शांति की स्पष्ट बहाली हुई है, जो पर्यटकों की भारी भीड़ से परिलक्षित होती है। आज कश्मीर के युवा प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने के लिए उत्सुक हैं और आगे बढ़ने के महत्व को पहचान रहे हैं।

पीओजेके के लिए 1993 के संकल्प और 1980 के सर्वसम्मति से अपनाए गए संकल्प में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पीओजेके भारत का अभिन्न अंग है। एकमात्र मुद्दा यह है कि इसे कश्मीर में वापस कैसे लाया जाए। यह स्थायी प्रतिबद्धता इस क्षेत्र पर भारत के अडिग रुख और इसकी क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के उसके दृढ़ संकल्प को रेखांकित करती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में दृढ़ विश्वास, साहस और प्रतिबद्धता है। उन्होंने जम्मू और कश्मीर अध्ययन केंद्र के प्रयासों की भी सराहना की, जो इस मुद्दे पर युवाओं में जागरूकता बढ़ाता है और समूह के साथ अपने जुड़ाव का पता तब लगाया जब वह सार्वजनिक सेवा के लिए स्वेच्छा से काम करते थे। इस अवसर पर कर्नल गिरीश कुमार मेदिरत्ता और आशुतोष भटनागर भी मौजूद थे।

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