भारत

भारत ने उच्च स्तरीय सम्मेलन में समुद्री शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में कदम बढ़ाया

पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की ओर से सह-आयोजित भारत में समुद्री डीकार्बोनाइजेशन पर सम्मेलन, आज ले मेरिडियन, नई दिल्ली में संपन्न हुआ। यह कार्यक्रम 200 से अधिक प्रतिनिधियों, जिनमें में प्रमुख भारतीय बंदरगाहों के नेताओं, केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी, उद्योग हितधारक, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ और शिक्षाविद् शामिल हैं, को साथ लाया, जिन्होंने हरित शिपिंग और बंदरगाह संचालन के भविष्य पर चर्चा की।

सम्मेलन ने 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया और मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 के अनुरूप, अपने समुद्री क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने के लिए रणनीतिक पहल पर प्रकाश डाला। चर्चा में हरित बंदरगाह के इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छ बंदरगाह शिल्प, शून्य-कार्बन ईंधन का उपयोग, उत्सर्जन में कमी की रणनीतियों और अंतर्देशीय जलमार्गों का विद्युतीकरण सहित कई महत्वपूर्ण विषयों को जोड़ा गया।

अपने मुख्य भाषण में, एमओपीएसडब्ल्यू के सचिव टी. के. रामचंद्रन ने अपने समुद्री क्षेत्र में बदलाव के लिए भारत के दृढ़ संकल्प को दोहराया। उन्होंने कहा, “भारत का समुद्री क्षेत्र न केवल देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण सहयोगी भी है। हरित सागर ग्रीन पोर्ट दिशानिर्देश और हरित नौका ग्रीन ट्रांजिशन दिशानिर्देश जैसी पहल के जरिए, एमओपीएसडब्ल्यू हरित ऊर्जा, टिकाऊ बंदरगाह संचालन और स्वच्छ शिपिंग कार्यों को अपनाने में एक वैश्विक उदाहरण स्थापित कर रहा है। आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन सुनिश्चित करते हुए, हमारे आज के प्रयास कल के समुद्री परिदृश्य को परिभाषित करेंगे।

“एमओपीएसडब्ल्यू की कम या शून्य-उत्सर्जन ईंधन को अपनाने और 2047 तक भारतीय जल में सभी जहाजों को हरित जहाजों में बदलने की महत्वाकांक्षा जलवायु कार्रवाई और संपोषित समुद्री प्रथाओं के लिए दूरदर्शी दृष्टिकोण का उदाहरण है”।

“भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने के अपने लक्ष्य के साथ, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। कार्बन की सघनता को कम करके और ‘प्रकृति के साथ काम करना’ सिद्धांतों को अपनाकर, एमओपीएसडब्ल्यू यह सुनिश्चित करता है कि भारत की समुद्री यह क्षेत्र न केवल आर्थिक विकास का समर्थन करता है, बल्कि हर कदम पर नवाचार और स्थिरता लाने के साथव्यापक जलवायु उद्देश्यों के साथ भी संरेखित होता है।

हरित बंदरगाह और समुद्री डीकार्बोनाइजेशन पर एक विशेष सत्र, कार्यक्रम का एक मुख्य आकर्षण था, जहां विशेषज्ञों ने भारतीय बंदरगाहों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए जानकारी और सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को साझा किया। सत्र में डीएनवी मैरीटाइम एडवाइजरी इंडिया के प्रमुख अजय कुमार सिंह की प्रस्तुतियां शामिल थीं, जिन्होंने ऊर्जा दक्षता बढ़ाने में स्मार्ट बंदरगाहों की भूमिका पर चर्चा की, और सिंगापुर के समुद्री और बंदरगाह प्राधिकरण के उप निदेशक लॉरेंस ओंग ने सिंगापुर की डीकार्बोनाइजेशन यात्रा में अंतर्दृष्टियां साझा कीं।

एक अन्य सत्र में, चर्चाएं समुद्री संचालन में शून्य-कार्बन ईंधन की भूमिका पर केंद्रित रहीं, जहां विशेषज्ञों ने हरित हाइड्रोजन और अमोनिया जैसे वैकल्पिक ईंधन को तुरंत अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। मार्सक लाइन के कैप्टन प्रशांत एस. विज ने हरित ईंधन की ओर बढ़ने में वैश्विक चुनौतियों और अवसरों पर जहाज मालिकों के नजरिए को साझा किया, जबकि कोचीन शिपयार्ड के सीएमडी मधु नायर ने वैकल्पिक ईंधन के साथ भारतीय अनुभव प्रस्तुत किया।

सम्मेलन में डीकार्बोनाइजेशन के लिए एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में अंतर्देशीय जलमार्गों पर भी प्रकाश डाला गया, जिसमें एमओपीएसडब्ल्यू में संयुक्त सचिव (आईडब्ल्यूटी) आर. लक्ष्मणन और कोच्चि जल मेट्रो के सीजीएम पी. जे. शाजी की प्रस्तुतियां शामिल थीं, जिसमें जल आधारित परिवहन में सुधार लाने और उत्सर्जन को कम करने के सफल प्रयासों को दर्शाया गया था। आर. लक्ष्मणन ने यह भी सुझाव दिया कि कम उत्सर्जन वाले वैकल्पिक ईंधन को अपनाने से एक स्थायी परिवहन मोड के रूप में आईडब्ल्यूटी की पूरी क्षमता का दोहन करने में मदद मिलेगी।

सत्र के दौरान एमओपीएसडब्ल्यू के संयुक्त सचिव (बंदरगाह) आर. लक्ष्मणन ने भारत के समुद्री उद्योग में डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में ठोस प्रगति के लिए क्षेत्र के भीतर निरंतर सहयोग के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने प्रमुख बंदरगाहों पर हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात हेतु पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए एमओपीएसडब्ल्यू ब्लूप्रिंट पर जोर दिया।

एडीबी और केपीएमजी के प्रतिष्ठित पेशेवरों की ओर से सम्मेलन का संचालन किया गया, जिससे पूरे कार्यक्रम के दौरान व्यावहारिक चर्चा और निर्बाध समन्वय सुनिश्चित हुआ। भारत की समुद्री डीकार्बोनाइजेशन प्राथमिकताएं और टिकाऊ व हरित शिपिंग प्रथाओं के लिए आगे का मार्ग, विषय पर ईआरडीआई, एडीबी के सलाहकार, डॉ. येसिम एल्हान-कयालार की ओर से संचालित एक पैनल चर्चा के साथ सम्मेलन का समापन हुआ।

परिणामों के निष्कर्ष के रूप में, सम्मेलन में साझा डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकारी निकायों, उद्योग के नेताओं और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच निरंतर सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इसमें नवीन वित्तपोषण मॉडल और नियामक ढांचे पर आगे की चर्चा के लिए भी मंच तैयार हुआ, जो हरित शिपिंग और बंदरगाह विकास का समर्थन करते हैं।

जैसे-जैसे भारत अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, समुद्री डीकार्बोनाइजेशन पर सम्मेलन से प्राप्त अंतर्दृष्टि उन नीतियों और प्रथाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जो स्वच्छ, हरित समुद्री क्षेत्र में योगदान देती है।

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