केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि हर तीसरे भारतीय का यकृत वसायुक्त है, जो टाइप 2 मधुमेह और अन्य चयापचय संबंधी विकारों का कारण है। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज नई दिल्ली में यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान (इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज) में चयापचय यकृत रोगों को रोकने और इलाज करने के लिए एक वर्चुअल नोड इंडो-फ्रेंच लिवर एंड मेटाबोलिक डिजीज नेटवर्क (आईएनएफएलआईएमईएन) का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इंडो-फ्रेंच नोड, आईएनएफएलआईएमईएन का उद्देश्य एक सामान्य चयापचय यकृत विकार, गैर-मादक वसायुक्त यकृत रोग (एनएएफएलडी) से संबंधित प्रमुख मुद्दों का समाधान करना है। यह स्थिति अंततः सिरोसिस और प्राथमिक यकृत कैंसर के रूप में बदल सकती है। यह मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और कई अन्य बीमारियों को बढ़ाता है। स्वयं एक एंडोक्राइनोलॉजिस्ट के रूप में, मैं वसायुक्त यकृत की बारीकियों और मधुमेह और अन्य चयापचय संबंधी विकारों के साथ इसके संबंध को समझता हूं।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), एमओएस पीएमओ, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग और एमओएस कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन) ने कहा, “भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप दोनों जीवन शैली में बदलाव के लिए जिम्मेदार हैं। आहार और महत्वपूर्ण रूप से चयापचय संबंधी लक्षण जैसे मधुमेह और मोटापा ने इस रोग को बढ़ाया है। डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि लगभग 3 में से 1 भारतीय को फैटी लीवर है। जबकि पश्चिम में, अधिकांश एनएएफएलडी मोटापे से जुड़ा रोग है। भारतीय उपमहाद्वीप में, एनएएफएलडी लगभग 20 प्रतिशत गैर-मोटापे के रोगियों में भी होता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा, “भारत और फ्रांस में एल्कोहोलिक यकृत रोग (एएलडी) की बड़ी संख्या है।” उन्होंने कहा कि एनएएफएलडी और एएलडी दोनों ही स्टीटोसिस से स्टीटोहेपेटाइटिस, सिरोसिस और प्राथमिक लीवर कैंसर-लीवर में शुरू होने वाला कैंसर – हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) के रूप में बढ़ने लगते हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछले दशक में भारत की प्रगति पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “भारत न केवल उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवा में बल्कि निवारक स्वास्थ्य सेवा में भी विश्व में अग्रणी बन गया है।” फैटी लीवर के विभिन्न चरणों का पता लगाने और गंभीर, पूर्ण विकसित बीमारियों में उनकी प्रगति के लिए सरल, कम लागत वाले नैदानिक परीक्षणों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। दृष्टिकोण और एल्गोरिदम को भारतीय संदर्भ के अनुरूप, कम कीमत वाला और ध्यान रखने योग्य होना चाहिए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने सलाह दी कि बायोमार्कर की खोज के लिए एक व्यापक ओमिक्स दृष्टिकोण का उपयोग करके यकृत रोगों की बढ़ोत्तरी, प्रगति और संभावित प्रबंधन को समझने के लिए आईएनएफएलआईएमईएन जैसे एक संयुक्त बहु-विषयक सहयोगी कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता है।
नागरिकों को सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करने और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के सहयोग पर बल दिया है। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का समर्थन करने और उसमें सुधार करने के उद्देश्य से सरकार की पहलों और नीतियों की जानकारी भी दी। उन्होंने कहा, “भारत में एक बड़ी आबादी चयापचय (मेटाबॉलिक) संबंधी विकारों से प्रभावित है, क्योंकि हमारा फिनोटाइप अलग है।” उन्होंने कहा कि हमें भारतीय समस्याओं के लिए भारतीय चिकित्सा समाधानों की ही आवश्यकता है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने अत्याधुनिक विज्ञान के लिए उदारता से धन उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि वर्चुअली नोड, कम समय में एक वास्तविक नोड बन जाएगा। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि उनके विभाग इस नोड की हर संभव मदद करेंगे। उन्होंने यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) द्वारा प्रस्तावित इस नए दृष्टिकोण को अपनाने के लिए विभाग और इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर द प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड रिसर्च (सीईएफआईपीईआरए) के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रो. अभय करंदीकर की भी सराहना की।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान के सचिव डॉ. शिव कुमार सरीन और उनकी टीम और फ्रांसीसी सहयोगियों को बधाई दी। उन्होंने कम लागत और उच्च उत्पादन के माध्यम से चयापचय (मेटाबॉलिक) संबंधी विकारों के लिए उपचार खोजने का भी निर्देश दिया। इस नोड में 11 फ्रांसीसी और 17 भारतीय डॉक्टर संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।
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