उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जिस मानसिकता के कारण बाबा साहब अंबेडकर को भारत रत्न नहीं मिला और मंडल आयोग की सिफारिशों को लगभग 10 वर्षों तक लागू नहीं किया गया, उसी मानसिकता के कारण आरक्षण के प्रति पूर्वाग्रह का स्वरूप आगे बढ़ा है और संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति विदेशी धरती पर लगातार भारत विरोधी बयानबाजी कर रहे हैं और आरक्षण समाप्त करने की बात कर रहे हैं।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कुछ लोगों द्वारा संविधान की धज्जियां उड़ाने की आलोचना की। उन्होंने कहा, “संविधान का किसी किताब की तरह दिखावा नहीं किया जा सकता। संविधान का सम्मान करना चाहिए। संविधान को पढ़ना चाहिए। संविधान को समझना चाहिए। संविधान को महज किताब की तरह प्रस्तुत करने और उसका प्रदर्शन करने को कम से कम कोई भी सभ्य, जानकार व्यक्ति, संविधान के प्रति समर्पित आस्था रखने वाला व्यक्ति और संविधान के सार को मानने वाला व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “संविधान के तहत हमें मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, वहीं मौलिक कर्तव्य भी शामिल हैं। और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य क्या हैं? संविधान का पालन करें और राष्ट्र ध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करें। स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें और भारत की संप्रभुता तथा अखंडता की रक्षा करें। यह कितनी विडंबना है कि कुछ विदेश यात्राओं का एकमात्र उद्देश्य इन कर्तव्यों की उपेक्षा करना है। भारतीय संविधान की भावना को सार्वजनिक रूप से तार-तार करना है।”
मुंबई में आज एलफिंस्टन टेक्निकल हाई स्कूल एंड जूनियर कॉलेज में संविधान मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “यह चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है और गहन सोच-विचार का विषय है! वही मानसिकता जो आरक्षण विरोधी थी, आरक्षण के प्रति पूर्वाग्रह के पैटर्न को आगे बढ़ाया गया है। आज संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति विदेश में कहता है कि आरक्षण समाप्त कर देना चाहिए।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “सबसे बड़ी उपाधि भारत रत्न, बाबा साहेब अंबेडकर को क्यों नहीं दिया गया, यह 31 मार्च 1990 को दिया गया। उन्हें यह सम्मान पहले क्यों नहीं दिया गया? बाबा साहब भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में बहुत प्रसिद्ध थे। बाबा साहब की मानसिकता से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण मुद्दा मंडल आयोग की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद, अगले दस वर्षों तक लागू नहीं किया गया। उस दशक के दौरान देश में दो प्रधानमंत्री हुए – इंदिरा गांधी और राजीव गांधी – इस रिपोर्ट के बारे में एक भी कदम नहीं उठाया गया।”
आरक्षण विरोधी मानसिकता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “मैं इस मानसिकता के बारे में कुछ विचार उद्धृत करना चाहता हूं। पंडित नेहरू, इस देश के पहले प्रधानमंत्री, उन्होंने क्या कहा था?’’ पंडित नेहरू ने कहा था – “मुझे किसी भी रूप में आरक्षण पसंद नहीं है। खासकर नौकरियों में आरक्षण।” ये भावना दुख की बात है। जबकि मैं कहता हूं “मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूं जो अकुशलता को बढ़ावा देता है और हमें औसत दर्जे वाले गुण की व्यवस्था की ओर ले जाता है।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आरक्षण समाप्त करने की बात करने वालों और इसे योग्यता के विरुद्ध मानने वालों की आलोचना की। उन्होंने कहा, “मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि आरक्षण संविधान की अंतरात्मा है, आरक्षण हमारे संविधान में सकारात्मकता के साथ है, सामाजिक समानता लाने और असमानताओं को कम करने में यह बहुत मायने रखता है। आरक्षण सकारात्मक कोशिश है, यह नकारात्मक नहीं है। आरक्षण किसी को अवसर से वंचित नहीं करता है, आरक्षण उन लोगों का हाथ थामता है जो समाज के स्तंभ और ताकत हैं।”
“यहां भी बांग्लादेश हो सकता है” जैसे बयानों की तुलना अराजकतावादी नारा से करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने युवाओं से हमारे लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों पर सीधे हमले का प्रतिकार करने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर की कही गई बातों की ओर सबका ध्यान खींचा। उन्होंने अंबेडकर को उद्धृत किया, “भारत ने एक बार पहले भी अपने ही कुछ लोगों की बेवफाई और विश्वासघात के कारण अपनी स्वतंत्रता खो दी थी। क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? क्या भारतीय देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या पंथ को देश से ऊपर रखेंगे? लेकिन इतना तो तय है कि अगर पार्टियां धर्म को देश से ऊपर रखेंगी तो हमारी आजादी दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।’’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि इस स्थिति से हम सभी को पूरी तरह से बचना चाहिए। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी आजादी की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने युवा पीढ़ी को आपातकाल के 21 महीनों के बारे में सचेत और जागरूक रहने का आह्वान करते हुए इसे स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे काला दौर बताया। उन्होंने कहा, “इस विशेष दिन को कभी मत भूलना, इसे हमेशा याद रखना। यह एक काला दिन है, हमारे इतिहास पर एक धब्बा है। 