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केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर आज सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ बैठक की

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर आज सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ बैठक की। इस कार्यक्रम का विषय था “दो गर्भावस्थाओं के बीच सही समय और अंतराल सुनिश्चित करने के लिए जरूरी उपाय करना: मुद्दे और चुनौतियाँ। “

गर्भधारण के सही समय और अंतराल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा, “पर्याप्त अंतराल पर गर्भधारण करने से माता एवं शिशु के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। इससे स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं और महिलाओं और परिवारों को गर्भधारण के बारे में विकल्प चुनने का अधिकार मिलता है।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार हमेशा इन मुद्दों के प्रति सचेत रही है। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए), विस्तारित पीएमएसएमए, पीएमएसएमए में उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान, एनीमिया मुक्त भारत अभियान और प्रसवोत्तर परिवार नियोजन कार्यक्रम (प्रसवोत्तर आईयूसीडी और गर्भपात के बाद आईयूसीडी) जैसी पहलें शुरू करना सरकार की प्रतिबद्धता के कुछ उदाहरण हैं।” उन्होंने कहा कि “सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्म पर 130 से घटकर 97 हो गई है।”

केंद्रीय मंत्री ने परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की ओर से किए गए प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने इस संबंध में प्रभावी संचार रणनीति के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने का काम महिलाओं को सशक्त बनाए बिना पूरा नहीं किया जा सकता। महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए गर्भधारण के बीच सही समय और अंतराल बहुत महत्वपूर्ण है।”

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में, अपर सचिव और मिशन निदेशक (एनएचएम) आराधना पटनायक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत पहले ही 2.0 का टीएफआर हासिल कर चुका है, जिसमें 31 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्रतिस्थापन स्तर पर पहुंच चुके हैं। उन्होंने कहा कि पांच शेष राज्यों में टीएफआर को प्रतिस्थापन स्तर के तहत लाने के लिए जरूरी है कि इस विषय में एक प्रभावी रणनीति बनाई जाए।

इस कार्यक्रम में उपस्थित जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों में भारत में परिवार नियोजन संघ की प्रमुख डॉ. कल्पना आप्टे, यूएनएफपीए इंडिया में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सास्वती दास, मुंबई स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) में प्रजनन एवं सामाजिक जनसांख्यिकी विभाग के प्रोफेसर एवं प्रमुख डॉ. चंद्र शेखर, यूएसएआईडी इंडिया में परिवार स्वास्थ्य/आरएमएनसीएचए प्रभाग की प्रभाग प्रमुख मोनी सिन्हा सागर, जेपीगो इंडिया में कंट्री डायरेक्टर डॉ. सोमेश कुमार, गुरुग्राम में मातृत्व एडवांस्ड आईवीएफ एवं मातृत्व केंद्र की निदेशक एवं प्रमुख प्रोफेसर सुधा प्रसाद और भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में पूर्व सलाहकार (परिवार नियोजन एवं मातृ स्वास्थ्य) डॉ. एसके सिकदर शामिल थे।

चर्चा में परिवार नियोजन सेवाओं को प्रभावित करने वाले कई विषयों पर चर्चा की गई, जिसमें परिवार नियोजन में पुरुषों और महिलाओं की समान भागीदारी और परिवार नियोजन में डेटा के उपयोग से लेकर वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और भारत में उनकी उपयोगिता तक के विषय शामिल थे। चर्चा में शामिल लोगों ने अब तक के अनुभव और प्रस्तावित रणनीतियों, भविष्य में गर्भनिरोधकों के उपयोग की संभावना और परिवार नियोजन कार्यक्रम के संबंध में अपने अनुभव भी साझा किए।

गुरुग्राम स्थित मातृत्व एडवांस्ड आईवीएफ एवं मातृत्व केंद्र की निदेशक एवं प्रमुख प्रोफेसर सुधा प्रसाद ने मातृ मृत्यु दर के विभिन्न कारणों, गर्भधारण के बीच अपर्याप्त अंतराल के कारण पोषण संबंधी कमियों और बच्चों के जन्म के बीच अंतराल के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अनचाहे गर्भधारण के जोखिम को कम करने के लिए महिलाओं और दम्पतियों को गर्भनिरोधक साधनों के समूचे विकल्प उपलब्ध कराने की जरूरत पर जोर दिया।

