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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में सोसाइटी ऑफ़ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स (SIDM) के वार्षिक सत्र को संबोधित किया

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सशस्त्र बलों द्वारा भारत में निर्मित उपकरणों के प्रभावी उपयोग ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है।” उन्होंने घरेलू उद्योग, विशेष रूप से निजी क्षेत्र से नवाचार और अनुसंधान एवं विकास; प्रौद्योगिकी-आधारित विनिर्माण, व्यक्तिगत उप-प्रणालियों और घटकों के उत्पादन तथा आपूर्ति एवं रखरखाव श्रृंखलाओं पर प्रभुत्व पर ध्यान केंद्रित करके आत्मनिर्भरता की दिशा में और तेज़ी लाने का आग्रह किया। वे 27 अक्टूबर, 2025 को नई दिल्ली में ‘रक्षा आत्मनिर्भरता: स्वदेशी उद्योग के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करना’ विषय पर आयोजित सोसाइटी ऑफ़ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स (एसआईडीएम) के वार्षिक सत्र को संबोधित कर रहे थे।

रक्षा मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विश्व ने आकाश मिसाइल प्रणाली, ब्रह्मोस, आकाश तीर वायु रक्षा नियंत्रण प्रणाली और अन्य स्वदेशी उपकरणों/प्लेटफ़ॉर्मों की शक्ति देखी और इस ऑपरेशन की सफलता का श्रेय बहादुर सशस्त्र बलों के साथ-साथ नवाचार, डिज़ाइन और विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले “उद्योग योद्धाओं” को जाता है। उन्होंने भारतीय उद्योग को थल सेना, नौसेना और वायु सेना के साथ-साथ रक्षा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बताया।

राजनाथ सिंह ने कहा, “हालांकि हमने दृढ़ संकल्प के साथ जवाब दिया और हमारी सेनाएं देश की सीमाओं की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार हैं, फिर भी हमें आत्म-निरीक्षण करना जारी रखना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर एक केस स्टडी के रूप में काम करना चाहिए जिससे हम सीख सकें और अपनी भविष्य की दिशा तय कर सकें। इस घटना ने हमें एक बार फिर दिखाया है कि हमारी सीमाओं पर, कहीं भी, कभी भी कुछ भी हो सकता है। हमें युद्ध जैसी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा और हमारी तैयारी हमारे अपने आधार पर होनी चाहिए।”

रक्षा मंत्री ने बल देकर कहा कि वर्तमान वैश्विक अनिश्चितताएं हर क्षेत्र का गहन मूल्यांकन आवश्यक बनाती हैं और निरंतर विकसित होते रक्षा क्षेत्र और युद्ध की प्रकृति से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए ‘स्वदेशीकरण’ ही एकमात्र उपाय है। उन्होंने कहा, “स्थापित विश्व व्यवस्था कमज़ोर हो रही है और कई क्षेत्रों में संघर्ष क्षेत्र बढ़ रहे हैं। इसलिए, भारत के लिए अपनी सुरक्षा और रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करना आवश्यक हो गया है।”

राजनाथ सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने और घरेलू इको-सिस्टम को मज़बूत करने के लिए एक समान अवसर प्रदान कर रही है तथा उद्योग जगत को इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि रक्षा उपकरण केवल देश में असेंबल न हों, बल्कि ‘मेड इन इंडिया, मेड फॉर द वर्ल्ड’ की भावना को मूर्त रूप देने वाले उपकरण बनाने के लिए एक वास्तविक विनिर्माण आधार स्थापित हो। नवाचार और अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति विकसित करने के लिए क्वांटम मिशन, अटल नवाचार मिशन और राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन जैसी कई पहलें की गई हैं। हमारे उद्योग जगत को वह हासिल करना चाहिए जो देश में अभी तक हासिल नहीं हुआ है।”