25 जून, 1975, आजादी के बाद की हमारी यात्रा का सबसे काला अध्याय है, हमारे लोकतंत्र का सबसे काला दौर। उस दिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नागरिकों और उनके अधिकारों के खिलाफ एक तूफान खड़ा कर दिया। 21 महीनों तक इस देश ने भयंकर उत्पीड़न सहा। हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया और कानून के शासन की पूरी तरह से अवहेलना की गई। उसके बाद जो हुआ, वह तानाशाही थी। डॉ. भीमराव अंबेडकर का सपना उन 21 महीनों में चकनाचूर हो गया। यह एक प्रतिशोधी तानाशाही थी और आतंक की कहानी सामने आई। मैं चाहता हूं कि युवा लड़के, लड़कियां और छात्र उस अवधि के बारे में जानें और इसे कभी न भूलें। इस बारे में जानकारी आपको संविधान बचाने का जज्बा देगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाएगा। हम संविधान दिवस इसलिए मनाते हैं ताकि खुद को याद दिला सकें कि हमारा संविधान कैसे बना, यह हमारे अधिकारों को कैसे स्थापित करता है, यह हमें कैसे सशक्त बनाता है और यह कैसे एक ऐसी व्यवस्था बनाता है, जिसमें एक साधारण पृष्ठभूमि का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है, एक किसान का बेटा उपराष्ट्रपति बन सकता है और एक बड़ी क्षमता तथा शिष्टता वाली आदिवासी महिला, जिनका जीवन कई कमियों और जमीनी हकीकतों से गुजरा है, राष्ट्रपति बन सकती है।’’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘‘25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह याद रखना बहुत जरूरी है, खासकर अगर आपने वह दौर नहीं देखा है, तो इतिहास की जानकारी होनी चाहिए कि उन 21 महीनों में क्या हुआ, कैसे अचानक सबकुछ बदल गया और कैसे, केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए, सब कुछ सीमाओं से परे किया गया। संवैधानिक प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए, संविधान की भावना को कुचलते हुए और उसके सार हमला करते हुए, रात के अंधेरे में आपातकाल की घोषणा की गई। यह एक डरावना अनुभव था। इसीलिए मैं इसे संविधान हत्या दिवस कहता हूं। यह हमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तानाशाही मानसिकता की याद दिलाता है, जिन्होंने आपातकाल लागू करके लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था। यह दिवस हर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिसने आपातकाल की ज्यादतियों के कारण कष्ट झेले हैं। यह भारतीय इतिहास में कांग्रेस का शुरू किया गया अब तक का सबसे काला दौर था।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने राज्य के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता के पृथक्करण की आवश्यकता और सभी अंगों को अपनी सीमाओं के भीतर काम करने की आवश्यकता पर विचार करते हुए और इस प्रकार राजनीतिक भड़काऊ बहस का केंद्र बिंदु बनने से बचने के लिए कहा, “राज्य के सभी अंगों- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका- का एक ही उद्देश्य है: संविधान की मूल भावना की सफलता सुनिश्चित करना, आम लोगों को सभी अधिकारों की गारंटी देना और भारत को समृद्ध करने तथा फलने-फूलने में मदद करना।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक आदर्शों को पोषित करने और विकसित करने के लिए राज्य के सभी अंगों को मिलकर काम करने की जरूरत है। कोई संस्था तब अच्छी तरह से काम करती है जब वह अपनी सीमाओं के प्रति सचेत होती है। कुछ सीमाएं स्पष्ट हैं, कुछ सीमाएं बहुत ही बारीक, वे सूक्ष्म हैं। इन पवित्र मंचों- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को राजनीतिक भड़काऊ बहस या किसी नैरेटिव का केंद्र बिंदु नहीं बनने दें। यह चुनौतीपूर्ण और कठिन माहौल में राष्ट्र की अच्छी सेवा करने वाली स्थापित संस्थाओं के लिए हानिकारक है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘‘हमारी सभी प्रकार की संस्थाएं चाहे वह चुनाव आयोग हो या फिर जांच एजेंसियां, कठिन परिस्थितियों में कर्तव्य निभाती हैं। उन्हें ऐसा कथन निराश कर सकता है। इससे राजनीतिक बहस शुरू हो सकती है। इससे एक नैरेटिव बन सकती है। हमें अपने संस्थानों के बारे में बेहद सचेत रहना होगा। वे मजबूत हैं, वे स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं, उन पर निगरानी रखी जाती है। वे कानून के शासन के तहत काम करते हैं। उस स्थिति में, अगर हम सिर्फ कुछ सनसनी पैदा करने के लिए काम करते हैं, तो एक राजनीतिक बहस या नैरेटिव का केंद्र बिंदु बन जाते हैं, जिसे पूरी तरह से टाला जा सकता है।’’
उपराष्ट्रपति ने अधिकार वाले पदों पर बैठे कुछ लोगों के बयानों पर दुख जताया। उन्होंने कहा, “अब देखिए, हम कहां पहुंच गए हैं। इसके बारे में बोलने में भी शर्म आती है। कोलकाता में एक महिला डॉक्टर से जुड़ी भयावह और बर्बर घटना को “लक्षणात्मक रुग्णता” के रूप में वर्णित किया गया है। यह किस तरह का वर्णन है? क्या हम अपने संविधान के इस तरह के अपमान को अनदेखा या बर्दाश्त कर सकते हैं? मैं युवाओं से इस तरह की कार्रवाइयों को अस्वीकार करने का आह्वान करता हूं। ऐसे लोग हमारी मातृभूमि भारत को नुकसान पहुंचा रहे हैं।”
इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले, महाराष्ट्र सरकार के कौशल, रोजगार, उद्यमिता एवं नवाचार विभाग के मंत्री मगल प्रभात लोढ़ा, महाराष्ट्र सरकार के कौशल, रोजगार, उद्यमिता एवं नवाचार विभाग के सचिव गणेश पाटिल और अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।
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