केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएबी) में भारत के अपनी तरह के पहले अत्याधुनिक पशु स्टेम सेल बायोबैंक और पशु स्टेम सेल प्रयोगशाला का उद्घाटन किया।
मंत्री महोदय ने एनआईएबी में एक नए छात्रावास ब्लॉक और टाइप-IV क्वार्टरों की आधारशिला भी रखी, जिसे जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने कुल ₹19.98 करोड़ की लागत से स्वीकृत किया है। यह बुनियादी ढाँचा शोधार्थियों, संकाय सदस्यों और कर्मचारियों की ज़रूरतों को पूरा करेगा और एक जीवंत शैक्षणिक एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगा।
9,300 वर्ग फुट में फैले और ₹1.85 करोड़ की लागत से निर्मित, पशु बायोबैंक की अत्याधुनिक सुविधा पशुओं के लिए पुनर्योजी चिकित्सा और कोशिकीय उपचारों पर केंद्रित होगी। स्टेम सेल कल्चर यूनिट, 3डी बायोप्रिंटर, बैक्टीरियल कल्चर लैब, क्रायोस्टोरेज, ऑटोक्लेव रूम, उन्नत एयर हैंडलिंग सिस्टम और निर्बाध पावर बैकअप से सुसज्जित, यह प्रयोगशाला रोग मॉडलिंग, ऊतक इंजीनियरिंग और प्रजनन जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान को आगे बढ़ाएगी।
डीबीटी-बीआईआरएसी के राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम) के समर्थन से, पशु स्टेम कोशिकाओं और उनके व्युत्पन्नों की बायोबैंकिंग को सक्षम करने के लिए सुविधा का विस्तार किया जाएगा।
मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भविष्यदर्शी दृष्टि की सराहना की, जिसके कारण जैव प्रौद्योगिकी बायोई3 नीति को लागू करना संभव हुआ, जिससे भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी होने का लाभ मिला।
इसके अलावा, कार्यक्रम के दौरान डॉ. जितेंद्र सिंह ने पशु स्वास्थ्य प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव लाने और ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किए गए पांच नवीन पशु चिकित्सा निदान उपकरण शुरू किए:
मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि इन नवाचारों से कृषि से जुड़ी जीडीपी को बढ़ावा मिलेगा, पशुधन उत्पादकता में वृद्धि होगी और पशुपालन क्षेत्र में “सदाबहार क्रांति” का मार्ग प्रशस्त होगा।
उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “मुझे खुशी है कि डॉ. राजेश गोखले के नेतृत्व में पूरा जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत को भविष्य के लिए तैयार करने में योगदान दे रहा है। जैव प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित अगली औद्योगिक क्रांति के आने पर हम पीछे नहीं रहेंगे। अर्थव्यवस्था विनिर्माण से पुनर्योजी और आनुवंशिक प्रक्रियाओं की ओर बढ़ेगी, और भारत ने इस बदलाव की शुरुआत पहले ही कर दी है। नीति निर्माताओं, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने जैव ई3 नीति जैसी पहलों की दीर्घकालिक प्रासंगिकता को समझा है, के समर्थन के साथ यह सबसे अच्छे समय में से एक है।”
उन्होंने कहा कि अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन फंड (एएनआरएफ) के तहत हाल ही में घोषित 1 लाख करोड़ रुपये के आरडीआई फंड से निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को विशेष बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से शीर्ष रैंक की ओर बढ़ सकेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग पौधों, जानवरों और मानव जगत को एक ही छत के नीचे अनोखे ढंग से एकीकृत करता है। उन्होंने अंतरिक्ष विभाग के साथ सहयोग सहित अंतरिक्ष-आधारित प्रयोगों में भारत के योगदान का उल्लेख किया और अंतरिक्ष चिकित्सा एवं अंतरिक्ष शरीरक्रिया विज्ञान जैसे उभरते क्षेत्रों की परिकल्पना की।
कृषि के मोर्चे पर, उन्होंने कहा, “ये रिलीज़ पशु-आधारित कृषि उत्पादकता के एक नए चरण—एक ‘सदाबहार क्रांति’—का प्रतीक हैं। कृषि से सकल घरेलू उत्पाद का 18% और हमारे कार्यबल का 60% कृषि पर निर्भर है, इसलिए पशु चिकित्सा स्वास्थ्य में नवाचारों का परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ेगा। कृषि अनुसंधान पर खर्च किया गया एक रुपया ₹13 का प्रतिफल देता है, और पहले दिन से ही उद्योग भागीदारों को जोड़ने से यह सुनिश्चित होता है कि ये तकनीकें ज़मीनी स्तर तक पहुँचें।”
उन्होंने ब्रुसेलोसिस, मैस्टाइटिस और टोक्सोप्लाज़मोसिस जैसी बीमारियों के बारे में किसानों के बीच जागरूकता की आवश्यकता पर बल दिया, और कहा कि कई पशुपालक अभी भी निदान और उपचार के विकल्पों से अनभिज्ञ हैं।
इस अवसर पर, डॉ. जितेंद्र सिंह ने किसानों के साथ बातचीत की और किसान कल्याण एवं ग्रामीण समृद्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने पशुपालकों से आधुनिक निदान उपकरण और रोग निवारण उपाय अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि रोग का शीघ्र पता लगाने से न केवल पशुओं की जान बचती है, बल्कि कृषि आय भी बढ़ती है।
उन्होंने भारत के पहले पशु स्टेम सेल बायोबैंक की स्थापना में उनकी भूमिका के लिए एनआईएबी की निदेशक डॉ. तरु शर्मा की भी सराहना की और कहा, “हमारे पास मानव स्टेम कोशिकाओं के लिए तो ऐसी सुविधाएँ थीं, लेकिन पशु कोशिकाओं के लिए शायद ही कोई सुविधा थी। एनआईएबी और भारतीय जैव प्रौद्योगिकी का सर्वश्रेष्ठ अभी आना बाकी है।”
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