सरकार के आत्मनिर्भरता प्रयासों के कारण हुई प्रगति पर प्रकाश डालते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि 2014 से पहले भारत अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर था, लेकिन वर्तमान में वह अपनी धरती पर ही रक्षा उपकरणों का विनिर्माण कर रहा है। उन्होंने कहा, “हमारा रक्षा उत्पादन, जो 2014 में केवल लगभग 46,000 करोड़ रुपये था, अब बढ़कर रिकॉर्ड 1.51 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें से 33,000 करोड़ रुपये का योगदान निजी क्षेत्र द्वारा किया गया है। हमारा रक्षा निर्यात, जो 10 साल पहले 1,000 करोड़ रुपये से कम था, अब लगभग 24,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड को छू गया है। मुझे विश्वास है कि मार्च 2026 तक रक्षा निर्यात 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। हमने हाल ही में रक्षा खरीद नियमावली 2025 शुरू की है और रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 को संशोधित करने के लिए काम चल रहा है।” उन्होंने निजी क्षेत्र से अगले तीन वर्षों में घरेलू रक्षा विनिर्माण में अपने योगदान को वर्तमान लगभग 25 प्रतिशत से बढ़ाकर कम से कम 50 प्रतिशत करने का आग्रह किया।

स्वदेशीकरण को और आगे बढ़ाने के लिए राजनाथ सिंह ने उद्योग जगत से आग्रह किया कि वे आपूर्ति श्रृंखलाओं और रखरखाव श्रृंखलाओं पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए प्रयास करें और साथ ही केवल पूर्ण प्लेटफ़ॉर्म ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत उप-प्रणालियों और कलपुर्जों के स्वदेशी निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने कहा, “वर्तमतान समय में, जब हम विदेशों से बड़े उपकरण खरीदते हैं, तो उसके पूरे जीवन-चक्र के दौरान उसके रखरखाव, मरम्मत, ओवरहाल और स्पेयर पार्ट्स प्रबंधन के महत्वपूर्ण वित्तीय निहितार्थ होते हैं। इससे हमारे संसाधनों पर दबाव पड़ता है और दूसरे देशों पर निर्भरता बनी रहती है। चूंकि किसी प्लेटफ़ॉर्म में बड़ी संख्या में घटक और इनपुट होते हैं, इसलिए इन उप-प्रणालियों का स्वदेशी विनिर्माण हमारी स्वदेशी सामग्री को बढ़ाने में मदद कर सकता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘हमारी धरती, हमारी ढाल’ हमारी पहली पसंद बने।”

रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि हमारा उद्देश्य केवल भारत में असेंबली करना नहीं, बल्कि देश के भीतर ही प्रौद्योगिकी-आधारित विनिर्माण विकसित करना होना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रभावी हो और हमारे स्वदेशी उद्योगों को सशक्त करने का माध्यम भी बने।”

यह कहते हुए कि कोई भी देश नवाचार और अनुसंधान एवं विकास के बिना प्रगति नहीं कर सकता राजनाथ सिंह ने उद्योग जगत से बड़े पैमाने पर एंड-टू-एंड प्रौद्योगिकी उत्पाद विकसित करने का आह्वान किया, क्योंकि एसआईडीएम अगले साल एक दशक पूरा कर रहा है। उन्होंने सरकार का पूरा समर्थन व्यक्त करते हुए कहा, “आईडीईएक्स और एडीआईटीआई के माध्यम से हमारे युवा नवप्रवर्तकों और उद्योगपतियों को चुनौतियां/समस्याएं दी जाती हैं। उद्योग जगत को अब बड़े पैमाने पर एंड-टू-एंड प्रौद्योगिकी उत्पाद विकसित करने और उन्हें हमारे पास लाने की चुनौती को स्वीकार करना चाहिए। हम उन पर चर्चा करेंगे और कमियों को दूर करेंगे। हमारा प्रयास निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करके आगे बढ़ना है। अगर हम मिलकर काम करेंगे, तो रक्षा क्षेत्र का पूरा परिदृश्य बदल जाएगा।”

इस अवसर पर रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह, एसआईडीएम के अध्यक्ष राजिंदर सिंह भाटिया, एसआईडीएम के महानिदेशक रमेश के., एसआईडीएम के पूर्व अध्यक्ष एसपी शुक्ला, सशस्त्र बलों तथा रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, उद्योग जगत का नेतृत्व और युवा उद्यमी उपस्थित थे।

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