केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने नई दिल्ली के राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में ‘ग्लोबल बायो इंडिया 2024 के चौथे संस्करण’ के पूर्वावलोकन समारोह में कहा, “अगली औद्योगिक क्रांति जैव अर्थव्यवस्था से प्रेरित होगी।”
उन्होंने कहा कि यदि 1990 के दशक में हुई पिछली औद्योगिक क्रांति आईटी से प्रेरित थी, तो 21वीं सदी में होने वाली अगली क्रांति जैव-अर्थव्यवस्था से प्रेरित होगी।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया’ के आह्वान को याद किया, जिसने प्रौद्योगिकी, विज्ञान और नवोन्मेषण से संबंधित स्टार्टअप में एक नई क्रांति की शुरुआत की और जिसमें से कई समुद्री अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था और जैव अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं।
ग्लोबल बायो-इंडिया, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी हितधारकों के लिए एक मेगा अंतर्राष्ट्रीय आयोजन है, जो जैव प्रौद्योगिकी विभाग और इसकी सार्वजनिक क्षेत्र इकाई, जैव प्रौद्योगिकी उद्योग सहायता अनुसंधान परिषद (बीआईआरएसी) द्वारा भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वैश्विक सुर्खियों में लाने के लिए एक कार्यनीतिक पहल है।
ग्लोबल बायो-इंडिया 2024: देश का सबसे बड़ा बायोटेक कार्यक्रम 12-14 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली के प्रगति मैदान के हॉल नंबर 5 में आयोजित किया जाएगा।
उच्च स्तरीय व्यापार और तकनीकी प्रतिनिधिमंडल भारत की बढ़ती जैव-अर्थव्यवस्था और विकास पथ को देख सकेंगे, जिसे भारत सरकार की नीतियों और निजी क्षेत्र के साथ एकीकृत निरंतर समर्थन प्रतिबद्धता के माध्यम से सहायता प्राप्त है। इससे जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए “मेक इन इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” दोनों राष्ट्रीय मिशनों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने जैव अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में सरकार की प्राथमिकता पर जोर दिया और रेखांकित किया कि अंतरिम बजट में जैव अर्थव्यवस्था और जैव फाउंड्री – ऐसे विषय जिन्हें आम तौर पर चुनावी वर्षों के दौरान सरकारें टालती हैं, का उल्लेख किया गया है । उन्होंने कहा, “हमारी प्राथमिकता देश और उसकी अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है, चाहे राजनीतिक विवशताएं कुछ भी हों।”
जैव प्रौद्योगिकी के प्रभाव को रेखांकित करते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि भारत की जैव अर्थव्यवस्था पिछले दशक में 13 गुना बढ़ी है, जो 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई है, तथा 2030 तक इसके 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत वैश्विक नवोन्मेषण सूचकांक में 132 अर्थव्यवस्थाओं में से 2015 के 81वें स्थान से चढ़कर 40वें स्थान पर पहुंच गया है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जैव विनिर्माण के मामले में भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे स्थान पर तथा विश्व स्तर पर 12वें स्थान पर है। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी विकास में शामिल कंपनियों को सहयोग देने तथा नवोन्मेषण की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग और बीआईआरएसी की सराहना की। उन्होंने यह भी कहा कि जैव अर्थव्यवस्था और संबंधित उद्यमों में उल्लेखनीय वृद्धि इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मानवता के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी दोनों क्षेत्रों के लिए परस्पर सहयोग करने का समय आ गया है।
कोविड-19 महामारी की चर्चा करते हुए, डॉ. सिंह ने माना कि जहां यह कई लोगों के लिए संकट साबित हुआ, इसने जैव प्रौद्योगिकी के वैश्विक महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने यह भी बताया कि खासकर हाल ही में पारित किए गए अनुसंधान एनआरएफ विधेयक के साथ, जिसे उन्होंने आदर्श आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले संसद में पेश किया था, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेषण (एसटीआई) क्षेत्र में तेजी से प्रगति होने की उम्मीद है। डॉ. सिंह ने टिप्पणी की कि निजी क्षेत्र से निवेश और भागीदारी बढ़ेगी, जो ज्ञान और आर्थिक संसाधनों के साथ मिलकर अत्यधिक लाभकारी होगी। उन्होंने स्टार्टअप के लिए इनक्यूबेटर ‘बायो-नेस्ट’ का भी उल्लेख किया, जिसके इस वित्तीय वर्ष के अंत तक 120 से अधिक स्टार्टअप को सहायता देने की उम्मीद है।
मंत्री ने शाकाहारी श्रेणी में नए जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के उदाहरण भी दिए जो लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की महत्वपूर्ण रोजगार और उद्यमिता क्षमता को रेखांकित किया, साथ ही फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण, कृषि और उद्यम जैसे अन्य उद्योगों पर इसके प्रभाव पर भी प्रकाश डाला।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने आरंभिक उद्योग संपर्कों के महत्व पर बल दिया और निजी क्षेत्र की भागीदारी के प्रति संशय को दूर करने का आग्रह किया।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों ने पिछले 10 वर्षों में 75,000 करोड़ रुपये का मूल्यांकन हासिल किया है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि जैव प्रौद्योगिकी उभरते क्षेत्रों में से एक है, जिसे आगे बढ़ाने के लिए वर्तमान में लगभग 28,000 प्रस्तावों का मूल्यांकन किया जा रहा है।
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