नीति आयोग ने आज ‘राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के ज़रिए गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार’ शीर्षक से एक पॉलिसी रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी, नीति आयोग में सदस्य (शिक्षा) डॉ. विनोद कुमार पॉल, नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम, उच्च शिक्षा विभाग सचिव विनीत जोशी, और एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) महासचिव डॉ. पंकज मित्तल द्वारा जारी की गई।
यह रिपोर्ट, उच्च शिक्षा क्षेत्र में अपनी तरह का पहला नीति दस्तावेज है, जो खासकर राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (एसपीयू) पर केंद्रित है। यह पिछले दशक में विभिन्न विषयों पर गुणवत्ता, वित्तपोषण, प्रशासन और रोजगार के महत्वपूर्ण संकेतकों पर विस्तार से परिमाणात्मक विश्लेषण प्रदान करता है। यह 20 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च और तकनीकी शिक्षा विभागों के राज्य सरकार के अधिकारियों, कुलपतियों और 50 एसपीयू के वरिष्ठ शिक्षाविदों और कई राज्य उच्च शिक्षा परिषदों के अध्यक्षों के साथ आयोजित व्यापक चर्चाओं के मिली विशेष जानकारियां मुहैया कराता है।
इस मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने कहा, कि कई वैश्विक शिक्षा प्रणालियों में, सार्वजनिक विश्वविद्यालय उत्कृष्टता के मानक स्थापित करते हैं, जैसा कि अमेरिका और ब्राजील में देखा गया है। भारत में चूंकि आईआईटी जैसे संस्थान हैं, एसपीयू को भी उच्च मानकों के लिए कोशिशें करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री के निर्देशानुसार, नीति आयोग की भूमिका शोध के ज़रिए साक्ष्य तैयार करना है, जबकि कार्यान्वयन मंत्रालय की जिम्मेदारी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि रिपोर्ट में शामिल सिफारिशों को केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रालय उत्साहपूर्वक आगे बढ़ाएंगे।
नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद कुमार पॉल ने रिपोर्ट को एनईपी के कार्यान्वयन और विकसित भारत 2047 के लिए भारत के दृष्टिकोण के संदर्भ में रखा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि भारत की 80% उच्च शिक्षा एसपीयू में प्राप्त हो रही है, मानव पूंजी बनाने और भारत को एक ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए उनमें सुधार करना बेहद ज़रुरी हो जाता है।
नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने ज़ोर देते हुए कहा कि 2035 तक, एनईपी 2020 का लक्ष्य, उच्च शिक्षा प्रणाली में छात्रों का नामांकन दोगुना करते हुए इसे करीब 9 करोड़ तक पहुंचाना है। इनमें से लगभग 7 करोड़ एसपीयू में पढ़ाई जारी रखेंगे। इसलिए, यह बेहद ज़रुरी है कि ये विश्वविद्यालय केवल उच्च शिक्षा तक पहुंच बनाने पर ध्यान केंद्रित ना करते हुए, 2047 तक विकसित भारत बनने के दृष्टिकोण को मज़बूती देने के लिए ज़रुरी उच्च गुणवत्ता वाले मानव संसाधन तैयार करने के लिए भी विश्व स्तरीय उच्च शिक्षा प्रदान करने पर ज़ोर दें। उन्होंने रिपोर्ट को नीति आयोग की बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया, जो भारत के उच्च शिक्षा के परिदृश्य को बदलने में एनईपी 2020 का पूरक होगी।
डीएचई सचिव विनीत जोशी ने हाल के बजट में घोषित प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला, जिसमें 10,000 पीएमआरएफ रिसर्च फेलो का चयन, सेकेंड जेनरेशन आईआईटी में 6,500 सीटें जोड़ना और क्षेत्रीय भाषा शिक्षा के लिए भारतीय भाषा पाठ्यपुस्तक योजना शामिल है। उन्होंने 2023-24 से 2025-26 के लिए पीएम-ऊषा को 13,000 करोड़ रुपये के आवंटन का भी ज़िक्र किया, जिसमें एमईआरयू बनने के लिए प्रति एसपीयू 100 करोड़ रुपये शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ये एसपीयू को बदलने में अहम भूमिका निभाएंगे।
एआईयू महासचिव डॉ. पंकज मित्तल ने विस्तार से बताया कि कैसे रिपोर्ट में व्यापक विचार-विमर्श और हितधारक परामर्श शामिल किए गए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि रिपोर्ट, कुलपतियों द्वारा उठाई गई तीन प्रमुख बाधाओं को संबोधित करती है: फंडिंग सीमाएं, शासन से जुड़े मुद्दे, और कुलपतियों, शिक्षकों और कर्मचारियों की क्षमता निर्माण की ज़रूरत, और एसपीयू पर एक अग्रणी नीतिगत कार्य भी इसमें शामिल है।
यह नीति रिपोर्ट एक विस्तृत नीति रोडमैप प्रदान करती है, जिसमें नीतियों से जुड़ी करीब 80 सिफारिशें, लघु, मध्यम और दीर्घकालिक कार्यान्वयन की रणनीतियां, सिफारिशों को लागू करने के लिए जिम्मेदार लोग अथवा कारक और 125 से अधिक प्रदर्शन सफलता संकेतक शामिल हैं। परामर्श प्रक्रिया से मिलीं सिफारिशों का मकसद अनुसंधान, शिक्षाशास्त्र और पाठ्यक्रम की गुणवत्ता में सुधार करना, संस्थागत और प्रणालीगत वित्त पोषण और वित्तपोषण क्षमता को बढ़ाना, संस्थागत शासन संरचनाओं को उन्नत और सशक्त बनाना और छात्रों की रोजगार क्षमता को बढ़ावा देने के लिए उद्योग-अकादमिक इंटरफेस को मजबूत करना है।
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