डॉ. कल्पना आप्टे ने भारत में पारंपरिक लैंगिक मानदंडों के बारे में बात करते हुए परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी को प्राथमिकता देने की आवश्यकता बताई। उन्होंने परिवार नियोजन के संबंध में पति-पत्नी के बीच संवाद कायम करने और इस संबंध में पुरुषों के साथ बातचीत का दायरा बढ़ाने पर भी जोर दिया।

मोनी सिन्हा सागर ने परिवार नियोजन के साधनों के बारे में जानकारी का विस्तार करने और हार्मोनल आईयूडी और योनि रिंग जैसे नए गर्भनिरोधकों से लोगों का परिचय कराने की जरूरत बताई। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के आधार पर कई क्षेत्रों में उपलब्धियां दिखाई देती हैं लेकिन किशोरावस्था में गर्भधारण की बढ़ती घटनाएं और गर्भनिरोध के पारंपरिक तरीकों के उपयोग को लेकर अभी भी हमारे सामने चुनौतियां हैं।

डॉ. सोमेश कुमार और डॉ. सास्वती दास ने परिवार नियोजन कार्यक्रम का दायरा बढ़ाने के कार्य में अपने वैश्विक अनुभवों पर विचार साझा किए। उन्होंने सेवा वितरण, सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन, और एक सक्षम वातावरण बनाने जैसे तीन कार्यों को इस दिशा में सफलता के लिए अनिवार्य बताया। डॉ. सोमेश ने नए गर्भनिरोधकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए युवाओं तक इनकी जानकारी पहुंचाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

डॉ. चंद्र शेखर ने अलग-अलग भौगोलिक पृष्ठभूमि में गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल में असमानता और युवाओं में परिवार नियोजन की ज़रूरत के बारे में कम जानकारी होने के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों के बारे में अपर्याप्त जानकारी और असमय ही इनका उपयोग बंद कर देने की प्रवृत्ति से इस दिशा में किए जा रहे प्रयास बाधित होते है।

डॉ. एस.के. सिकदर ने राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के अपने अनुभव साझा करते हुए इसकी उपलब्धियों के बारे में बताया और कहा कि गर्भधारण के समय और अंतराल को बेहतर बनाने के लिए भविष्य में और काम किए जाने की जरूरत है।

सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि किशोरों को गर्भनिरोधक विकल्पों के बारे में सही और बिना किसी टीका टिप्पणी के जानकारी प्रदान करना, पूरी जानकारी के साथ निर्णय लेने में सक्षम बनाना तथा परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य विकल्पों तक पहुंच में सुधार लाना आवश्यक है।

केंद्रीय मंत्री ने इस मुद्दे के प्रति विशेषज्ञों की प्रतिबद्धता की सराहना की और कहा कि युवाओं को सशक्त बनाकर, इस संबंध में पुरुषों और महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करके पति-पत्नी के बीच संवाद कायम कर, सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखकर, परिवार नियोजन आंकड़ों में वर्तमान और ऐतिहासिक रुझानों से प्रेरणा लेकर तथा गर्भनिरोधक विकल्पों का विस्तार करके हम अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि परिवार नियोजन सेवाओं का कम उपयोग करने, आधुनिक गर्भ निरोधकों की कम मांग वाले क्षेत्रों, जिलों तथा ब्लॉकों की पहचान करने, उनका मानचित्रण करने, तथा वहां तक परिवार नियोजन सेवाओं को पहुंचाने, सामाजिक तथा व्यवहार परिवर्तन संचार को बढ़ाने, और इन प्रयासों में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को शामिल करने से वांछित परिणाम प्राप्त करने में सफलता मिल सकती है।

बैठक में संयुक्त सचिव (आरसीएच) मीरा श्रीवास्तव और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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