NHRC के हस्तक्षेप से राजस्थान में स्टाम्प पेपर पर नाबालिग लड़कियों को बेचने में शामिल 23 लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई सुनिश्चित हुई
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) ने पाया है कि हाल के दिनों में कुछ समुदायों में लड़कियों को बेचने से जुड़े मामलों के पंजीकरण को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि लड़कियों को बेचने की प्रथा, जिनमें से कई नाबालिग हैं, अभी भी बेरोकटोक जारी है और बिना किसी रोक-टोक के चल रही है। आयोग ने कहा है कि इस प्रथा पर पूरी तरह से अंकुश लगाने की आवश्यकता है और सभी हितधारकों द्वारा कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।
आयोग की यह टिप्पणी 27 अक्टूबर, 2022 को मीडिया रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दर्ज किए गए एक मामले में उसके निष्कर्षों के मद्देनजर आयी , जिसमें आरोप लगाया गया था कि राजस्थान के आधा दर्जन जिलों में लड़कियों को स्टांप पेपर पर बेचा जा रहा है और उन्हें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, मुंबई, दिल्ली और विदेशों मं् भेजा जा रहा है और उन्हे गुलाम बनाकर उनका शारीरिक शोषण, यातना और यौन उत्पीड़न किया जा रहा है।
आयोग ने इस मामले में राजस्थान के मुख्य सचिव और डीजीपी के अलावा अपने विशेष प्रतिवेदक से रिपोर्ट मांगी थी। राज्य सरकार ने घटना की पुष्टि की और कहा कि 23 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है और दुर्व्यापार की शिकार 7 लड़कियों को क्रमश: नारी निकेतन बालिका सुधार गृह, अजमेर और नारी निकेतन, अजमेर में पुनर्वासित किया गया है।
विशेष प्रतिवेदक की रिपोर्ट से आयोग ने पाया कि स्टांप पेपर पर महिलाओं को बेचना पुरुष प्रधान कंजर समुदाय में प्रचलित प्रथा है और लड़कियों के दुर्व्यापार की यह अनैतिक प्रथा राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले कुछ समुदायों में व्याप्त है। छोटी बेटियों और बहनों को देह व्यापार में धकेला जा रहा है।
अतः, इस खतरे को रोकने के लिए आयोग ने संस्तुति की है कि प्रत्येक राज्य में एक राज्य मानव दुर्व्यापार विरोधी नोडल अधिकारी होना चाहिए, जो जिला मानव दुर्व्यापार विरोधी इकाइयों (डीएएचटीयू) और संबंधित राज्य सरकार के माध्यम से प्रभावी कदम और उपाय करके सरकार के साथ समन्वय करेगा। वह राज्य सरकार के सचिव या पुलिस महानिरीक्षक के समतुल्य होना चाहिए।
आयोग ने यह भी संस्तुति की है कि डीएएचटीयू, जिन्हें 27 दिसंबर, 2019 और 1 दिसंबर, 2020 के परिपत्रों के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित एक व्यापक योजना के तहत स्थापित किया जाना था, का नेतृत्व एक राजपत्रित अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए, जो डिप्टी एसपी के समतुल्य होना चाहिए। उन्हें महिला एवं बाल कल्याण, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, श्रम एवं रोजगार विभागों के प्रतिनिधियों, प्रतिष्ठित स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और जिले में मानव दुर्व्यापार क्षेत्र के विशेषज्ञों और कानूनी सलाहकारों की मदद से ऐसी घटनाओं की प्रभावी निगरानी करनी चाहिए।
मानव दुर्व्यापार की जाँच और पीड़ितों के पुनर्वास सहित डीएएचटीयू के विभिन्न कार्यों की संस्तुति करते हुए, आयोग ने सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य सचिवों को आठ सप्ताह के भीतर अनुपालन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किए हैं।
इस प्रकार संघ राज्य क्षेत्र सरकारों को कुछ समुदायों में प्रचलित ऐसी प्रथाओं को रोकने और बाल वेश्यावृत्ति को समाप्त करने के लिए सभी प्रभावी उपाय आरंभ करने का निर्देश दिया जाता है, साथ ही यौन शोषण की शिकार नाबालिग लड़कियों को राज्यों की विभिन्न योजनाओं के तहत उपलब्ध पर्याप्त राहत और पुनर्वास प्रदान करके समाज के साथ एकीकृत करके उनके प्रभावी और पर्याप्त पुनर्वास और पुनः एकीकरण के लिए भी कहा जाता है।
संघ राज्य क्षेत्र सरकारें, स्थानीय कर्मचारियों के माध्यम से, जैसा कि आयोग ने संस्तुति की है, बाल वेश्यावृत्ति को रोकने वाले संवैधानिक निषेध के बारे में जागरूकता फैलाने और स्टांप पेपर पर नाबालिग लड़कियों की बिक्री और उनकी अवैध शादी के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए बाध्य हैं, ताकि ऐसी प्रथाओं को समाप्त किया जा सके।
आयोग ने राजस्थान से दुर्व्यापार के लिए लाई गई और वेश्यावृत्ति में धकेली गई मुंबई बार डांस गर्ल्स की दुर्दशा पर भी ध्यान दिया है, जैसा कि इसके विशेष प्रतिवेदक की रिपोर्ट में बताया गया है। तदनुसार, आयोग ने राजस्थान के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को डांस बार में लड़कियों की दुर्दशा का पता लगाने के लिए जांच के लिए पुलिस महानिरीक्षक के पद के समतुल्य अधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम मुंबई भेजने का निर्देश दिया है।
आयोग ने डीजीपी, महाराष्ट्र को इस संबंध में राजस्थान पुलिस को मदद देने को कहा है ताकि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकें और ऐसी घटनाओं के मूल स्थानों पर प्रत्यावर्तन सुनिश्चित किया जा सके एवं राज्य और जिला स्तरीय समितियां अपने द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार उनके पुनर्वास को सुनिश्चित कर सकें ।
आयोग ने यह भी पाया है कि कानून में कड़े प्रावधानों और मानव दुर्व्यापार के संदर्भ में विभिन्न मामलों में सुप्रीम कोर्ट और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसलों के बावजूद, यह कहना थोड़ा मुश्किल है कि वांछित परिणाम हासिल हुए हैं। इस संदर्भ में, आयोग ने अपनी कार्यवाही में बुद्धदेव करमाकर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011), बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ (2011) 5एससीसी 538, और विशाल जीत बनाम भारत संघ, एआईआर 1990 एससीसी 1412 के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विशिष्ट संदर्भों के साथ-साथ निहाल सिंह बनाम राम बाई (एआईआर 1987 मध्य प्रदेश 126) में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लेख किया और आशा और विश्वास व्यक्त किया कि बाल वेश्यावृत्ति और विभिन्न बुरे उद्देश्यों के लिए नाबालिगों के खरीदफ़रोख्त को खत्म करने की दिशा में अदालतों के निर्देशों को अक्षरशः लागू किया जाएगा।