उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा, ‘‘शोध एवं विकास कार्यों में योगदान दिखावटी या सतही होने के बजाए पर्याप्त होना चाहिए और इसके परिणाम भी पर्याप्त होने चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध एवं विकास कार्यों के लिए वित्तीय संसाधनों को उपलब्ध कराने का वादा पर्याप्त नहीं है और किसी भी शोध का महत्व ठोस परिणामों के संदर्भ में मापा जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “हमें इस बात को लेकर सतर्क रहना होगा कि क्या वित्तीय संसाधनों को उपलब्ध कराने का सिर्फ वादा किया गया है, हम इस बात पर गर्व नहीं कर सकते कि हमने शोध एवं विकास के लिए इतनी धनराशि खर्च की है और इस क्षेत्र में निवेश को ठोस परिणामों से जोड़ा जाना चाहिए।”
उपराष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली के पूसा रोड में सीएसआईआर के 83वें स्थापना दिवस समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए वर्तमान परिदृश्य में शोध एवं विकास कार्यों में महत्व की ओर ध्यान आकर्षित किया। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि शोध एवं विकास कार्य कूटनीति और और राष्ट्रीय सुरक्षा का अभिन्न अंग है।
उन्होंने जोर देकर कहा, “शोध एवं विकास में निवेश स्थायी है…..इन दिनों शोध एवं विकास देश की सुरक्षा के साथ पूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं और इसलिए इसमें किया गया निवेश राष्ट्र के लिए ही है। यह निवेश विकास और स्थिरता के लिए है।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने वर्तमान परिवेश पर प्रकाश डालते हुए संतोष व्यक्त किया कि देश के वैज्ञानिक समुदाय के कार्यों को सराहा जा रहा है और पिछले कुछ वर्षों में वैज्ञानिक समुदाय की मान्यता में वृद्धि हुई है। यह कई मायनों में बढ़ा है और सरकार भी इसे लेकर काफी गंभीर है और प्रधानमंत्री पूरी तरह से वैज्ञानिक समुदाय के लिए समर्पित है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि भारत के वैज्ञानिकों की क्षमता पर प्रधानमंत्री को पूरा भरोसा है और वह उनके प्रति सम्मान और विश्वास रखते हैं।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उस समय को याद करते हुए कहा, जब वैज्ञानिकों के योगदानों को उचित रूप से मान्यता नहीं दी गई थी। उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन प्रतिकूल परिस्थितियों से पूरी तरह वाकिफ हूं, जिनका आप सामना करते हैं, मुश्किल हालातों से जूझते हैं, कठिन रास्तों से गुजरते हैं और कई बार आपके कार्यों को उचित सराहना नहीं मिलती, इसलिए पहले एक ऐसा तंत्र था, जहां आप योगदान तो दे रहे थे लेकिन उसके लिए उचित रूप में मान्यता नहीं मिल रही थी।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने तंत्र में मौजूदा बदलाव की सराहना करते हुए कहा, “अब एक ऐसा तंत्र है, जहां वैज्ञानिक अपनी ऊर्जा का पूरा दोहन और विस्तार कर सकते हैं, अपनी प्रतिभा का दोहन कर अपने अभिनव कौशल का उपयोग करके राष्ट्र के लिए योगदान दे सकते हैं।”
उन्होंने कारपोरेट जगत से शोध एवं विकास के क्षेत्र में अधिक निवेश करने का आह्वान करते हुए कहा कि ऑटोमोबाइल और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारतीय कंपनियां महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। हमारे देश के आकार, इसकी क्षमता, स्थिति और इसके विकास पथ को देखते हुए, देश के कॉरपोरेट् जगत को शोध एवं विकास कार्यों में शामिल होने के लिए आगे आने की आवश्यकता है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि सीएसआईआर का अर्थ वैज्ञानिक दृष्टि से कल्पनाशील राष्ट्र के लिए उत्प्रेरक है। उन्होंने कहा, “यह आपका स्थापना दिवस है, लेकिन यह देश की मजबूत नींव से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। आप विश्व में सबसे जीवंत, कार्यात्मक लोकतंत्र की नींव को मजबूत कर रहे हैं। आप एक ऐसे राष्ट्र की नींव को मजबूत कर रहे हैं जो पहले कभी नहीं देखा गया था, और अब इस वृद्धि को कोई नहीं रोक सकता।”
उन्होंने किसी भी राष्ट्र के विकास इंजन के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए रेखांकित किया कि यह इंजन मुख्य रूप से शोध एवं विकास (आरएंडडी) द्वारा संचालित होता है।
भारत के संस्थानों में शोध एवं विकास (आरएंडडी) के वर्तमान दृष्टिकोण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि इन संस्थानों में योगदान पर्याप्त रूप से दिया जाना चाहिए और सिर्फ इसके वादे नहीं किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मैं विशेष रूप से एक पहलू के बारे में चिंतित हूं, और सौभाग्य से मेरे लिए वह पहलू सीएसआईआर द्वारा एक सर्वेक्षण में सामने आया था।’’
उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में शोध कार्यों में लगे लोगों को केवल अकादमिक लाभ से प्रेरित नहीं होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा, “शोध एक अनुकरण नहीं है बल्कि शोध, शोध ही है।”
उन्होंने मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) की स्थापना की अपील करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मानव संसाधनों और संस्थानों में निवेश प्रामाणिक और प्रभावी अनुसंधान की ओर निर्देशित हो।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आधुनिक भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी परिदृश्य को आकार देने में सीएसआईआर की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया और भारत की वैज्ञानिक विरासत पर जोर देते हुए कहा, “यदि हम अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जाएं तो हम पाएंगे कि सदियों पहले हमारे भारत में वैज्ञानिक कौशल था। हम विश्व में सबसे आगे थे, जब वैज्ञानिक ज्ञान की बात आती थी तो हम दुनिया के केंद्र थे।”
उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि देश ने कुछ समय के लिए अपनी उस प्रगति को खो दिया था, लेकिन अब यह विज्ञान की दुनिया में अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करने की राह पर है। उन्होंने कहा, “जिस तरह की खोजें और आविष्कार किए गए, उनकी बदौलत हमने विश्व को गौरवान्वित किया, हम कुछ समय के लिए वह रास्ता भूल गए थे, लेकिन अब हम उसी तरह से फिर शुरुआत कर रहे हैं।”
इससे पहले उपराष्ट्रपति ने एनएएससी कॉम्प्लेक्स में ‘सीएसआईआर विषयगत प्रदर्शनी 2024’ का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानक सलाहकार प्रो. अजय के. सूद, सीएसआईआर स्थापना दिवस वक्ता और इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन, सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. एन. कलैसेलवी, सीएसआईआर के अध्यक्ष डॉ. जी महेश और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
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