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महिला शांति सैनिकों की उपस्थिति और कार्य स्थायी शांति और सुरक्षा का निर्माण करने में लैंगिक विविधता के महत्व को प्रदर्शित करते हैं: रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ

“महिला शांति सैनिक लिंग आधारित हिंसा को रोकने और उसका जवाब देने में योगदान देती हैं, पीड़ितों को सहायता और सुरक्षा प्रदान करती हैं। उनकी उपस्थिति और कार्य स्थायी शांति और सुरक्षा का निर्माण करने में लैंगिक विविधता के महत्व को प्रदर्शित करते हैं”, रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने 25 फरवरी, 2025 को नई दिल्ली में ‘शांति स्थापना में महिलाएं – एक वैश्विक दक्षिण दृष्टिकोण’ पर आयोजित सम्मेलन में समापन भाषण देते हुए कहा। भारत में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र ने दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें भारत और 35 अन्य देशों की महिला शांति सैनिकों को शांति स्थापना में उनकी बदलती भूमिका की जांच करने और चुनौतीपूर्ण मिशनों में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए रणनीतियों पर सहयोग करने के लिए एकजुट किया गया।

मंत्री महोदय ने इस तथ्य पर बल दिया कि भारत शांति स्थापना अभियानों में एक गौरवशाली भागीदार के रूप में काम करता रहा है, जिसने 50 से अधिक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सात दशकों में 2.9 लाख से अधिक सैनिकों को तैनात किया है। उन्होंने आगे कहा, “सबसे बड़े सैन्य योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में, हम मानते हैं कि शांति स्थापना केवल बलों को तैनात करने के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी क्षमताओं को मजबूत करने, तैयारियों को बेहतर बनाने और संघर्ष समाधान के लिए एक जन-केंद्रित, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के बारे में है।” उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि महिला शांति सैनिकों की भागीदारी शांति स्थापना के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है, जो ये सुनिश्चित करती है कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों से संबंधित जरूरतों को संबोधित किया जाए।

बहुत से संघर्षों और उभरती चुनौतियों के साथ लगातार बदल रहे सुरक्षा परिदृश्य पर रोशनी डालते हुए संजय सेठ ने इस बात पर बल दिया कि शांति, समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक दक्षिण देशों के बीच एकता की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि इन देशों को एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना चाहिए, सामूहिक ज्ञान का लाभ उठाना चाहिए और साझा आकांक्षाओं को दिखाई देने वाली प्रगति में बदलने के लिए संसाधनों को एक साथ लाना चाहिए।

रक्षा राज्य मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन को दोहराते हुए कहा कि भारत ने पांच मार्गदर्शक सिद्धांतों के माध्यम से अपने वैश्विक जुड़ाव को अभिव्यक्त किया है: सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि। उन्होंने रेखांकित किया कि ये सिद्धांत एक ऐसी विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए हमारे राष्ट्र की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं, जो न्यायपूर्ण, संतुलित और सभी देशों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने आगे कहा, “हमारी प्राथमिकताएं मानव-केंद्रित, बहुआयामी और स्थायी होनी चाहिए, जो विकास को समावेशी, न्यायसंगत और पर्यावरण संबंधी जागरूकता को सुनिश्चित बनाए।”

इस सम्मेलन के अंत में, संजय सेठ ने वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए उनके असाधारण योगदान और समर्पण के लिए महिला शांति सैनिकों को सम्मानित किया और उनसे बातचीत की। उन्होंने कहा कि वे रोल मॉडल के रूप में भी काम करती हैं, पारंपरिक लैंगिक मानदंडों को चुनौती देती हैं और स्थानीय महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती हैं।

सम्मेलन के पहले दिन कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई, जिनका संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों पर प्रभाव पड़ा, जैसे शांति स्थापना के माहौल में ‘यौन शोषण और दुर्व्यवहार’ से निपटने पर चर्चा और यह पता लगाना कि शांति स्थापना में आधुनिक प्रौद्योगिकी किस तरह से परिचालन प्रभावशीलता में सुधार ला सकती है। दूसरे दिन ‘महिला शांति सैनिकों की भूमिका’, ‘वैश्विक दक्षिण में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में सहयोग के अवसर’ और ‘शांति स्थापना में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना’ जैसे प्रमुख विषयों पर विचार-विमर्श किया गया।

इस अवसर पर थलसेना के उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एनएस राजा सुब्रमणि, शांति अभियानों के अवर महासचिव, शांति अभियान विभाग जीन-पियरे लैक्रोइक्स, वैश्विक दक्षिण देशों और भारत की महिला अधिकारी, वरिष्ठ गणमान्य व्यक्ति और अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी उपस्थित थे। इस सम्मेलन ने समावेशी और प्रभावी शांति अभियानों को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्व की पुनः पुष्टि की। इसने लैंगिक समानता के लिए हमारे राष्ट्र की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला तथा वैश्विक सुरक्षा और शांति प्रयासों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित किया। सहयोगात्मक चर्चाओं और कार्रवाई योग्य रणनीतियों के माध्यम से, इस सम्मेलन का उद्देश्य महिला शांति सैनिकों की भूमिका को बेहतरर करना और भविष्य के मिशनों पर उनके प्रभाव को बढ़ाना था।

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